PATNA : पहले लोग कम पढ़े-लिखे होते थे लेकिन आज समाज में महिला-पुरुषों का शैक्षिक स्तर बढ़ा है। बावजूद समाज में महिला हिंसा की घटनाएं लगातार हो रही है। इसके जबाव में फिल्म मेकर और कई सामाजिक जागरुकता फिल्मों की सूत्रधार श्रुति अनंदिता वर्मा कहती हैं कि पढ़ाई का मतलब डिग्री से है। किसी का एटीट्यूड कैसा है, यह तय नहीं किया जा सकता है। आज के जेनरेशन के लिए कहना चाहूंगी कि बच्चे आगे चलकर किस प्रोफेशन का चुनाव करियर के लिए करेंगे, यह एक बात है और वे कितने अच्छे इंसान हैं, यह दूसरी बात है। विशेष तौर पर लैंगिक समानता के पहलू पर हर व्यक्ति को समझदार होना होगा।

जागरुकता बढ़ी इसलिए ऐसा है

आई नेक्स्ट से बातचीत में श्रुति ने बताया कि महिलाओं के प्रति हिंसा, अनाचार पहले भी होता था और आज भी हो रहा है। लेकिन दोनों में फर्क है। पहले यौन उत्पीड़न के मामले रिपोर्ट नहीं किए जाते थे। संस्थागत तौर पर इसकी स्वीकारोक्ति या जाहिर करने का अवसर या प्रणाली ही नहीं थी। आज जागरुकता बढ़ी है, महिला थाना है, कड़े कानूनी प्रावधान भी हैं। यही वजह है कि अब केसेज ज्यादा दर्ज होने लगे हैं। इसलिए कभी- कभी ऐसा प्रतीत होता है कि मामला बढ़ गया है।

समाज को कुछ देने की सोच

क्99फ् में प्रोफेशनल करियर शुरू करने वाली श्रुति बताती हैं कि हम जिस समाज से हर महीने कमाते हैं, पाते हैं, क्या उसे कुछ नहीं देना चाहिए। यही सोच मुझे ऐसे काम करने की शक्तिप्रदान करता है। विशेषतौर पर महिलाओं को उनके अधिकारों की जानकारी देकर हिंसा मुक्तरखना ही मेरी मुहिम है।

जागरुकता के लिए फिल्म सशक्त माध्यम

श्रुति ने अपने करियर के बारे में बताती हैं कि शुरुआती दौर में प्रिंट मीडिया में काम किया। फिर, टेलीविजन के प्रोग्राम निर्माण में अहम जिम्मेदारी निभाई। सामाजिक जागरुकता के लिए फिल्म बेहद सशक्त माध्यम है। अखबार केवल साक्षर पढ़ सकता है, लेकिन फिल्म हर कोई समझता है और सशक्तिकरण का यह एक बढि़या टूल है। ऐसी फिल्मों से त्वरित प्रतिक्रिया भी मिलती है। फिल्म समाजिक परिवर्तन के वाहक हैं।

फिल्म प्रदर्शन के दौरान इम्पैक्ट

महिला हिंसा की बात कई बार दबी रह जाती है। लेकिन फिल्म ऐसे पीडि़त को भी झकझोर देती है। इस संबध में श्रुति ने अपनी चर्चित फिल्म 'भोर' का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि मुम्बई में आयोजित फिल्म फेस्टिवल में जब इस फिल्म को बेस्ट फिल्म का अवॉर्ड मिला, वहां मौजूद एक महिला ने एक उम्रदराज प्रोफेसर पर सात साल पहले यौन उत्पीड़न का खुलासा किया। इसी तरह जब यह फिल्म पटना के विद्युत भवन में प्रदर्शित की गई तो वहां की सात महिलाओं ने अपने पुरुष सहकर्मी के प्रति शारीरिक शोषण की कंप्लेन की। विभागीय कार्यवाही में दोषी को निलंबित भी किया गया।

शराबबंदी का श्रेय महिलाओं को

बिहार में शराबबंदी अभियान सफल है और इसका श्रेय बिहार की महिलाओं को जाता है। श्रुति बताती हैं कि पहली बार महिलाओं ने ही इसके दुष्प्रभावों के प्रति आवाज बुलंद की। उन्होंने कहा कि मेरिट, इंटेलिजेंस बिहारियों की जीन में है, बस उन्हें अवसर की दरकार है। उन्होंने बताया कि मैं पटना में पली-बढ़ी और यहां के समाज को भी कुछ देने की तमन्ना रखती हूं।