वो पाकिस्ताकन के गुडविल मूव के नाम पर लौट कर अपने घर आए हैं पर किस घर जायेंगे, उनके अपने कौन हैं और वो किस कंधे पर सिर रख कर रोयेंगे ये उन्हें नहीं याद है. बस एक दर्द है और हड्डियों को सिहरा देने वाला डर है जो आंखों से टपकता है क्योंकि ज्यादातर की जुबान तो खामोश है. ये कहानी है पाकिस्तानी जेलों में बंद उन 40 प्रिजनर्स की जिन्हें पिछले दिनों रिहा किया गया.

इन कैदियों में से कुछ ने बताया कि उन्हें रॉ का एजेंट बता कर जिस तरह टार्चर किया जाता है वो ना बताने काबिल है ना सुनने के लायक. जिन्हें कुछ होश बाकी है उन्होंने बताया कि उनके जिस्म से खून निकाल कर कुत्तों को पिलाया जाता था और उन्हीं कुत्तों को फिर जिंदा इंडियन प्रिजनर्स पर छोड़ दिया जाता था, जो उनका मांस नोच नोच कर खाते थे. कई प्रिजनर्स को तीन साल तक टार्चर सेल में बंद करके रह रह करेंट लगाया जाता है.  

प्रिजनर्स में ज्यादातर तो इस अनहृयूमन फिजिकल और मेंटल टार्चर के बाद मेंटली डिसबैलेंस हो चुके हैं. कुछ गंगे बहरे हो गये हैं और कई की याददाश्तच जा चुकी है. इन्हें अपने घर का पता तक याद नहीं है. कुछ को नाम याद है तो कुछ को डिस्टिक और कुछ को स्टेट बस. ये भी पता चला कि इन प्रिजनर्स को इंपोटेंट बनाने की मैडिसिन भी दी जाती थी. इनमें कुछ जो थोड़ा बहुत बताने लायक बचे है उन्होंने बताया कि अभी कई प्रिजनर्स पाकिस्तानी जेलों में बंद हैं.

पाकिस्तान से सेटरडे नाइट 11:30 बजे अटारी पहुंचे 40 इंडियन प्रिजनर्स में से एक मुबारक हुसैन शाह ने बताया कि 1971 के वॉर प्रिजनर्स पाकिस्तान में मुल्तान और स्वात की जेलों में बंद हैं. इस समय रावलपिंडी जेल में सात कैदी बंद हैं. इनमें पठानकोट के पंकज कुमार, लुधियाना के मुहम्मद असमई, अखनूर के मुहम्मद इकबाल शामिल हैं. 'दैनिक जागरण' की खबर के अकॉर्डिंग  सभी 40 कैदियों में 35 मछुआरे शामिल हैं. जबकि इनमें से तीन कैदी पागल हो चुके हैं और अपने घर का पता तक नहीं बता सकते.

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