पढ़ाई में रहे फर्स्ट
आज ही के दिन 1932 में अविभाजित भारत (गाह पंजाब, अब पाकिस्तान) में सिख परिवार में जन्में मनमोहन सिंह को मां अमृत कौर का प्यार काफी मिला. हालांकि मनमोहन की किशोरावस्था में ही उनकी मां की मौत हो गई थी. इसके बाद वे अपनी दादी के पास रहने लगे. इसके बाद जब इंडिया और पाकिस्तान में बंटवारा हुआ, तो उनका परिवार अमृतसर आ गया और मनमोहन सिंह हिंदू कॉलेज में पढ़ने लगे. पढ़ाई में हमेशा फर्स्ट आने वाले मनमोहन को सबसे काबिल और पढ़े-लिखे भारतीय राजजीतिज्ञ के तौर पर पहचाना जाता है. उनका बायोडाटा भारत ही नही दुनिया के कई राष्ट्राध्यक्षों को चुनौती देता है.

वित्त मंत्री बनने का मिला गौरव
साल 1991 में मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाकर तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी.नरसिंह राव ने देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को चौंका दिया. यही मनमोहन के राजनीति में प्रवेश का दरवाजा बना. जिसके चलते उन्होंने राजनीतिक करियर की शुरुआत की. जिस समय मनमोहन वित्त मंत्री बने, उस समय दुनिया भर में आर्थिक मंदी का दौर था. लेकिन मनमोहन की नीतियों के चलते भारत पर इसका असर तक नहीं पड़ा और यहीं से उनकी पहचान अर्थशास्त्री राजनीतिज्ञ के तौर पर बन गई.

पीएम बनकर खो गई साख

2004 में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जब उन्हें अपनी जगह पीएम बनाया, तभी से उनका ग्राफ गिरने का समय शुरू हो गया. उस समय सभी ने कहा कि वे इस पद पर डमी पीएम के रूप में रहेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. मनमोहन के साथ उनकी अर्थशास्त्री छवि हमेशा साथ रही. हालांकि कोयला घोटाला और 2जी घोटाले में उनकी इमेज को काफी धक्का लगा, लेकिन सीधे सहभागिता ने होने के कारण उन्हें सिर्फ आलोचना ही झेलनी पड़ी. फिलहाल इस पूरे मामले में उनकी साफ-सुथरी इमेज पर धब्बा तो लग चुका था.

विरोधियों ने किया सम्मान
ऐसी बहुत सी बातें हैं, जो मनमोहन सिंह की जिंदगी से जुड़ी हैं, लेकिन एक बात जो हमेशा उनके साथ चलती है. वह है उन्हें मिलने वाला सम्मान, मनमोहन किसी भी पद पर रहे हों, लेकिन प्रतिद्वंद्वियों ने हमेशा उन्हें आदर और सम्मान दिया. अमेरिकी प्रेसीडेंट बराक ओबामा ने तो मनमोहन के लिये व्हाइट हाउस का प्रोटोकाल तक तोड़ दिया था. इसके अलावा नरेंद्र मोदी ने पीएम पद की शपथ लेने के अगले ही दिन उनसे घर जाकर मुलाकात की थी. मनमोहन की इमेज एक ऐसे अर्थशास्त्री राजनेता की रही है, जो न चाहते हुये भी विवादों में रहा. स्वभाव से शर्मीले, हमेशा चुपचाप रहकर काम करने में भरोसा रखने वाले मनमोहन का सिर्फ एक शौक था, पढ़ना और पढ़ते जाना.  

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