इस हमले में महिला की आंख निकल गई लेकिन यह ऐसे निकली जैसे किसी सिद्धहस्त डॉक्टर ने ऑपरेशन करके निकाली हो.

कुदरत भी ऐसे मेहरबान हुई कि इस महिला की आंख पेड़ की टहनी पर 14 घंटे पड़ी रहने के बाद भी सही सलामत मिली. लेकिन अफ़सोस की बात यह कि इस आँख को पीड़ित महिला को दुबारा नहीं लगाया जा सकता है.

डॉक्टरों के मुताबिक़ महिला की आँख को मस्तिष्क से जोड़ने वाली तंत्रिकाएं और उत्तक नष्ट हो गए हैं.

आँखों की रोशनी

डॉक्टरों के मुताबिक़ भालू के हमले में घायल 50 साल की संतोष राजपूत की यह आँख किसी दृष्टिहीन की व्यक्ति को  रोशनी दे सकती है.

"माउंट आबू एक पहाड़ी जगह है. आसपास की आबोहवा भी अच्छी है. घटना के बाद रिमझिम बारिश हुई. इस बारिश ने डिस्टल वाटर का काम किया. हम भी आँख को ऐसे ही डिस्टिल वाटर आदी के घोल देते हैं. तापमान ने भी आँख की हिफाजत की"

-डॉक्टर सुधीर शर्मा

संतोष सिरोही जिले के माउंट आबू के ग्लोबल हॉस्पिटल में भर्ती हैं. वहाँ उनकी हालत स्थिर बताई जा रही है. उनकी आँख को एक आई बैंक में सुरक्षित रख दिया गया है.

संतोष का इलाज कर रहे  नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉक्टर सुधीर सिंह कहते हैं, ''मैं पंद्रह साल से इस पेशे में हूँ. लेकिन न कभी ऐसा सुना और न देखा. भालू ने आँख ऐसे निकाली है जैसे किसी पेशवर डॉक्टर ने सर्जरी कर निकाली हो. इसके बाद आँख उछल कर पास में एक पेड़ की शुष्क टहनी पर ऐसी गिरी जैसे किसी ने नज़ाकत से उसे वहाँ रखा हो.''

उन्होंने बताया कि यह आँख क़रीब 14 घंटे तक टहनी पर ही पड़ी रही.

डॉक्टरों के मुताबिक़ भालू के हमले के बाद संतोष राजपूत का मोबाइल फ़ोन वहीं पर गिर गया था. उसकी तलाश में जब उनके बेटे अपने कुछ रिश्तेदारों के साथ घटनास्थल पर गए तो मोबाइल के साथ-साथ आँख भी सही-सलामत मिल गई.

डॉक्टर सुधीर सिंह कहते हैं,'' माउंट आबू एक पहाड़ी जगह है. आसपास की आबोहवा भी अच्छी है. घटना के बाद रिमझिम बारिश हुई. इस बारिश ने डिस्टिल वाटर का काम किया. हम भी आँख को ऐसे ही डिस्टिल वाटर आदी के घोल देते हैं. तापमान ने भी आँख की हिफाजत की.''

बेटे की समझदारी

घटना शनिवार की है, जब संतोष अपने आठ साल के पोते के साथ मंदिर में दर्शन कर लौट रही थीं. इस दौरान अपने बच्चे के साथ जा रही मादा भालू ने उनपर हमला कर दिया.

इस दौरान उनके पोते ने किसी तरह भागकर अपनी जान बचाई और बचाव के लिए शोर मचाया. उनकी पुकार सुनकर कुछ लोग मौके पर पहुँचे. लेकिन तबतक भालू और उसके बच्चों ने संतोष को बुरी तरह घायल कर दिया था.

डॉक्टर सुधीर ने बताया, '' संतोष के बेटे ने समझदारी की. वो आँख को बहुत ही करीने से एक साफ़ प्लास्टिक में लपेटकर डॉक्टरों के पास ले गए.''

डॉक्टर सुधीर ने बताया,'' यह किसी करिश्मे से कम नहीं है. हमने संतोष के परिजनों को समझाया है कि यह आँख अब उन्हें  रोशनी नहीं दे सकती, क्योंकी इसके सभी ऊतक नष्ट हो चुके हैं. लेकिन कॉर्निया सलामत है, जो किसी और की आँख में लग सकता है. इससे किसी दूसरे की आँख रोशन हो सकती है. परिजनों ने इस पर सहमति दे दी है.''

घने जंगल और अरावली के ऊँचे पहाड़ माउंट आबू को प्राकृतिक खूबसूरती प्रदान करते हैं. इसे देखने के लिए बड़ी संख्या में सैलानी आते हैं. इसके जंगल में कभी बाघ भी विचरण करते थे. मगर अब वहाँ केवल सांभर, जंगली बिल्ली, भालू ,बंदर, गीदड़ और भेड़िया ही दिखते हैं.

बहरहाल भालू के हमले में जान बचा कर निकली संतोष को एक आँख खोने का ग़म तो है. लेकिन उन्हें इस बात का संतोष ज़रूर होगा कि उनकी आँखों से कोई और यह खूबसूरत दुनिया देख सकेगा.

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