न्यायमूर्ति राजीव शकधर की खंडपीठ के समक्ष बिहार स्थित तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के निरीक्षक मनिंद्र कुमार सिंह ने बताया कि राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय द्वारा कथित तौर पर जारी किए गए प्रोविजिनल सर्टिफिकेट की जांच की गई. इसमें पता चला है कि तोमर ने 18 मई, 2001 को रजिस्ट्रार राजेंद्र प्रसाद सिंह के हस्ताक्षर से जारी प्रोविजनल सर्टिफिकेट नंबर 3687 को अपना दिखाया है.  इसमें तोमर को द्वितीय श्रेणी में पास दिखाया गया है लेकिन अवध विश्वविद्यालय से इस नंबर का प्रमाणपत्र तोमर को नहीं बल्कि 29 जुलाई, 1999 को किसी अन्य संजय कुमार चौधरी को बीए आनर्स राजनीति विज्ञान की परीक्षा के लिए जारी किया गया है. इतना ही नहीं, यह प्रमाणपत्र राजेंद्र प्रसाद के हस्ताक्षर से नहीं बल्कि डॉ. गुलाम मुस्तफा के हस्ताक्षर से जारी किया गया था, जिससे स्पष्ट होता है कि प्रमाणपत्र फर्जी है और जाली हस्ताक्षर से बनाया गया था. निरीक्षक ने बताया कि तोमर ने खुद को लॉ डिग्री धारक दिखाते हुए बार काउंसिल आफ इंडिया (बीसीआइ) से पंजीकृत करवाया और स्वयं को हाई कोर्ट में बतौर अधिवक्ता कार्यरत दिखाया है. यह सब मनगढ़ंत है. कोर्ट ने मामले में अवध विश्वविद्यालय से भी जवाब मांगा है.

पेश मामले में याचिकाकर्ता संतोष कुमार शर्मा का आरोप है कि कानून मंत्री जितेंद्र तोमर ने अवध विश्वविद्यालय से नकली स्नातक की डिग्री के आधार पर भागलपुर विश्वविद्यालय से संबद्ध विश्वनाथ सिंह इंस्टीटयूट ऑफ लीगल स्टडीज कॉलेज में दाखिला ले लिया था. आरटीआइ के जवाब में डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय-फैजाबाद के परीक्षा नियंत्रक ने 22 जनवरी, 2015 को पत्र भेज कर स्पष्ट किया है कि तोमर की उपाधि, अंकपत्र एवं अनुक्रमांक पूर्णतया फर्जी हैं.

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