क्त्रन्हृष्ट॥ढ्ढ:सुप्रीम कोर्ट ने सड़क दुर्घटना में घायल हुए लोगों को अस्पताल पहुंचाने वाले को परेशान न करने का स्पष्ट निर्देश जारी किया है, इसके बावजूद लोगों को परेशानी हो रही है. पिछले एक साल के भीतर रिम्स में दुर्घटनाओं के करीब 1330 मामले आए जिनमें 1163 मामलों में घायलों को अस्पताल पहुंचाने का काम उनके परिजनों द्वारा किया गया. अन्य मामलों में प्रत्यक्षदर्शियों द्वारा घायलों को अस्पताल लाया गया. परिजनों द्वारा लाए गए मामलों में आधे से ज्यादा तकरीबन 575 मामलों में घायलों की मंौत हो गई. परिजनों ने अपने बयान में बताया कि उन्हें दुर्घटना की सूचना मिली लेकिन घटनास्थल तक पहुंचने में उन्हें काफी देर लग गई. स्थानीय लोग पुलिस और पूछताछ के डर से घायलों को अस्पताल लाने से कतराते रहे.

क्या है सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन

स्टेट के लोग गुड सेमेरिटन यानी अच्छे मददगार बनने से कतराते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने सड़क दुर्घटना की लगातार बढ़ती संख्या और घायलों की मौत पर चिंता जताते हुए गाइडलाइन जारी की है कि जो लोग भी इन घायलों को अस्पताल पहुचाएंगे वे गुड सेमेरिटन यानी अच्छे मददगार होंगे और उनके साथ किसी भी तरह की सख्ती का बर्ताव नहीं किया जाएगा. परिवहन विभाग को प्रस्ताव तैयार करने के साथ-साथ इसका जोरदार प्रचार-प्रसार भी करना है कि इन गुड सेमेरिटन के साथ पुलिस और स्वास्थ्य विभाग सहयोगी बर्ताव करे. ताकि सड़क दुर्घटना को देख लोग भागे नहीं बल्कि घायलों की मदद करें. लेकिन, सर्वोच्च न्यायालय की गाइडलाइन पर भी परिवहन विभाग की नींद नहीं टूट रही.

क्या है गुड सेमेरिटन की गाइडलाइन

सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट निर्देश जारी किया है कि घायलों को अस्पताल पहुंचाने वालों को पुलिस या स्वास्थ्य विभाग किसी भी तरह परेशान नहीं करेंगे. मेडिकल खर्च के लिए तुरंत भुगतान भी नहीं मांगा जाएगा. साथ ही चस्मदीद से केवल एक बार ही पूछताछ की जाएगी. मददगारों को अपनी पहचान बताना भी जरूरी नहीं है और उन्हें घायल के लिए अस्पताल में रुकने की भी जरूरत नहीं है. सबसे महत्वपूर्ण यह है कि मददगारों को कोर्ट की कार्रवाई जैसे गवाही, हाजिरी से बिल्कुल दूर रखा जाएगा.

नहीं माने जा रहे नियम

इस संबंध में स्टेट में कहीं भी नियमों को नहीं माना जा रहा. पुलिस विभाग ने भी थानों के लिए दिशा-निर्देश जारी नहीं किए हैं, न अस्पतालों में बिना रुपए लिये उनकी भर्ती की जा रही है. परिवहन विभाग को इसका प्रचार-प्रसार कर अस्पताल व पुलिस के बीच समन्वय स्थापित करना है, ताकि सड़क दुर्घटना के घायलों को मदद मिल सके, लेकिन परिवहन विभाग इसपर कोई काम नहीं कर रहा.

वर्जन

चश्मदीद को पुलिस बिल्कुल परेशान नहीं करेगी ऐसा स्पष्ट निर्देश जारी किया गया है. वे लोग यदि बयान देना चाहें तभी उनसे दोबारा पूछताछ की जाती है लेकिन उन्हें किसी तरह का नोटिस नहीं दिया जाना चाहिए. अस्पतालों की सूचना पर पुलिस मौके पर पहुंचती है और अनावश्यक कार्रवाई पूरी करती है.

अनीश गुप्ता, एसएसपी, रांची

हमलोग प्रयास कर रहे हैं कि इसका जोर शोर से प्रचार प्रसार किया जाए. इसको लेकर जल्द ही स्वास्थ्य विभाग और पुलिस विभाग के साथ समन्वय स्थापित करते हुए कार्य तेज किया जाएगा.

संजीव कुमार, डीटीओ, रांची