अपनों का साथ है जरूरी
शरीर की सुंदरता से ज्यादा जरुरी अपनों के बीच रहना है। परिवार को ज्यादा से ज्यादा वक्त देने के लिए कुछ भी करने पड़े तो मै तैयार हूं। ये कहना है कविता घोष का। कविता पिछले चार सालों से ब्रेस्ट कैंसर से जूझ रही हैं। कैंसर जैसे जानलेवा बीमारी से पीडि़त होने के बाद इनके मन में जीने की आशा है। सिटी स्थित मेहरबाई टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल में कविता की ही तरह ऐसे कई पेशेंट हैं जो इस जानलेवा बीमारी से लड़ रही हैं।
खूबसूरती से कहीं ज्यादा जरूरी है जिंदगी
मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मेरी वाइफ की मेस्टेकटॉमी सर्जरी की गई है। वो आज भी मेरे लिये उतनी ही खूबसुरत है जितनी पहले थी। मेरे मन में उसके लिये प्यार और रिस्पेक्ट वक्त के साथ और भी बढ़ गया है। अगर इंसान नही रहेगा तो ऐसी ब्यूटी का क्या मतलब। लाइफ ज्यादा जरूरी है ब्यूटी नहीं और अगर इस ट्रीटमेंट के द्वारा ही यह डीजिज को कंट्रोल करना संभव है तो मैं चाहता हूं कि वो अपना इलाज जरूर करायें। ऐसा कहना है राम जी रॉय का जिनकी वाइफ शांति देवी ब्रेस्ट कैंसर की बीमारी से जूझ रही हैं। उन्होंने बताया कि 2 साल पहले दिल्ली में मेस्टेकटॉमी सर्जरी के दौरान उनकी वाइफ का एक बे्रस्ट निकाल दिया गया है।
बढ़ रहे है breast cancer के मामले
महिलाओं के बीच ब्रेस्ट कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। सिटी स्थित मेहरबाई कैंसर हॉस्पिटल में पिछले साल कैंसर के 24 सौ नए मामले आए। डॉ पी एन राजलक्ष्मी बताती हैं कि इन पेशेंट्स में से करीब 15 पर्सेंट ब्रेस्ट कैंसर के मामले हैं डॉ एम सी माझी बताते हैं कि हॉस्पिटल में आने वाले महिला पेशेंट्स में करीब 40 पर्सेंट ब्रेस्ट कैंसर से पीडि़त होती हैं। हाल ही में किए गए स्टडी में बताया गया है कि कंट्री में 28 में से 1 महिला में लाइफटाइम के दौरान ब्रेस्ट कैंसर डेवलप होने का रिस्क होता है। अर्बन एरियाज में ब्रेस्ट कैंसर का ये खतरा और भी ज्यादा है। अर्बन एरियाज में जहां 22 में से एक महिला में इस बीमारी के डेवलप होने का रिस्क होता है वहीं रुरल एरियाज में ये खतरा 60 में से एक महिला को है। कंट्री में 43 से लेकर 46 साल तक की महिलाओं को हाई रिस्क ग्र्रुप में कंसीडर किया जाता है।
देर करके आते हैं patient
कैंसर से पीडि़त पेशेंट्स के लिए हर दिन इंपोर्टेंट होता है पर अवेयरनेस की कमी और गरीबी की वजह से अक्सर ब्रेस्ट कैंसर के पेशेंट ट्रीटमेंट करवाने में देरी कर देती हैं। डॉ पी एन राजलक्ष्मी ने बताया कि हॉस्पिटल में आने वाले ब्रेस्ट कैंसर के ज्यादातर पेशेंट बीमारी के काफी एडवांस स्टेज में होती हैं। उन्होंने बताया कि कई पेशेंट बीमारी के स्टेज 3 और 4 में आती हैैं जिनमें सर्वाइवल रेट 3 साल से भी कम होता है। उन्होंने बताया कि अगर स्टेज 1 में भी बीमारी को आईडेंटिफाई कर ट्रीटमेंट स्टार्ट कर दिया जाए तो सर्वाइवल रेट 15 साल से ज्यादा नहीं होता।
क्या है वजह?
डॉ पी एन राजलक्ष्मी बताती है कि ब्रेस्ट कैंसर होने का एक मुख्य कारण हार्मोनल डिसबैलेंस है। उन्होंने बताया कि ऐसी महिलाओं में जो कभी प्रेग्नेंट ना हुई हो ब्रेस्ट कैंसर डेवलप होने के ज्यादा चांसेज होते हैं। उन्होंने बताया कि ब्रेस्टफीडिंग से बॉडी में प्रोलैक्टिन हार्मोन का सिक्रीशन होता है जो शरीर में हार्मोनल बैलेंस को बनाए रखने का काम करता है। इसके अलावा उन्होंने बताया कि अगर किसी महिला की फैमिली में ब्रेस्ट कैंसर की हिस्ट्री है तो उसमें भी ये बीमारी डेवलप होने के करीब 25 पर्सेंट चांसेज रहते हैं।
क्या हैं symptoms?
ब्रेस्ट कैंसर के भी कुछ सिम्पटम्स होते हैं जिनकी पहचान कर सही समय पर इसके ट्रीटमेंट की प्रक्रिया स्टार्ट की जा सकती है। डॉ माझी बताते हैं कि अगर ब्रेस्ट में किसी तरह की गिल्टी डेवलप हो तो ये कैंसर का लक्षण हो सकता है। इसके अलावा उन्होंने बताया कि अगर किसी यंग लडक़ी के ब्रेस्ट से किसी तरह के सिक्रीशन या कोई ऐसी लडक़ी जो मां ना बनी हो उसे ब्रेस्ट से मिल्क का सिक्रीशन हो तो ये ब्रेस्ट कैंसर का सिम्पटम हो सकता है। इसके अलावा ओल्ड एज की किसी महिला के ब्रेस्ट से भी सिक्रीशन हो तो ब्रेस्ट कैंसर डेवलप होने के चांसेज हो सकते हैं। डॉ माझी बताते हैं कि हर महिला को घर पर ही ब्रेस्ट में आए किसी गिल्टी या किसी अंयूजूअल बदलाव की पहचान करनी चाहिए और किसी भी डाउट के सूरत में तुरंत डॉक्टर से कंसल्ट करना चाहिए।

