ज़मानत पर रिहाई के बाद भट्ट ने कहा, ‘‘ मैं खुश हूं कि क़ानून का पालन हुआ है। यह उन लोगों की जीत है जो इस राज्य में सरकार समर्थित दंगों से प्रभावित हैं.जेल में बिताए दिन छुट्टी जैसे थे। मैं अब भी अपनी बात पर अडिग हूं। मैं जिस बात पर अड़ा हूं वो मेरे अस्तित्व से बढ़ कर है.’’

भट्ट ने अपने साथ हुए जेल में हुए कथित दुर्व्यवहार के बारे में पूछे जाने पर कहा, ‘‘ मैं इस बारे में तब तक कुछ नहीं कहूंगा जब तक इस बारे में कहने के लिए सही समय और फोरम नहीं मिलता.’’

उन्होंने गुजरात आईपीएस अधिकारियों के एसोसिएशन का शुक्रिया अदा किया। भट्ट की गिरफ़्तारी के बाद आईपीएस अधिकारियों ने भट्ट का समर्थन किया था। उन्होंने कहा, ‘‘ जेल में समय बिताने के बाद मैं और मज़बूत हुआ हूं। अब लड़ाई अगले चरण में जाएगी.’’

यह पूछे जाने पर कि क्या वो अपने ख़िलाफ़ लंबित सारे मामलों को गुजरात से दूसरे राज्य भिजवाने की कोशिश करेंगे तो उनका कहना था कि उन्हें इस समय जिस मामले में गिरफ़्तार किया गया है वो मामला राज्य से बाहर जाना चाहिए ताकि उसकी ठीक से जांच हो सके।

पुलिस के ही एक जूनियर अधिकारी केडी पंत ने भट्ट के ख़िलाफ़ शिकायत की थी कि भट्ट ने गुजरात दंगों के मामले में उनसे ज़बर्दस्ती बयान दिलवाया था। उनका कहना था, ‘‘अगर पंत के मामले की ठीक से जांच हुई तो यह सच सामने आ जाएगा कि कैसे राज्य सरकार गवाहों पर दबाव डालती है.’’

भट्ट का कहना था कि राज्य में हर काम इसी बात को ध्यान में रखकर किया जा रहा है कि 2002 के दंगों के प्रभावितों को न्याय न मिल सके। यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें डर है कि सरकार उनके ख़िलाफ़ और मामले ला सकती है तो संजीव का कहना था कि वो सरकार से डरते नहीं हैं और वो सरकार के ख़िलाफ़ अपनी लड़ाई जारी रखेंगे।

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