बचपना बिल्कुल भी नहीं

आज जो हम आपको बात बताने जा रहे हैं, वो भले ही बात बच्चों की हो लेकिन इसमें बचपना बिल्कुल भी नहीं है। मेट्रोपोलिटन शहरों में रहने वाले 85 परसेंट बच्चे टेक्नोलॉजी से युक्त गैजेट्स के साथ खेलते हैं। ऐसोचैम के सर्वे के मुताबिक इलेक्ट्रोनिक डिवाइस का ज्यादा इस्तेमाल करने से बच्चों में हेल्थ के साथ-साथ मेंटल प्रॉब्लम भी बढ़ रही है।

बच्चों पर सर्वे

हाल ही में एसोचैम ने मेट्रोपोलिटन सिटीज के बच्चों पर सर्वे किया। ये सर्वे पांच साल से लेकर 14 साल के बच्चों के बीच में किया गया था। इस सर्वे का नाम Who‘s kidding? : A Rising Trend In Metros था। सर्वे के मुताबिक महानगरों में रहने वाले 82 परसेंट बच्चे अपना खुद का मोबाइल फोन, टैबलेट और और आई पैड का यूज कर रहे हैं।

ये हो रहा नुकसान

सर्वे रिपोर्ट में बच्चों द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे हैं हाई टेक्नोलॉजी से युक्त इलेक्ट्रोनिक इस्तेमाल दुष्प्रभाव को बताया गया है। रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि इस तरह के डिवाइस को इस्तेमाल करने से बच्चों में सामाजिक अलगाव, अनिद्रा रोग, मोटापा और डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं। रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि बच्चों में मेंटल प्रॉब्लम तक बढ़ रही हैं।

बुरी है ये लत

63 परसेंट से अधिक अपने घरों में एक कंप्यूटर का उपयोग किया जाता है, जिससे बच्चों में टेक्नोलॉजी के प्रति जानकारी में जबरदस्त वृद्धि हुई है। जो लगातार जारी है। बच्चे हफ्ते में एक बार ऑनलाइन जरूर होते हैं। साथ 27 परसेंट से अधिक बच्चे रोज इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं। एसोचैम के जनरल सेकेट्री डीएस रावत का कहना है कि पेरेंट्स का सुपरविजन न होने से बच्चों को टेक्नोलॉजी आसानी से अवेलेबल हो जाती है। जो बच्चों में टेक्नोलॉजी की लत बढऩे का महत्वपूर्ण कारण हैं।

सोशल मीडिया के लिए इस्तेमाल

रिपोर्ट के मुताबिक दस बच्चों में से एक बच्चे के पास अपना मोबाइल फोन है। 60 परसेंट से अधिक बच्चे हर दूसरे दिन ऑनलाइन होते हैं। ऑनलाइन होने पर बच्चे सोशल मीडिया साइट्स को ज्यादा प्रिफर करते हैं, जो पिछले तीन सालों में 25 से 65 परसेंट हो गए हैं। सर्वे के अनुसार, 86 परसेंट बच्चों के कमरों में मोबाइल फोन, म्यूजिक सिस्टम, कंप्यूटर, टेलीविजन मौजूद हैं। वहीं इनमें से दो तिहाई बच्चों के कमरों में ये सब मौजूद हैं।

कंप्यूटर  

- 19 परसेंट बच्चों के पास अपना खुद का कंप्यूटर है।

- 27 परसेंट बच्चे इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं।

- 58 परसेंट बच्चे कंप्यूटर का इस्तेमाल करते हैं।

इंटनेट

- 46 परसेंट बच्चे इंटरनेट का इस्तेमाल अपने घरों में ही करते हैं।

- 19 परसेंट साइबर कैफे में करते हैं।

- 13 परसेंट स्कूलों में यूज करते हैं।

- 17 परसेंट अपने फ्रेंड्स ओर रिलेटिव्स के यहां देखते हैं।

बच्चों के हाथों में फोन

- 95 परसेंट बच्चे अपने घरों में मोबाइल फोन के साथ होते हैं।

- 73 परसेंट बच्चे मोबाइल फोन यूजर्स हैं।

- 9 परसेंट बच्चों के पास अपना खुद का मोबाइल फोन हैं।

 

ऑनलाइन एक्टीविटी

- 70 परसेंट बच्चे गेम्स डाउनलोड करते हैं या खेलते हैं।

- 62 परसेंट बच्चे इनफॉर्मेशन सर्च करते हैं।

- 53 परसेंट सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर ऑनलाइन होते हैं।

- 41 परसेंट म्यूजिक डाउनलोड करते हैं या सुनते हैं।

- 36 परसेंट बच्चे ईमेल को देखने और करने के रूप में यूज करते हैं।

- 27 परसेंट होमवर्क करने के लिए यूज करते हैं।

- 18 परसेंट बच्चे वीडियो देखते या डाउनलोड करते हैं।

- 17 परसेंट बच्चे चैटिंग के रूप में इस्तेमाल करते हैं।

- 10 परसेंट बच्चे वॉलपेपर डाउनलोड करते हैं।

- मात्र 5 परसेंट बच्चे स्पोट्र्स साइट्स विजिट करते हैं।

मोबाइल एक्टीविटी

- 84 परसेंट बच्चे मोबाइल का बात  करने में इस्तेमाल करते हैं।

- 83 परसेंट बच्चे मोबाइल पर गेम्स खेलते हैं।

- 56 परसेंट बच्चे मोबाइल पर म्यूजिक सुनते हैं।

- 45 परसेंट बच्चे एसएमएस के रूप में मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं।

- 35 परसेंट बच्चे वीडियो मोबाइल पर ही देखते हैं।

'बच्चों में टेक्नोलॉजी युक्त गैजेट्स की लत लगातार बढ़ती जा रही है। इसके जिम्मेदार पेरेंट्स है। पेरेंट्स की बच्चों पर सुपरविजन की कमी भी इसका कारण हैं। पेरेंट्स को बच्चों को इस बारे समझाना चाहिए। छोटी उम्र में मोबाइल कंप्यूटर और इंटरनेट काफी घातक परिणाम भी सामने लाते हैं.'

- डॉ। पूनम देवदत्त, सीबीएसई काउंसलर

'इतनी छोटे बच्चों को अगर आप हाईटेक गैजेट्स देंगे तो उसके दुष्परिणाम सामने आएंगे ही। फिजिकल एक्टीविटी बंद होने से बच्चों में ऑबेसिटी काफी बढ़ रही है। देर रात कंप्यूटर और इंटरनेट पर ऑनलाइन होने से नींद की प्रॉब्लम के अलावा भी काफी प्रॉब्लम बढ़ रही हैं.'

- डॉ। राहुल मित्थल, फिजिशियन

'हाईटेक गैजेट्स, मोबाइल फोन और टैब का इस्तेमाल करने से बच्चों में अटेंशन स्पैन घट रहा है। सभी इलेक्ट्रोनिक डिवाइस की स्क्रीन फ्लिकरिंग होती है। जिससे बच्चों के सामने कुछ ही पल में नए कलर्स, ऑब्जेक्ट्स सामने आते रहते हैं। आज बच्चे बुक में लिखी पोयम और स्टोरीज को पढऩा ही नहीं चाहते। ऐसे गैजेट्स का इस्तेमाल काफी कम करने की जरुरत है। खासकर पैरेंट्स बच्चों के इन गैजेट्स मजबूरी में ही करें.'

- अमित खरबंदा, डायरेक्टर, लिटिल फ्लॉवर स्कूल

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