जेल में ऐसे सैकड़ों कैदी बंद हैं जिन पर लूट, हत्या, डकैती जैसे संगीन मामले दर्ज हैं। लेकिन इनके बीच जेल की सलाखों की पीछे कुछ ऐसे भी कैदी हैं जिन्होंने कोई गुनाह नहीं किया है। ये हैं मासूम बच्चे। उनका दोष इतना है कि उनके पेरेंट्स ने कोई न कोई अपराध किया है। बाहर कोई सहारा न होने के कारण वो जेल में अपनी मां या पिता के साथ रहने को मजबूर हैं। कई ने तो सलाखों के बीच जेल की धरती पर ही जन्म लिया है। लेकिन जेल प्रशासन इन बच्चों की जिंदगी में मुस्कान लाने का हर प्रयास कर रहा है। बच्चों के लिए न सिर्फ कपड़े, खिलौने की व्यवस्था करता है बल्कि उन्हें सिविल लाइन्स के टॉप कॉनवेंट स्कूल में पढऩे के लिए भी भेजा जाता है। इसके साथ ही कई कैदी भी सलाखों के पीछे से हाईस्कूल, इंटर व ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल कर रहे हैं। इनके लिए इग्नू दिल्ली ओर यूपी बोर्ड से फॉर्म भरने की व्यवस्था है. 
जेल के अंदर पाठशाला
जेल में रहने वाले निर्दोष बच्चों का एडमिशन सिविल लाइन्स के एक फेमस कॉन्वेंट स्कूल में कराया जाता है। जिसका सारा खर्च जेल प्रशासन उठाता है। उनको पढ़ाने के लिए एक टीचर भी जेल में आता है। वह उनकी पढ़ाई की देखरेख करता है। उनको वैन से स्कूल भेजा जाता है, ताकि कोई दिक्कत न हों। जेल में पढ़े लिखे कैदी होम वर्क आदि कराने में उनकी मदद करते हैं। इसके साथ ही उनकी कॉपी, किताब, बैग आदि की व्यवस्था भी जेल प्रशासन करता है. 
पहचान रखी जाती है गुप्त
जेल से स्कूल पढऩे जाने वाले बच्चे की पहचान गुप्त रखी जाती है। उसके बारे में सिर्फ प्रिंसिपल को ही मालूम होता है। उनकी क्लास टीचर समेत अन्य स्टॉफ को भी उसके बारे में नहीं बताया जाता है। वे आम बच्चों के बीच में पढ़ाई करते हैं वे स्कूल की हर एक्टिविटी में हिस्सा भी लेते हैं प्रिंसिपल हर सप्ताह उनकी रिपोर्ट लेती है, ताकि वहां पर उसको कोई परेशानी न हो। साथ ही जेल अधीक्षक भी हर महीने प्रिंसिपल से बच्चों की रिपोर्ट लेते हैं 
‘बिटिया’ ने किया टॉप
मां के गुनाहों की वजह से मजबूरी में जेल में रहने वाले निर्दोष बच्चे यहां पर सीमित संसाधन के बीच पढ़ते हैं। इसके बावजूद कई बच्चों ने स्कूल में टॉप किया है। जेल में पति की हत्या के आरोप में बन्द एक महिला की बेटी ने सिविल लाइन्स के एक फेमस कान्वेंट स्कूल में टॉप किया था। जेल में उसको प्यार से बिटिया कहा जाता था। इसके अलावा जेल में रहने वाले कई बच्चों की स्कूल में मेधावी स्टूडेंट के रूप में पहचान रही है। इस समय जेल में नौ बच्चे अपनी मांं के साथ रह रहे हैं। जिसमें दो बच्चे स्कूल में पढऩे जा रहे हैं.
सभी रखते हैं इनका ख्याल 
जेल अधीक्षक के मुताबिक अगर कोई महिला किसी जुर्म के आरोप में जेल भेजी जाती है और उस समय उसके बच्चे की उम्र नौ साल से कम हो, तो वह अपने बच्चे को साथ में रख सकती है। इसके अलावा अगर कोई गर्भवती महिला न्यायिक हिरासत में बच्चे को जन्म देती है, तो वह बच्चा भी मां के साथ जेल में रहता है। इन बच्चों को जेल की महिला बैरक में रखा जाता है। यहां पर उनकी सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा जाता है। वे महिला बैरक की सर्किल में ही खेलते हैं। उन्हें पक्के (पुराने कैदी) और बन्दी रक्षकों की निगरानी में रखा जाता है, ताकि कोई भी बन्दी या कैदी उनको नुकसान न पहुंचा सके. 
किस्मत अच्छी है या बुरी
जेल में पति की हत्या के आरोप में बन्द एक महिला घटना से पहले कच्ची बस्ती में रहती थी। उसका पति मजदूरी करके फैमिली का पेट पाल रहा था। ऐसे में महिला ने प्रेमी के साथ मिलकर उसकी हत्या कर दी। जेल में उसने एक बेटी को जन्म दिया था। जेल प्रशासन ने तीन साल की उम्र में उसका एडमिशन सिविल लाइन्स के एक स्कूल में करा दिया। शायद ये बच्चे की किस्मत ही है कि उसे स्कूल नसीब हो गया वरना बाहर उसका जीवन कैसा होता, ये सोचना मुश्किल नहीं है। इस तरह के कई बच्चों ने जेल में मां के साथ रहकर पढ़ाई की है। जेल में ज्यादातर उस महिला बंदी के बच्चे साथ में रहते हैं, जिनका कोई सहारा नहीं होता है। ऐसे बच्चों का सिविल लाइन्स स्थित एक टॉप के कॉवेंट स्कूल में एडमिशन कराया जाता है।  
