कछार में शहर बसाने से बिगड़ा प्राकृतिक संतुलन

एडीए व नगर निगम ने सख्ती दिखाई होती तो न मचता इतना कोहराम

ALLAHABAD: शहर में 1978 की बाढ़ के बाद हाईकोर्ट ने हाईफ्लड लेवल निर्धारित कर दिया था। नदियां अभी भी इससे दूर बह रही हैं। धारा तो अपनी धरा पर ही है। प्रकृति से खिलवाड़ होगा तो वह पलटवार जरूर करेगी। बाढ़ की त्रासदी झेल रहा निचला शहर इस बात की गवाही दे रहा है। गंगा यमुना के तटवर्ती इलाकों में बने हजारों मकान पानी में डूब चुके हैं। ऐसे में बड़ा सवाल उठता है कि आखिर इसका दोषी कौन है। बाढ़ की इस विभीषिका पर आईनेक्स्ट ने डिबेट कराई तो लोगों ने खुलकर विचार रखे।

प्राकृतिक असंतुलन का खामियाजा

डिबेट में अधिवक्ता संजीव कुमार जैन ने कहा कि प्राकृतिक संतुलन यह कहता है कि धरती पर मनुष्य के चार गुना जीव जंतु, जानवरों के चार गुना वृक्ष, वृक्षों के चार गुना वन क्षेत्र, झील व तालाब होने चाहिए। अपने चारों तरफ देख लीजिए कि क्या आज प्रकृति में यह संतुलन बरकरार है।

पब्लिक के साथ सिस्टम भी दोषी

समाज सेवी विनय मिश्रा ने कहा कि आज प्राकृतिक संतुलन बिगड़ चुका है। लेकिन इसका दोषी कौन है? जवाब देते हुए अधिवक्ता संजीव जैन ने कहा कि दोषी वे लोग हैं जो केवल अपने बारे में सोचते हैं। सबसे ज्यादा दोष सिस्टम चलाने वालों का है। सिस्टम ने सख्ती बरती होती तो आज कछारी एरिया में आबादी न बसती और बाढ़ का मंजर इतना भयानक न होता।

सरकारों ने बिगाड़ा सिस्टम

पार्षद सत्येंद्र चोपड़ा ने कहा कि केंद्र सरकार ने बाढ़ से निबटने के लिए भारी मात्रा में धन जारी किया। लेकिन प्रदेश सरकार ने उस धन का सदुपयोग नहीं किया। जिसकी वजह से आज तक शहर के नालों को टेप नहीं किया जा सका है। वहीं एसटीपी को भी बचाया नहीं जा सका है। पार्षद सत्येंद्र चोपड़ा की बातों को खारिज करते हुए मोनू गुप्ता ने कहा कि यहां लड़ाई केंद्र और प्रदेश सरकार की नहीं है। बल्कि बिगड़े हुए सिस्टम की है। जिसके लिए दोनों सरकारें दोषी हैं।

कहां गए कछार बेचने वाले

प्रशांत अग्रवाल ने कहा कि जब गंगा-यमुना की लहरें शांत थी तो भू माफियाओं ने कछार क्षेत्र को खरा सोना बताते हुए बेच दिया। एडीए और नगर निगम के अफसरों ने भी अपना हिस्सा पाकर मुंह बंद कर लिया। आज जब गंगा-यमुना की लहरें उफान पर हैं तो कछार बेचने वाले गायब हैं।

आई कनेक्ट

प्रकृति ने संतुलन निर्धारित कर रखा है। फिर भी लोग नहीं मान रहे हैं। कछार में जाकर बस रहे हैं। जब प्रकृति हिसाब ले रही है फिर प्रकृति को ही दोषी ठहरा रहे हैं। लोगों को जागरुक होना चाहिए।

सुनील चंद्र जैन

अधिवक्ता

कुदरत समय-समय पर चेतावनी देती रहती है, फिर भी लोग नहीं मानते हैं। प्रकृति ने जो सीमा रेखा निर्धारित कर रखी है, उसका पालन करना चाहिए।

मनीष कुमार

अधिवक्ता

शहरी क्षेत्र में बाढ़ से ज्यादा तो नालों के कारण कोहराम मचा है। जलनिकासी न होने के कारण बैक फ्लो होकर मोहल्लों में पहुंच रहा है। साहब लोग बाढ़ का सहारा लेकर अपना पल्ला झाड़ ले रहे हैं।

अनिल कुमार चड्ढा

सर्राफा कारोबारी

हर दो साल पर प्रयाग नगरी के लोग भीषण बाढ़ का कहर झेलते हैं। फिर भी शासन-प्रशासन के जिम्मेदार लोग ठोस कदम क्यों नहीं उठाते हैं। जब धारा की धरा निर्धारित है तो फिर, उस पर कब्जा क्यों जारी है?

विनय मिश्रा

समाज सेवी

बाढ़ तो आदि-अनादि काल से आ रही है। लेकिन पहले इतनी तबाही नहीं होती थी। क्योंकि गंगा-यमुना का इलाका खाली रहता था। आज एडीए, नगर निगम के साथ ही जिला प्रशासन की लापरवाही से लोगों ने गंगा-यमुना किनारे तक आवास बना लिए है। इस तबाही के दोषी तो एडीए और नगर निगम के अधिकारी भी हैं।

राजीव अग्रवाल

व्यापारी

2013 में जब बाढ़ की लहरों ने कहर मचाया तो हाईकोर्ट ने सख्त आदेश दिया कि हाई फ्लड लेवल से 500 मीटर के एरिया में मकान नहीं बनने चाहिए। लेकिन अफसरों की लापरवाही से प्रतिबंधित इलाकों में मकान निर्माण का क्रम आज भी जारी है।

मोनू गुप्ता

समाज सेवी

शासन-प्रशासन चाहे जो दावा करे, हकीकत यह है कि हजारों लोगों तक मदद नहीं पहुंच सकी है। पानी में फंसे लोगों को बाहर निकालने का प्रयास करना चाहिए।

प्रशांत अग्रवाल

कोषाध्यक्ष

प्रयाग सर्राफा मंडल

लाखों लोग बाढ़ की चपेट में हैं। इसके लिए पूरा सिस्टम दोषी है। गंगा-यमुना के 500 मीटर एरिया में मकान बनाना प्रतिबंधित है तो फिर हजारों मकान और बड़े-बड़े भवन कैसे बन गए?

सत्येंद्र चोपड़ा

पार्षद