मगर, आपको ये जानकर हैरानी होगी कि बिजनेसमैन आमिर को बैंक से एक लाख रुपए निकालने में डेढ़ घंटे से ज्यादा समय लगा। इस ट्रांजेक्शन ने आमिर को बुरी तरह एग्जास्ट कर दिया। आमिर की तरह कई बैंक कस्टमर्स ऐसे हैं जिनको कैश निकालने के दौरान इसी तरह की प्रॉब्लम्स फेस करनी पड़ रही है। तो आइए आपको बताते हैं कि आखिर कस्टमर्स को ये प्रॉब्लम क्यों फेस करनी पड़ रही है.

Check करने के बाद होते हैं जमा

बैंक के कैश काउंटर पर फाइनेंशियल ट्रांजेक्शन करते वक्त नोटों की टू-फेज में सॉर्टिंग की जाती है। मतलब, पैसा निकालने और जमा करने से पहले कैशियर मैन्युअली और मशीन की मदद से यह चेक करता है कि नोट नकली तो नहीं है। इस पूरे प्रॉसेस में मैक्जिमम 10-15 मिनट का वक्त लगता है। आम तौर पर ठीक उल्टा होता है। नोट सॉर्ट करने का प्रॉसेस काफी टाइम टेकिंग हो चुका है। इसका असर अब छोटे कस्टमर्स पर भी पड़ रहा है।

इसलिए है सख्ती

बैंक्स में नकली नोट मिलने का सिलसिला लगातार जारी है। कैश जमा करने और निकालने के दौरान कैशियर कोई रिस्क नहीं लेना चाहते। दरअसल, नकली नोट मिलने पर कैशियर को अपनी जेब से भुगतान करना पड़ता है। इसीलिए कस्टमर्स को कैश काउंटर पर लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। अमाउंट छोटा हो या बड़ा। 5-10 मिनट के फाइनेंशियल ट्रांजेक्शन के लिए कस्टमर्स को एक से डेढ़ घंटे खड़ा रहना पड़ रहा है।

हर महीने 10 FIR

कानपुर में आरबीआई की ओर से हर महीने औसतन 10 एफआईआर दर्ज कराई जाती है। मुकदमा बैंक के मैनेजर के खिलाफ होता है। आखिर में इस केस में होता क्या है? नकली नोटों की एफआईआर से जुड़े मामले देख रहे विजिलेंस ऑफिसर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि आमूमन जांच में बैंक मैनेजर की कोई गलती नहीं पाई जाती। इस पर एफआर (फाइनल रिपोर्ट) लगाकर फाइल क्लोज कर दी जाती है। गलती मिलने पर या तो मैनेजर को लीगल एक्शन फेस करना पड़ता है। या उतने ही एमाउंट के असली नोट अपनी सैलरी से देने पड़ते हैं।

SBI में आईं नई मशीनें

बीते दिनों आरबीआई ने सभी सरकारी-प्राइवेट बैंक्स को निर्देश दिए थे कि नकली नोटों की धरपकड़ के लिए अपनी-अपनी ब्रांचेज में नोट सॉर्टिंग मशीन लगवाएं। कुछ बैंक्स ने इन रूल्स को फॉलो किया जबकि कुछ बैंक्स में अब तक नोट सॉर्टिंग मशीन्स नहीं लग सकी हैं। नतीजतन, नकली नोट मिलने का सिलसिला जारी है। एसबीआई के एजीएम पीपी चाचरा ने बताया कि कानपुर में बैंक की सभी 85 ब्रांचेज में से 18 में सॉर्टिंग मशीनें लगी हैं।

नहीं पकड़ में आ रहे

ऐसा नहीं है कि शहर में नकली नोट बाहर से लाए जाते हैं। पिछले साल पुलिस ने किदवई नगर में नकली नोट छपाई का भंडाफोड़ किया था। मौके से पुलिस को नकली नोट छापने की मशीन, पेपर, इंक, सांचा बरामद किया था। एक नेशनलाइज्ड बैंक के सीनियर ऑफिसर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि मौजूदा समय में जिस कागज पर नोटों की छपाई हो रही है। वो अप टू द मार्क नहीं है। यही रीजन है कि नकली नोट पकड़ में नहीं आ रहे हैं।

Proposal हुआ reject

बैंक में नकली नोट मिलने पर एफआईआर ब्रांच मैनेजर के खिलाफ दर्ज कराई जाती है। इस कारण बैंक मैनेजर्स दहशत में हैं। नतीजा यह होता है कि बैंक मैनेजर सारा कामकाज छोडक़र कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाने पड़ते हैं। इस बाबत आरबीआई ने गवर्नमेंट ऑफ इंडिया को एक प्रपोजल अप्रूव करके भेजा था। प्रपोजल में यह कहा गया था कि अगर किसी बैंक में किभी भी वैल्यू के तीन नकली नोट मिलते हैं तो उस बैंक मैनेजर के खिलाफ कोई एक्शन न लिया जाए, लेकिन गवर्नमेंट ने आरबीआई के इस प्रपोजल को सिरे से रिजेक्ट कर दिया था। सर्विसमैन अवधेश श्रीवास्तव बताते हैं कि कुछ दिन पहले उनको एटीएम से पैसे निकाले तो उसमें एक हजार रुपए का एक नोट निकला था। उसको कोई भी लेने को तैयार नहीं था। बाद में पता चला नकली था.