आगरा। अब स्मारकों और अन्य भवनों को डैमेज होने से बचाया जा सकता है। जैविक प्रकोप और प्रदूषण का असर भी इनकी लाइफ कम नहीं कर पाएगा। वाटर सेरेमिक तकनीक अपनाकर स्मारकों और अन्य भवनों के डैमेज को काफी हद तक काबू में किया जा सकता है। इस विषय पर मंगलवार को होटल अमर में हुआ इंडो-जापान कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसमें विशेषज्ञों ने अपने विचारों का आदान-प्रदान किया।

बताया तकनीक के बारे में

विशेषज्ञों के अनुसार इस वाटर सेरेमिक तकनीकि से पत्थर में जल अवशोषित नहीं होता है। इसकी वजह से पत्थर का डैमेज होना बंद हो जाता है। यह तथ्य मंगलवार को हुई गोष्ठी में जापान से आए एक्वाटेक कंपनी के अध्यक्ष कुहिनोको वाडा ने यह रखा। इरा रिसर्च फाउंडेशन द्वारा बायोथिंक ओवरसीज के सहयोग से आयोजित कार्यशाला में उन्होंने कहा कि वाटर सेरेमिक तकनीकि का प्रयोग करने से ईट व पत्थर में नोना नहीं लग सकता है। कंपनी के तकनीकी सलाहकार व सूक्ष्म विज्ञानी डॉ। हिदोय अराय ने बताया कि भारत में स्मारकों, इमारतों, धरोहर, पुल, फ्लाईओवर, मेट्रो लाइनें और सीवर में जैविक क्षरण हो रहा है। इसे रोकना बहुत जरूरी है।

कार्य का हुआ प्रस्तुतीकरण

न्यू इरा रिसर्च फाउंडेशन व बायोथिंक ओवरसीज कंपनी द्वारा अवागढ़ किले, अलीगढ़ मुस्लिम विवि और सेंट जोंस कॉलेज में किए गए कार्य का प्रस्तुतीकरण किया गया। एक्वाटेक कंपनी द्वारा पिछले 30 वर्षो में जापान व चीन में किए गए संरक्षण प्रोजेक्ट के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी गई। इस अवसर पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के बीएम भटनागर, ग्लोरिया जिया, केईजी ओहरने, डॉ। साधना जादौन, डॉ। सीमा भदौरिया, अंकिता श्रीवास्तव, हिना शर्मा, विश्वजीत सिंह, अभिषेक आदि प्रमुख रूप से उपस्थित थे।