एनजीओ भी करते हैं हेल्प
जेल में हर फेस्टिवल भी धूमधाम से मनाया जाता है। जिसका इंतजाम जेल प्रशासन बंदियों के साथ मिलकर करता है। इसमें कई एनजीओ भी मदद करते हैं। हर फेस्टिवल में महिला बंदियों के साथ रहने वाले बच्चों का खास ख्याल रखा जाता है। उनके लिए नए कपड़े और खिलौने मंगाए जाते हैं। जेलर एके सिंंह के मुताबिक जेल मेें बच्चे को फेस्टिवल का इंतजार रहता है, ताकि उनको नए कपड़े और खिलौने मिलें.
हाईस्कूल से लेकर ग्रेजुएट तक
जेल में हत्या, किडनैपिंग, लूट जैसे संगीन मामलों के बंदी हाईस्कूल, इंटर, ग्रेजुएशन समेत अन्य कोर्स की पढ़ाई कर रहे हैं। इसमें आईएसआई एजेंट वकास भी है। यहां पर बंदियों के बीच पढ़ाई की होड़ मची है। इस साल तीन बंदियों का हाईस्कूल, नौ बंदियों का इंटर और दो बंदियों का ग्रेजुएशन का फॉर्म भरवाया गया है। इसके अलावा तीस बंदियों का इग्नू से फॉर्म भरवाया गया है। जेल में पढ़ाई करने वाले बंदी को कुछ सहुलियतें भी दी जाती हैं। उनको पढ़ाने के लिए एक टीचर बाकायदा जेल जाता है। इसके अलावा उनकी पढ़ाई के लिए जेल में एक पाठशाला भी है। जहां पर स्कूल की तर्ज पर बंदी पढ़ाई करते हैं। जिसका सारा खर्च जेल प्रशासन उठाता है. 
आईएसआई एजेंट कर रहा ग्रेजुएशन
जेल में हाई सिक्योरिटी बैरक में रखे गए आईएसआई एजेंट वकास ने तीन साल पहले इग्नू से पढ़ाई करने की इच्छा जताई थी। इसके लिए उसने जेल प्रशासन से फॉर्म भरवाने के लिए एप्लीकेशन भी दी थी, लेकिन जेल प्रशासन ने उसका फॉर्म नहीं भरवाया था। जिस पर उसने कोर्ट में गुहार लगाई। जिसमें सुनवाई के बाद कोर्ट ने उसका परीक्षा फॉर्म भरवाने की इजाजत दे दी थी. 
सभी बंदियों का एक एग्जाम सेंटर
जेल में रहकर पढ़ाई करने वाले बंदी या कैदी का यूपी बोर्ड और इग्नू से परीक्षा फॉर्म भरवाया जाता था। जिसके बाद परीक्षा के सेंटर पर वे पुलिस कस्टडी में पेपर देने जाते थे। इस साल उनके लिए नियम में बदलाव किया गया है। बंदियों की सुरक्षा के चलते अब यूपी बोर्ड से पूरे प्रदेश के बंदियों की परीक्षा का सेंटर फतेहगढ़ कर दिया है। नई व्यवस्था के चलते परीक्षा के समय उन्हें फतेहगढ़ सेंट्रल जेल भेज दिया जाता है। जहां से उनको परीक्षा केंद्र पर भेजा जाता है। वहीं, इग्नू से परीक्षा फॉर्म भरने वाले बंदियों का सेंटर लखनऊ में पडता है। इसके लिए उन्हें मॉर्डन जेल लखनऊ भेज दिया जाता है. 
जेल में महिला बंदियों के साथ रहने वाले बच्चों का एडमिशन सिविल लाइन्स के एक कॉन्वेंट स्कूल में कराया जाता है। उनको वैन से स्कूल भेजा जाता है। उनकी पढ़ाई का खर्च जेल प्रशासन उठाता है. 
पीडी सलोनिया, जेल अधीक्षक, कानपुर
जेल में ऐसे सैकड़ों कैदी बंद हैं जिन पर लूट, हत्या, डकैती जैसे संगीन मामले दर्ज हैं। लेकिन इनके बीच जेल की सलाखों की पीछे कुछ ऐसे भी कैदी हैं जिन्होंने कोई गुनाह नहीं किया है। ये हैं मासूम बच्चे। उनका दोष इतना है कि उनके पेरेंट्स ने कोई न कोई अपराध किया है। बाहर कोई सहारा न होने के कारण वो जेल में अपनी मां या पिता के साथ रहने को मजबूर हैं। कई ने तो सलाखों के बीच जेल की धरती पर ही जन्म लिया है। लेकिन जेल प्रशासन इन बच्चों की जिंदगी में मुस्कान लाने का हर प्रयास कर रहा है। बच्चों के लिए न सिर्फ कपड़े, खिलौने की व्यवस्था करता है बल्कि उन्हें सिविल लाइन्स के टॉप कॉनवेंट स्कूल में पढऩे के लिए भी भेजा जाता है। इसके साथ ही कई कैदी भी सलाखों के पीछे से हाईस्कूल, इंटर व ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल कर रहे हैं। इनके लिए इग्नू दिल्ली ओर यूपी बोर्ड से फॉर्म भरने की व्यवस्था है. 

