कंपनी का देनी पड़ सकती है ड्यूटी
खिलौने बनाने वाली कंपनी फनस्कूल इंडिया के लिये यह मामला काफी गंभीर है. कोर्ट का एक फैसला कंपनी के बिजनेस पर भारी पड़ सकता है. अगर कोर्ट ने यह तय किया कि उसके ये प्रोड्क्ट खिलौने न होकर गेम्स हैं, जिनमें काफी हद तक प्रतियोगिता की भावना की जरूरत होती है, तो कंपनी को इनकी कीमत के हिसाब से 16 परसेंट की ड्यूटी चुकानी होगी. वहीं दूसरी ओर अगर कोर्ट तय करता है कि ये सिर्फ खिलौने हैं, तो कंपनी ड्यूटी चुकाने से बच जायेगी.

क्या है नियम

एक्साइज टैरिफ एक्ट 1985 के मुताबिक एजुकेशनल टॉएज, पजल्स और अन्य खिलौने बनाने और बेचने पर कोई ड्यूटी नहीं लगती. गेम्स, टेबल या पार्लर गेम्स और सभी बोर्ड या डाइस वाली गेम्स टैक्सेबल हैं. वहीं पार्लर में खेली जाने वाली गेम्स, जैसे कैरम, लूडो और चेस टैक्सेबल हैं. इसी तरह से टेबिल टेनिस पर भी ड्यूटी लगती है.

प्रोड्क्टस पर लगे गलत मानक

कंपनी द्वारा फाइल की गई याचिका में कहा गया है कि कस्टम्स एक्साइज एंड सर्विस टैक्स अपेलेट ट्राइब्यूनल (CESTAT) ने उसके 18 प्रोड्क्ट्स को गेम्स की कैटैगरी में डाल दिया है. कंपनी का कहना है कि एक्साइज डिपार्टमेंट ने इन प्रोड्क्ट्स पर गलत मानक लागू किये हैं. यह याचिका 13 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई थी, जिसे कोर्ट ने जांचने के लिये स्वीकार कर लिया है. बेंच ने एक्साइज डिपार्टमेंट को नोटिस भेजा है, लेकिन CESTAT के आदेश पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है.

कंपनी बुरी तरह से परेशान
कंपनी ने यह भी कहा है कि जब उसने सांप सीढ़ी और मनॉपली को गेम्स तब डिपार्टमेंट ने इस बात के लिये दबाव डाला के दूसरे गेम्स, जिनमें स्किल चाहिये होते हैं या डाइस के आधार पर मौके मिलते हैं उन्हें पार्लर गेम्स माना जाये और टैक्स लगाया जाये. CESTAT ने सिर्फ 8 आइटम्स को खिलौनों की कैटेगरी में डाला, जिनपर टैक्स नहीं लगा. कंपनी ने अपील की है कि इसके 18 प्रोड्क्ट्स को खिलौना घोषित किया जाये. इसके अलावा कंपनी का कहना है कि इसने बच्चों के लिये बहुत छोटे खिलौने तैयार किये हैं, लेकिन उन्हें भी गेम्स बताया जा रहा है.  

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