पूर्व में अरूणाचल प्रदेश को लेकर विवाद

मैकमोहन भारत-चीन रिश्तों में खटास की एक बड़ी वजह है। चीन मैकमोहन लाइन को अंतरराष्ट्रीय सीमा के तौर पर मान्यता नहीं देता और वह अरूणाचल प्रदेश को तिब्बत का दक्षिणी इलाका मानता है। मैकमोहन रेखा बिटिश भारत सरकार ने तिब्बत सरकार के साथ 1914 में हुए एक समझौते के बाद अस्तित्व में आई थी। चीन का कहना है कि तिब्बत की सरकार को यह समझौता करने का अधिकार नहीं था। इसलिए वह इस रेखा को सीमा नहीं मानता।

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पश्चिम में अक्साईचिन, डोमचक पर रार

1962 की लड़ाई के बाद चीन ने अक्साईचिन में 35241 वर्ग किमी और डोमचक में 350 वर्ग किमी जमीन पर कब्जा कर लिया। इसके बावजूद चीन डोमचक क्षेत्र में 150 वर्ग किमी और जमीन पर अपना दावा जताता रहता है। पाकिस्तान ने भी जम्मू और कश्मीर की शासगम घाटी के 5180 वर्ग किमी जमीन चीन को तोफे में दे दी थी। तब से यहां मामला और पेचिदा हो गया। फिलहाल इस इलाके में भारतीय सेना के जवान चौकसी करते हैं।

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मध्य में हिमाचल और उत्तराखंड

चीन के साथ भारत का हिमाचल और उत्तराखंड से लगी सीमा पर भी विवाद है। हिमाचल प्रदेश के कौरिक और शिपकी ला तथा उत्तराखंड के नीलांग और लेपथा के करीब 507 किमी लंबी पट्टी पर चीन अपना दावा जताता है। हालांकि यहां शांति बनी रहती है। सीमा पर जब भी किसी देश के जवान गश्त करते हुए अंदर तक चले जाते हैं तो चौकसी पर तैनात जवान लाल बैनर पर अपने इलाके का संकेत देते हैं। ऐसे में दूसरे देश के जवान वापस अपनी सीमा में चले जाते हैं। दोनों देश के जवान यह ड्रिल करते हैं जिससे भारत-चीन सीमा पर शांति बनी रहती है। इस सीमा पर विवाद तो होते हैं लेकिन कभी गोली नहीं चलती।

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आईटीबीपी के मजबूत कंधों पर भारत-चीन सीमा की चौकसी का जिम्मा

भारत-तिब्बत सीमा की सुरक्षा का जिम्मा भारत तिब्बत सीमा पुलिस के जवानों के कंधों पर है। इस अर्धसैनिक बल का गठन 24 अक्टूबर, 1962 में हुआ सीआरपीएफ एक्ट के तहत किया गया था। आईटीबीपी के जवान भारत-चीन सीमा पर सालों भर हर मौसम में सातों दिन चौबीसों घंटे पलक झपकाए नजर रखते हैं। उनकी तैनाती लद्दाख के काराकोरम पास से लेकर अरूणाचल प्रदेश के दीपू ला तक 3488 किमी की सीमा पर की गई है। 6400 मीटर की ऊंचाई तक इनकी निगरानी चौकियां हैं।

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