 

जेल के अंदर पाठशाला

जेल में रहने वाले निर्दोष बच्चों का एडमिशन सिविल लाइन्स के एक फेमस कॉन्वेंट स्कूल में कराया जाता है। जिसका सारा खर्च जेल प्रशासन उठाता है। उनको पढ़ाने के लिए एक टीचर भी जेल में आता है। वह उनकी पढ़ाई की देखरेख करता है। उनको वैन से स्कूल भेजा जाता है, ताकि कोई दिक्कत न हों। जेल में पढ़े लिखे कैदी होम वर्क आदि कराने में उनकी मदद करते हैं। इसके साथ ही उनकी कॉपी, किताब, बैग आदि की व्यवस्था भी जेल प्रशासन करता है. 

पहचान रखी जाती है गुप्त

जेल से स्कूल पढऩे जाने वाले बच्चे की पहचान गुप्त रखी जाती है। उसके बारे में सिर्फ प्रिंसिपल को ही मालूम होता है। उनकी क्लास टीचर समेत अन्य स्टॉफ को भी उसके बारे में नहीं बताया जाता है। वे आम बच्चों के बीच में पढ़ाई करते हैं वे स्कूल की हर एक्टिविटी में हिस्सा भी लेते हैं प्रिंसिपल हर सप्ताह उनकी रिपोर्ट लेती है, ताकि वहां पर उसको कोई परेशानी न हो। साथ ही जेल अधीक्षक भी हर महीने प्रिंसिपल से बच्चों की रिपोर्ट लेते हैं 

‘बिटिया’ ने किया टॉप

मां के गुनाहों की वजह से मजबूरी में जेल में रहने वाले निर्दोष बच्चे यहां पर सीमित संसाधन के बीच पढ़ते हैं। इसके बावजूद कई बच्चों ने स्कूल में टॉप किया है। जेल में पति की हत्या के आरोप में बन्द एक महिला की बेटी ने सिविल लाइन्स के एक फेमस कान्वेंट स्कूल में टॉप किया था। जेल में उसको प्यार से बिटिया कहा जाता था। इसके अलावा जेल में रहने वाले कई बच्चों की स्कूल में मेधावी स्टूडेंट के रूप में पहचान रही है। इस समय जेल में नौ बच्चे अपनी मांं के साथ रह रहे हैं। जिसमें दो बच्चे स्कूल में पढऩे जा रहे हैं।

सभी रखते हैं इनका ख्याल 

जेल अधीक्षक के मुताबिक अगर कोई महिला किसी जुर्म के आरोप में जेल भेजी जाती है और उस समय उसके बच्चे की उम्र नौ साल से कम हो, तो वह अपने बच्चे को साथ में रख सकती है। इसके अलावा अगर कोई गर्भवती महिला न्यायिक हिरासत में बच्चे को जन्म देती है, तो वह बच्चा भी मां के साथ जेल में रहता है। इन बच्चों को जेल की महिला बैरक में रखा जाता है। यहां पर उनकी सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा जाता है। वे महिला बैरक की सर्किल में ही खेलते हैं। उन्हें पक्के (पुराने कैदी) और बन्दी रक्षकों की निगरानी में रखा जाता है, ताकि कोई भी बन्दी या कैदी उनको नुकसान न पहुंचा सके. 