मुझे ब्रेस्ट कैंसर है। इस रियेलिटी को एक्सेप्ट करना और इस सिचूएशन में खुद को हैंडल करना काफी मुश्किल था मेरे लिये। पर मैंने ये फैक्ट एक्सेपट कर इसका ट्रीटमेंट कराया। पहले से ज्यादा आज खुद को कॉन्फिडेंट फील करती हूं।
-कविता घोष, पेशेंट

अगर ब्रेस्ट में कभी रफनेस, थिकनेस, गिल्टी या अंयूजवल फील हो तो सेल्फ ब्रेस्ट एग्जामिनेशन एक जरिया है ब्रेस्ट कैंसर को जानने का। जिससे आप अर्ली स्टेज में ही इस डीजिज का पता कर ट्रीटमेंट करा सकते हैं।
-डॉ पीएन राजलक्ष्मी

मार्डनिटी के चक्कर में और फिगर कांशियस वीमेन बे्रस्ट फीडिंग अवोयड करती हैं पर यह सोच गलत है। प्रेग्नेंसी के 4 वीक्स तक ब्रेस्ट फीडिंग कराना मस्ट होता है। ब्रेस्ट फीडिंग ना कराने वाली लेडिज में ही ब्रेस्ट कैंसर के ज्यादा मामले देखने को मिलते हैं।
डॉ एमसी माझी

मेरी वाइफ भी ब्रेस्ट कैैंसर से पीडि़त थी। उसकी ब्रेस्ट रिमूवल सर्जरी हुई है। पर आज भी मेरे   मन में उसके लिये वही प्यार और रिस्पेक्ट है, जो पहले हुआ करती थी। मेरा मानना है कि ब्यूटी से ज्यादा लाइफ इम्र्पोटेंट होती है। कहा भी गया है कि जान है तो जहान है।
-रामजी रॉय

 

Report by : abhijit.pandey@inext.co.in