चार साल की उम्र में कार एक्सिडेंट में गंवाये दोनो पैर
साल 2005 में कियान होंग्यान के बास्केटबाल पर अपना धड़ टिकाये फोटोग्राफ चर्चा में आए। 2000 में चार साल की उम्र में एक कार एक्सीडेंट में उसे अपने दोनों पैर गंवाने पड़े। कियान के परिवार की माली हालत ऐसी नहीं थी कि उसको उस वक्त कृत्रिम पैर लगाए जा सकें। जिसकी वजह से उसे अपने हाथों के सहारे चलना सीखना पड़ा। इस दौरान शरीर का संतुलन बनाने में मदद करने के इरादे से उसके दादाजी ने एक बास्केटबॉल को काटकर उसके निचले हिस्से में लगा दिया गया था। जिसे देख सभी उसे बास्केटबॉल गर्ल के नाम से पुकारने लगे।

Basketball girl Qian Hongyan

नौसाल की उम्र में मिले पहले कृत्रिम पांव
कियान को समझ आने लगा था कि उसका गरीब परिवार उसे शिक्षा या सफलता नहीं दिला पायेगा इसलिए सउने स्पोर्टस पर ध्यान लगा कर अपना भविष्य बनाने के बारे में सोचा और तैराकी पर ध्यान देना शुरू किया। चीन में जहां विकलांगो पर चर्चा तक नहीं की जाती वहां अपनी कड़ी मेहनत के चलते कियान को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा मिली और उससे उसको मिला पहला डोनेशन जिसकी मदद से वो अपने गांव से 1600 किलोमीटर दूर बीजिंग आई और उसे पहली बार कृत्रिम पांव लगाये गए। इसके बाद 2007 में उसने अपनी प्राइमरी शिक्षा पूरी की।

अपने हाथों लिखा अपना भविष्य
जहां ऐसे हालात में लोग जीने की भी उम्मीद गंवा देते हैं वहां कियान ने अपने हाथें से अपना भविष्य लिखने का फैसला किया और परिवार पर बोझ डालने की जगह आगे की शिक्षा का इरादा छोड़ कर वो ग्यारह साल की उम्र में वापस यून्नान के अपने गांव आ गयी और खेल के जरिए रास्ता तलाशने के लिए विकलांगो के ऐ तैराकी क्लब की सदस्य बन गयी। ये क्लब चीन में अपनी तरीके के चंद और यून्नान का इकलौता क्लब था। शुरू में तैराकी कियान के लिए एक बुरा सपना था उसने अपने एक साक्षात्कार में खुद ही बताया कि वो हमेशा डूबने लगती थी और उसका दम घुटने लगता था, पर उसने हार नहीं मानी। 

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जब टूटा 2012 पैरालंपिक का सपना
कुछ ही साल में वो एक कामयाब तैराक बन गयी। बल्कि उसने कई राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में गोल्ड मैडल भी जीते। अपनी मेहनत और कामयाबी से खुश कियान का अब एक ही सपना था 2012 में लंदन में होने वाले पैरालंपिक खेलों में अपने देश का प्रतिनिधित्व करके मैडल जीतना। वो इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ रही थी 2009 में उसने चीन के राष्ट्रीय पैरालंपिक स्वीमिंग कंपटीशन में एक गोल्ड और दो सिल्वर मैडल जीते। अगले तीन सालों में उसने इसी प्रतियोगिता में तीन रजत पदक और जीते। लेकिन कियान की मुश्किलें खत्म नहीं हुईं 2011 में पैरालंपिक्स क्वालिफायर्स से ठीक पहले उसकी हिम्मत और प्रेएाना रहे उसके दादाजी की मृत्यु हो गयी और आहत कियान किसी तरह उस हालत में एक कांस्य पदक ही जीत सकी जो लंदन पैरालंपिक्स के लिए क्वालिफाई कराने के लिए पर्याप्त नहीं था। उसका सपना टूट गया और लोगों की सवालों भरी नजरों  से बचने के लिए वो अपने घर चली आई जहां उसके भाइयों ने एक नायक की तरह उसका स्वागत किया।

टूटा पर छूटा नहीं है कियान का सपना
बहरहाल कियान ने हिम्मत नहीं हारी है और वो एक बार फिर अगले पैरालंपिक्स में भाग लेने की तैयारियों में लग गयी है। अब वो ये भी समझ चुकी है कि पैरालेपियन बनने का दवाब बहुत बड़ा है और उसे संभल कर आगे बढ़ना है। सितंबर 2014 में उसने यून्नान प्रोवेंशियल पैरालंपिक गेम्स में 100 मीटर बैकस्ट्रोक का फाइनल जीता। और अब वो अपने को आने टाइम के लिए तैयार कर ही है।  

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कदम कदम पर मिली मदद भी
मीडिया में आने के बाद वो बीजिंग गई और चाइना रिहैबिलिटेशन सेंटर ने उसकी मदद की। 20 साल से सक्रिय इस संस्था ने कियान को पहले कृत्रिम पैर लगाए। कियान ने युन्नास प्रोविंस फेडरेशन का स्विमिंग क्लब भी ज्वाइन किया जहां शरीरिक तौर पर अक्षम लोगों को तैरना सिखाया जाता है। कियान को उम्मीद है कि एक दिन पैरालंपिक खेलों में वो अपने देश के लिए जरूर मेडल जीतेगी। अब 18 साल की हो चुकी कियान को हाल ही मैं उसके व्यस्क आकार के कृत्रिम पैरों को चाइना रिहैबिलिटेशन सेंटर ने उपलब्ध कराया है।

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