महंगी हो गई शहर की जमीनें, पॉश एरिया में तिल रखने जगह नहीं, नदी पार भाग रहे लोग
ALLAHABAD: हर किसी का सपना होता है कि उसके पास सिर छिपाने को एक छत हो। लेकिन, संगम नगरी में यह सोच निकट सपना बनती जा रही है। बढ़ती महंगाई और जमीन की क्राइसिस ने किराए के कमरों की डिमांड बढ़ा दी है।
हर साल बढ़ रही एक लाख आबादी
आबादी में यूपी का नंबर वन जिला बन चुके इलाहाबाद में हर साल एक लाख जनसंख्या बढ़ रही है। 17 लाख आबादी वाले इस शहर में नगर निगम के अनुसार दो लाख छह हजार कुल मकान हैं। हालांकि सच ये भी है कि इस समय दो लाख लोग आवास के लिए जमीन और फ्लैट की खोज में जुटे हैं।
जमीन कम और आबादी अधिक
शहर दो नदियों से घिरा है। अधिकतर लोग दस से बारह किमी के रेडियस में ही आवास बनाना चाहते हैं जो फिलहाल संभव नहीं है। ऐसे में लोग मजबूरी में झलवा, नैनी और फाफामऊ का रुख कर रहे हैं।
तेज गति से बढ़ रही है महंगाई
दस साल में जमीन का दाम 700 प्रति वर्ग फिट से बढ़कर 15 हजार रुपए पर पहुंच गया है। सिविल लाइंस, लोकनाथ, चौक, अशोक नगर, सोहबतियाबाग, तुलारामबाग आदि इलाकों में जमीन बची ही नहीं है। दस साल पहले मकान बनवाने की लागत 200 रुपए प्रति स्क्वायर फिट थी जो अब दो हजार रुपए से अधिक है।
आंकड़े
10
साल में बढ़ गई शहर की 11 लाख आबादी
65
लाख वर्तमान में जिले की जनसंख्या
17
लाख वर्तमान में शहर की आबादी
12
फीसदी शहर में प्रतिवर्ष आबादी ग्रोथ
2.06
लाख शहर में कुल मकानों की संख्या
02
लाख वर्तमान में कुल मकानों की डिमांड
700
से 15 हजार प्रति स्क्वायर फिट पहुंचा जमीनों का दस साल में दाम
10
साल में बढ़ी कंस्ट्रक्शन लागत 200 से 2000 हजार रुपए प्रति स्क्वायर फिट
88.54
फीसदी इंदिरा गांधी आवास योजना में पिछले वित्तीय वर्ष में प्राप्त लक्ष्य
93.40
फीसदी लोहिया आवास योजना में पिछले वित्तीय वर्ष में प्राप्त लक्ष्य
डेवलपिंग सिटी होने के चलते इलाहाबाद की जमीनों के दाम नोएडा और लखनऊ से महंगे हैं। जिस तरह जनसंख्या बढ़ रही है, उससे सभी को जमीन या फ्लैट उपलब्ध होना आसान नहीं।
अतुल द्विवेदी, मेट्रो इंफ्रा
सरकारी योजनाओं के तहत लाभार्थियों को आवास उपलब्ध कराए जा रहे हैं। आवंटन में पारदर्शिता बरती जाएगी। पूर्व में हुई जांच में दोषियों के खिलाफ कार्रवाई हो चुकी है।
संजय कुमार, डीएम