किस्मत अच्छी है या बुरी

जेल में पति की हत्या के आरोप में बन्द एक महिला घटना से पहले कच्ची बस्ती में रहती थी। उसका पति मजदूरी करके फैमिली का पेट पाल रहा था। ऐसे में महिला ने प्रेमी के साथ मिलकर उसकी हत्या कर दी। जेल में उसने एक बेटी को जन्म दिया था। जेल प्रशासन ने तीन साल की उम्र में उसका एडमिशन सिविल लाइन्स के एक स्कूल में करा दिया। शायद ये बच्चे की किस्मत ही है कि उसे स्कूल नसीब हो गया वरना बाहर उसका जीवन कैसा होता, ये सोचना मुश्किल नहीं है। इस तरह के कई बच्चों ने जेल में मां के साथ रहकर पढ़ाई की है। जेल में ज्यादातर उस महिला बंदी के बच्चे साथ में रहते हैं, जिनका कोई सहारा नहीं होता है। ऐसे बच्चों का सिविल लाइन्स स्थित एक टॉप के कॉवेंट स्कूल में एडमिशन कराया जाता है।  

एनजीओ भी करते हैं हेल्प

जेल में हर फेस्टिवल भी धूमधाम से मनाया जाता है। जिसका इंतजाम जेल प्रशासन बंदियों के साथ मिलकर करता है। इसमें कई एनजीओ भी मदद करते हैं। हर फेस्टिवल में महिला बंदियों के साथ रहने वाले बच्चों का खास ख्याल रखा जाता है। उनके लिए नए कपड़े और खिलौने मंगाए जाते हैं। जेलर एके सिंंह के मुताबिक जेल मेें बच्चे को फेस्टिवल का इंतजार रहता है, ताकि उनको नए कपड़े और खिलौने मिलें।

हाईस्कूल से लेकर ग्रेजुएट तक

जेल में हत्या, किडनैपिंग, लूट जैसे संगीन मामलों के बंदी हाईस्कूल, इंटर, ग्रेजुएशन समेत अन्य कोर्स की पढ़ाई कर रहे हैं। इसमें आईएसआई एजेंट वकास भी है। यहां पर बंदियों के बीच पढ़ाई की होड़ मची है। इस साल तीन बंदियों का हाईस्कूल, नौ बंदियों का इंटर और दो बंदियों का ग्रेजुएशन का फॉर्म भरवाया गया है। इसके अलावा तीस बंदियों का इग्नू से फॉर्म भरवाया गया है। जेल में पढ़ाई करने वाले बंदी को कुछ सहुलियतें भी दी जाती हैं। उनको पढ़ाने के लिए एक टीचर बाकायदा जेल जाता है। इसके अलावा उनकी पढ़ाई के लिए जेल में एक पाठशाला भी है। जहां पर स्कूल की तर्ज पर बंदी पढ़ाई करते हैं। जिसका सारा खर्च जेल प्रशासन उठाता है. 

आईएसआई एजेंट कर रहा ग्रेजुएशन

जेल में हाई सिक्योरिटी बैरक में रखे गए आईएसआई एजेंट वकास ने तीन साल पहले इग्नू से पढ़ाई करने की इच्छा जताई थी। इसके लिए उसने जेल प्रशासन से फॉर्म भरवाने के लिए एप्लीकेशन भी दी थी, लेकिन जेल प्रशासन ने उसका फॉर्म नहीं भरवाया था। जिस पर उसने कोर्ट में गुहार लगाई। जिसमें सुनवाई के बाद कोर्ट ने उसका परीक्षा फॉर्म भरवाने की इजाजत दे दी थी. 

सभी बंदियों का एक एग्जाम सेंटर

जेल में रहकर पढ़ाई करने वाले बंदी या कैदी का यूपी बोर्ड और इग्नू से परीक्षा फॉर्म भरवाया जाता था। जिसके बाद परीक्षा के सेंटर पर वे पुलिस कस्टडी में पेपर देने जाते थे। इस साल उनके लिए नियम में बदलाव किया गया है। बंदियों की सुरक्षा के चलते अब यूपी बोर्ड से पूरे प्रदेश के बंदियों की परीक्षा का सेंटर फतेहगढ़ कर दिया है। नई व्यवस्था के चलते परीक्षा के समय उन्हें फतेहगढ़ सेंट्रल जेल भेज दिया जाता है। जहां से उनको परीक्षा केंद्र पर भेजा जाता है। वहीं, इग्नू से परीक्षा फॉर्म भरने वाले बंदियों का सेंटर लखनऊ में पडता है। इसके लिए उन्हें मॉर्डन जेल लखनऊ भेज दिया जाता है. 

जेल में महिला बंदियों के साथ रहने वाले बच्चों का एडमिशन सिविल लाइन्स के एक कॉन्वेंट स्कूल में कराया जाता है। उनको वैन से स्कूल भेजा जाता है। उनकी पढ़ाई का खर्च जेल प्रशासन उठाता है. 

पीडी सलोनिया, जेल अधीक्षक, कानपुर