शादी टूटने से ईसाई धर्म पर नहीं रहा विश्वास
भारत से लगाव रखने वाली एनी बेसेंट का जन्म 1 अक्टूबर 1847 को लंदन के 'वुड' परिवार में हुआ था। एनी के पिता एक डॉक्टर थे जबकि मां उनकी आयरिश थीं। एनी बेसेंट का विवाह 1867 में फ्रैंक बेसेंट नामक एक पादरी से हुआ था। परन्तु उनका वैवाहिक जीवन ज्यादा समय तक नहीं चल सका और वे 1873 में क़ानूनी तौर पे अलग हो गए। पति से अलग होने के पश्चात एनी ने न केवल लंबे समय से चली आ रही धार्मिक मान्यताओं बल्कि पारंपरिक सोचपर भी सवाल उठाने शुरू किए। बल्िक उन्होंने चर्च पर हमला करते हुए उसके काम करने के तरीकों और लोगों की जिंदगियों को बस में करने के बारे में लिखना शुरू किया। उन्होंने विशेष रूप से धर्म के नाम पर अंधविश्वास फ़ैलाने के लिए इंग्लैंड के एक चर्च की प्रतिष्ठा पर तीखे हमले किए थे। बस यहीं से ईसाई धर्म के प्रति उनका लगाव कम होता गया।

1893 में भारत आईं और भारतीयों को अपना समझा

सन 1882 में वे 'थियोसॉफिकल सोसायटी' की संस्थापिका 'मैडम ब्लावत्सकी' के संपर्क में आईं और पूर्ण रूप से संत संस्कारों वाली महिला बन गईं। सन् 1889 में उन्होंने घोषणा कर स्वयं को 'थियोसाफिस्ट' घोषित किया। भारतीय थियोसोफिकल सोसाइटी के एक सदस्य की मदद से वो साल 1893 में भारत पहुंचीं। उन्होंने पूरे भारत का भ्रमण किया। यहां उन्होंने देखा कि कैसे ब्रिटिश हुकूमत भारतीयों को शिक्षा, स्वास्थ्य या अन्य जरूरी चीजों से दूर रखती है। एनी ने भारतीयों के दर्द को समझा और इसके खिलाफ आवाज उठाई।
जब एक अंग्रेज महिला भारत की आजादी के लिए लड़ी
स्वतंत्रता आंदोलन में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ी लड़ाई

वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी शामिल हुईं और वर्ष 1916 में ‘होम रूल लीग’ जिसका उद्देश्य भारतीयों द्वारा स्वशासन की मांग था। सन 1917 में वो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं। इस पद को ग्रहण करने वाली वह प्रथम महिला थीं। उन्होंने "न्यू इंडिया" नामक समाचार पत्र प्रकाशित किया जिसमे उन्होंने ब्रिटिश शासन की आलोचना की और इस विद्रोह के कारण उन्हें जेल जाना पड़ा। गांधी जी के भारतीय राष्ट्रीय मंच पर आने के पश्चात, महात्मा गांधी और एनी बेसेंट के बीच मतभेद पैदा हुए जिस वजह से वह धीरे-धीरे राजनीति से अलग हो गईं। हालांकि एक अंग्रेज के तौर पर भारत के पक्ष में खड़े होकर अंग्रेजों के खिलाफ ही लड़ना उनकी हिम्मत का परिचय था।

भगवद्गीता का किया था अंग्रेजी में अनुवाद
एनी बेसेन्ट एक समाज सुधारक के अलावा बेहतरीन लेखिका भी थीं। उन्होंने कई किताबे लिखीं। खासतौर से भगवद्गीता से उनका काफी लगाव था। उन्होंने इसका अंग्रेजी-अनुवाद भी किया और पुस्तकों के लिए प्रस्तावनाएँ भी लिखीं। उनके द्वारा 'क्वीन्स हॉल' में दिये गये व्याख्यानों की संख्या लगभग 20 होगी। उन्होंने भारतीय संस्कृति, शिक्षा व सामाजिक सुधारों पर 48 ग्रंथों और पैम्फलेट की रचना की। भारतीय राजनीति पर लगभग 77 पुस्तकें लिखीं। उनकी मौलिक कृतियों में से चयनित 28 ग्रंथों का निर्माण हुआ। समय-समय पर 'लूसिफेर', 'द कामनवील' व 'न्यू इंडिया' के संपादन भी एनी बेसेन्ट ने किये।
जब एक अंग्रेज महिला भारत की आजादी के लिए लड़ी
मद्रास में हुआ देहांत
20 सितम्बर 1933 को अड्यार (मद्रास) में एनी बेसेंट का देहांत हो गया। उनकी इच्छा के अनुसार उनकी अस्थियों को बनारस में गंगा में प्रवाहित कर दिया गया।

National News inextlive from India News Desk

 

National News inextlive from India News Desk