80 परसेंट मेमोरी लॉस

पाकिस्तान की जेल में बिताए दिनों के बारे में यशपाल को कुछ याद नहीं है। उसे नहीं याद कि वह बॉर्डर पार कैसे पहुंचा। इतने साल उसने कैसे बिताए। यही नहीं वह बचपन से लेकर जेल जाने तक की करीब 80 परसेंट याददाश्त खो चुका है। मेमोरी के नाम पर उसके पास केवल परिवारवालों के चेहरे और नाम ही बचे हैं। उसे अपने पिता बाबूराम, मां माया, दो छोटे भाई-बहन और अपना गांव याद है। फैमिली की फोटो दिखाई गई तो वह झट से पहचान गया। उसने बताया कि वह तीन बार अपने दोस्त अतुल के साथ बरेली सिटी आया था। वह दिल्ली में मजदूरी करता था, लेकिन वहां से पाकिस्तान कैसे पहुंच गया, उसे नहीं पता। दरअसल उसे यह भी ढंग से याद नहीं कि वह कभी पाकिस्तान भी गया था। डॉ। प्रदीप जागर के साथ डॉ। संजय सक्सेना भी उसे लेने पहुंचे थे। डॉ। सक्सेना ने बताया कि जेल के हालात और जो भी यातनाएं मिली होंगी, इससे यशपाल अपना मानसिक संतुलन खो चुका है। महज 20 परसेंट याददाश्त ही बची है। इसे रिकवर करने में टाइम लगेगा। डॉक्टर्स की निगरानी और घर के सौहार्दपूर्ण व शांतिपूर्ण माहौल में वह धीरे-धीरे रिकवर करेगा।

अब दिल्ली नहीं जाऊंगा

जब यशपाल से पूछा गया कि कहां से आ रहे हो तो उसने जवाब दिया दिल्ली। जब पूछा गया कि दिल्ली में क्या करते थे, तो इधर-उधर सिर हिलाते हुए हंसा और दूसरी तरफ ताकते हुए जवाब दिया मजदूरी। यशपाल से जब फिर पूछा गया कि क्या दोबारा दिल्ली जाना चाहोगे तो उसने तपाक से कहा, ना और फिर चुप होकर दूसरी तरफ देखने लगा। आगे के बारे में पूछने पर बोला कि यहीं मजदूरी करूंगा।

दिल्ली से पानीपत

यशपाल से बार-बार यह जानने की कोशिश की गई कि वह पाकिस्तान पहुंचा कैसे लेकिन उसे कुछ याद नहीं। सवाल पूछने पर कभी हंसने लगता तो अक्सर पूछे गए सवालों को रिपीट करने लगता। बार-बार पूछने पर उसने बताया कि वह दिल्ली से पानीपत गया था लेकिन उसके बाद क्या हुआ उसे याद नहीं।

'वह इंडियन है'

शायद पाकिस्तान की जेल में बंद भारतीय कैदियों को इंडियन कहकर पुकारते हैं। क्योंकि मानसिक संतुलन खो चुका यशपाल बार-बार इंडियन जवाब दे रहा था। उसे पाकिस्तान के बारे में वहां बिताए गए दिनों के बारे में कुछ याद नहीं लेकिन कई बार सवालों के जवाब वह इंडियन बताता था। जब उसे घुमा-फिराकर पूछा गया कि पाकिस्तान में तुम्हारे कितने दोस्त हैं तो उसने जवाब में डेविड और शरीफ बताया। यह पूछने पर कि उसे क्या कहकर पुकारा जता है तो उसने बताया कि इंडियन। जब उसे पूछा गया कि अपने साहब का नाम बताओ तो उसने जवाब दिया नया साहब। कहां से आ रहे हो सवाल के जवाब में उसने फिर कहा, इंडियन।

