बढ़ गई कंप्लेंट

एक तरफ रेलवे प्रशासन यात्रियों को हाईजेनिक बेडशीट, टॉवल, कंबल प्रोवाइड करने का दावा करती है ताकि यात्रियों को अच्छी क्वालिटी के लेनिन मिल सके। इसके लिए कपड़ों की धुलाई पर प्रॉपर निगरानी की बाते भी करती हैं, लेकिन इन दिनों तो रेलवे प्रशासन यात्रियों को अनहाईजेनिक बेडशीट, टॉवल, कंबल हैंड टॉवल आदि प्रोवाइड कर उनके सेहत के साथ खिलवाड़ कर रही है। जिसके चलते यात्रियों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। आलम यह है कि ट्रेन में पहुंचाए जाने वाले बेडशीट आदि की धुलाई गोरखपुर की बजाय दूसरे शहरों में कराई जा रही है।

क्या है खेल

दरअसल, ट्रेन में पहुंचाए जाने वाले बेडशीट, टॉवल, कंबल हैंड टॉवल आदि की धुलाई का काम जिस कांट्रैक्टर के जिम्मे था उससे रेल प्रशासन ने मार्च में कांट्रैक्ट छीन लिया और अपने हाथ में ले लिया, लेकिन हैरत की बात यह है कि तब से कपड़ों की धुलाई की क्वालिटी एकदम से घटिया हो चुकी है। यह हम नहीं बल्कि लाउंड्री में काम करने वाले कर्मचारी भी कह रहे हैं। उधर इस मामले में कांट्रेक्टर का कहना है कि फरवरी 2015 तक उसका कांट्रैक्ट था, लेकिन रेलवे प्रशासन ने सफाई व्यवस्था में तमाम खामिया निकालते हुए पहले ही सेवा लेना बंद कर दिया है।

एक मशीन से हो रही है कपड़ों की धुलाई

जंक्शन पर कपड़ों की सफाई करने वाले कर्मचारियों का कहना है कि यहां मैन पावर की कमी है। इसके चलते धुलाई में क्वालिटी नहीं आ रही है। पहले जहां चार लाउंड्री मशीनें धुलाई का काम करती थी, वहीं आज एक मशीन से धुलाई का काम हो रहा है, वह भी किसी तरह से। एक कर्मचारी ने बताया कि इस वक्त तो एक ही वाशिंग मशीन काम कर रहा है, जबकि दो मशीन होनी चाहिए। इसके अलावा जहां पहले तीन शिफ्ट में सफाई के लिए कर्मचारी तैनात थे। वहीं आज एक शिफ्ट में धुलाई का काम हो रहा है।

लखनऊ और वाराणसी से हो रही है कपड़ों की धुलाई

जंक्शन पर कपड़ों की धुलाई करने वाले कर्मचारियों की मानें तो करीब दस ट्रेंस में पहुंचाए जाने वाले बेडशीट, तकिया का गिलाफ, हैंड टॉवल आदि अब सिर्फ दो गाडिय़ों गोरखधाम सुपरफास्ट एक्सप्रेस और पूर्वांचल एक्सप्रेस में पहुंचाए जा रहे हैं। बाकी की गाडिय़ों में पहुंचाए जाने वाले बेड शीट, कंबल, तकिया का गिलाफ आदि की सफाई लखनऊ, वाराणसी, देहरादून और जम्मू से की जा रही है। इस चक्कर में कई साफ हुए बेड शीट, तकिया का गिलाफ, कंबल आदि के गोरखपुर पहुंचने में वक्त लग रहा है। जो कपड़े धुलाई कर आ भी रहे हैं वह पूरी तरह से साफ नहीं है।

विवाद की जड़ क्या है

दरअसल, रेलवे प्रशासन ने कंचन ड्राई क्लीनर्स को कपड़ों की धुलाई के लिए ठेका दिया था। पिछले दस साल से लगातार ट्रेन में पहुंचाए जाने वाले कपड़ों की धुलाई कंचन ड्राई क्लीनर्स करती आ रही थी, लेकिन कांट्रैक्टर द्वारा जब रेलवे प्रशासन से सर्विस टैक्स की डिमांड की गई तो रेलवे प्रशासन ने सर्विस टैक्स देने से इंकार कर दिया। कांट्रैक्टर की मानें तो टेंडर नोटिस के मुताबिक, कपड़ों की धुलाई की जितने की बिलिंग होगी, उस पर 12.36 प्रतिशत के हिसाब से सर्विस टैक्स रेलवे प्रशासन कांट्रैक्टर को पे करेगा। वहीं रेलवे प्रशासन की मानें तो कपड़ों की धुलाई में क्वालिटी अच्छी नहीं थी। जिसके चलते कांट्रैक्टर से कांट्रैक्ट छीन लिया गया।

व्हील सर्फ से हो रही है धुलाई

धुलाई करने वाले कर्मचारी बताते हैं कि जहां पहले अच्छी क्वालिटी के केमिकल का यूज किया जाता था। वहीं इन दिनों व्हील और घड़ी जैसे सर्फ से धुलाई का काम हो रहा है। जिद्दी दाग को खत्म करने के लिए ये सर्फ हल्के मानें जा रहे हैं। जबकि रेलवे बोर्ड द्वारा चाय, काफी, ब्लड आदि के स्पॉट को खत्म करने के लिए स्पेशलाइज्ड केमिकल निर्धारित किए गए हैं। इन दिनों मानकों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।

मैं गोरखधाम सुपर फास्ट से नई दिल्ली जा रहा था। जो बेड शीट और कंबल दिए गए थे। उसमें से स्मैल आ रही थी। हालांकि मैने चेंज करने के लिए बोला था, लेकिन सिर्फ बेड शीट चेंज किया और कंबल तो वहीं पुराना वाला ही था।

सुधाकर सिंह, पैसेंजर

रेलवे प्रशासन लाख बड़े-बड़े दावे कर ले, लेकिन सब हवा हवाई। ट्रेन में सफर करना महंगा हो गया है, लेकिन आज भी बेड शीट, हैड टॉवल गंदे ही दिए जाते हैं। जबकि रेलवे प्रशासन को इसकी सख्ती से निगरानी करनी चाहिए और गंभीरता से लेना चाहिए।

प्रदीप कुमार, पैसेंजर

रेलवे प्रशासन यात्रियों की सुविधा के लिए प्रतिबद्ध है। उन्हें बेहतर सुविधा मिल सके और कोई दिक्कत न हो इसके लिए चार जगहों पर रेलवे अपनी खुद की लाउंड्री मशीन लगाने जा रही है। रहा सवाल सफाई का तो इसके लिए जो भी प्रॉब्लम आ रही होगी उसे दूर कर लिया जाएगा।

आलोक कुमार सिंह, सीपीआरओ, एनई रेलवे

report by : amarendra.pandey@inext.co.in