कैसे लगी गाना गाने की लत

पं भीमसेन जोशी का जन्म कर्नाटक के गडक जिले में 4 फरवरी 1922 को हुआ था। उनके पिता स्थानीय हाई स्कूल के हेडमास्टर थे। पं भीमसेन जोशी अपने 16 भाई बहनों मे सबसे बडे थे। बचपन में माता का देहांत हो जाने के कारण पालन पोषण विमाता के द्वारा किया गया। पं. जोशी को बचपन से ही संगीत की धुन लग गयी थी। उनके स्कूल जाने के रास्ते पर ही 'भूषण ग्रामोफ़ोन शॉप' थी। ग्राहकों को सुनाए जा रहे गानों को सुनने के लिए भीमसेन वहीं खड़े हो जाते थे। एक दिन उन्होंने 'अब्दुल करीम ख़ान' का गाया 'राग वसंत' में 'फगवा' 'बृज देखन को' और 'पिया बिना नहि आवत चैन' ठुमरी सुनी। बस यहीं से युवा भीमसेन के मन में संगीत के प्रति रुचि बढ़ गई।

ट्रेनों में गाना गाकर टिकट के पैसे बचा लेते थे 'मिले सुर मेरा तुम्‍हारा' वाले भारत रत्‍न भीमसेन जोशी

टी.टी को टिकट के बदले सुनाया गाना

एक दिन भीमसेन घर से भाग निकले। मंजिल का पता नहीं था। रेल में बिना टिकट बैठ गये और बीजापुर तक का सफर किया। टी.टी. को राग भैरव में 'जागो मोहन प्यारे' और 'कौन-कौन गुन गावे' सुनाकर मुग्ध कर दिया। साथ के यात्रियों पर भी उनके गायन का जादू चल निकला। सहयात्रियों ने रास्ते में खिलाया-पिलाया। अंतत: वह बीजापुर पहुँच गये। गलियों में गा-गाकर और लोगों के घरों के बाहर रात गुज़ार कर दो हफ़्ते बीत गये। एक संगीत प्रेमी ने सलाह दी, ‘संगीत सीखना हो तो ग्वालियर जाओ।’ हालांकि वह ग्वालियर तो नहीं गए लेकिन पुणे पहुंच गए। जहां उन्होंने अपने करियर को नई उड़ान दी।

19 साल में पहली प्रस्तुति

वर्ष 1941 में भीमसेन जोशी ने 19 वर्ष की उम्र में मंच पर अपनी पहली प्रस्तुति दी। उनका पहला एल्बम 20 वर्ष की आयु में निकला, जिसमें कन्नड़ और हिन्दी में कुछ धार्मिक गीत थे। इसके दो वर्ष बाद वह रेडियो कलाकार के तौर पर मुंबई में काम करने लगे। अपने गुरु की याद में उन्होंने वार्षिक 'सवाई गंधर्व संगीत समारोह' प्रारम्भ किया था। पुणे में यह समारोह हर वर्ष दिसंबर में होता है। भीमसेन के पुत्र आनंद जोशी भी शास्त्रीय गायक एवं संगीतकार हैं।

ट्रेनों में गाना गाकर टिकट के पैसे बचा लेते थे 'मिले सुर मेरा तुम्‍हारा' वाले भारत रत्‍न भीमसेन जोशी

किसी को यकीन नहीं था कि पिता ही हैं भीमसेन

आनंद जोशी अपने पिता की तरह ही गाते हैं। आनंद ने एक बार बताया था कि, जब वह स्कूल में पढ़ते थे तो कोई नहीं जानता था कि उनके पिता पंडित भीमसेन जोशी हैं। आनंद ने जब यह बात सहपाठियों को बताई तो कोई भी विश्वास नहीं कर रहा था। आखिर में आनंद ने अपने दोस्तों को भीमसेन से मिलवाया, तब जाकर उन्हें यकीन हुआ कि हां आनंद भीमसेन के बेटे ही हैं।

मिले सुर मेरा तुम्हारा से मिली पहचान

पंडित भीमसेन जोशी को मिले सुर मेरा तुम्हारा के लिए याद किया जाता है, जिसमें उनके साथ बालमुरली कृष्णा और लता मंगेशकर ने जुगलबंदी की। 1985 से ही वे ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ के जरिये घर-घर में पहचाने जाने लगे थे। तब से लेकर आज भी इस गाने के बोल और धुन पंडित जी की पहचान बने हुए हैं।

ट्रेनों में गाना गाकर टिकट के पैसे बचा लेते थे 'मिले सुर मेरा तुम्‍हारा' वाले भारत रत्‍न भीमसेन जोशी

पुरस्कार व सम्मान

- भीमसेन जोशी को 1972 में 'पद्म श्री' से सम्मानित किया गया।

- भारत सरकार द्वारा उन्हें कला के क्षेत्र में सन 1985 में 'पद्म भूषण' पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

- पंडित जोशी को सन 1999 में 'पद्म विभूषण' प्रदान किया गया था।

- 4 नवम्बर, 2008 को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' भी जोशी जी को मिला।

National News inextlive from India News Desk

National News inextlive from India News Desk