काल कोठरी में ढाई रोटी

यशपाल तो अपनी आपबीती बताने की स्थिति में नहीं है लेकिन वाघा बॉर्डर पर उसे लेने गए समाजसेवी डॉ। प्रदीप जागर ने वहां की हैवानियत भरी स्थिति के बारे में बताया। दरअसल ट्यूजडे को यशपाल समेत 7 कैदी पाकिस्तान से रिहा किए गए। इसमें से तीन अपना मानसिक संतुलन खो चुके थे। हालांकि सेना किसी भी कैदी से बात करने नहीं दे रही थी लेकिन डॉ। प्रदीप ने रिहा हुए गुजरात के एक व्यक्ति से कुछ हाल जानने की कोशिश की। उसने बताया कि कोट लखपत जेल में भारतीय कैदियों को काफी छोटी काल कोठरी में रखा जाता है। उसमें लाइट नहीं होती। सुबह खाने के लिए एक रोटी और रात में डेढ़ रोटी दी जाती थी। रोटी के साथ केवल अंडा दिया जाता था। यही नहीं किसी भी गलती या फिर जेल की बातों का जिक्र करने पर वहां की पुलिस उलटा लटकाकर मारती थी।

लबों पर देश प्रेम के गीत

यशपाल को रोमांटिक और देशभक्ति गाना गाने का बहुत शौक है। यह शौक कहां से आया और उसने यह गाने कैसे याद किए, इसके बारे में उसने कुछ नहीं बताया। जब मन में आता तो खुद ही गुनगुनाने लगता। पहले हल्की सी तेज आवाज में बाद में काफी धीमे। आई नेक्स्ट के साथ मुलाकात में उसने गाने गाकर भी सुनाए। इसके अलावा उसका सुपरहीरो सन्नी देओल है। यही नहीं उसे सलमान और शाहरुख खान के बारे में भी पता है।

हर जगह यशपाल का स्वागत

यशपाल शाम 4:20 मिनट पर बरेली स्थित अपने पिता बाबूराम, समाज सेवी डॉ। प्रदीप जागर, डॉ। संजय सक्सेना के साथ मीरगंज पहुंचा। जहां पर स्थानीय लोगों ने उसका स्वागत किया। इसके बाद कर्मचारी नगर चौराहा और एफओ चौराहे पर भी उसका स्वागत किया गया। देर शाम वह अपने पैत्रिक गांव फरीदपुर स्थित पढ़ेरा पहुंचा। जहां न केवल उसकी मां माया, दोनों छोटे भाई और बहनों ने उसका दुलार किया बल्कि पूरा गांव उसके एक दीदार के लिए उमड़ पड़ा। उसकी मां ने उसको कुछ इस तरह से दुलार किया मानो वह मौत के मुंह से निकल कर आया हो।

मां को दिखा अपना चांद

यह एक खूबसूरत इत्तेफाक ही था कि एक तरफ जहां पूरा देश रमजान का चांद का दीदार होने पर खुशियां मना रहा था तो दूसरी तरफ फरीदपुर स्थित पढ़ेरा गांव में माया ने जब 3 वर्ष 40 दिन बाद अपने लाडले चांद यशपाल का दीदार किया तो उनकी खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा। यशपाल ठीक 6:50 मिनट पर अपने गांव पहुंचा तो उसके स्वागत के लिए न केवल उसके गांववासी बल्कि आसपास गांव के भी हजारों लोग उसके स्वागत के लिए इंतजार कर रहे थे। लोगों ने उसे फूल-मालाओं से लाद दिया। ढोल नगाड़े की थाप के बीच वह 7:00 बजे अपने घर पहुंचा तो मां और दोनों भाई व बहनें उससे लिपट गईं। महौल खुशी का था लेकिन खुशी इतनी थी कि उसके परिवारीजन फफक कर कई देर तक रोते रहे। इस मिलन को देख सभी के आंखें नम थीं। मां ने उसके माथे पर हाथ फेरा कई बार चूमा। इस दौरान यशपाल केवल मुस्कुरा रहा था। परिवारीजनों ने उसकी आरती उतारी और कहा कि अब अपने टुकड़े को अपने से दूर नहीं करेंगे।