तो फिर कैसे बनेंगे अच्छे लीडर

2004 में छात्र संघ में डॉ। जय वीर राणा भी महामंत्री रहे थे। अध्यक्ष रहे कुलदीप उज्ज्वल बताते हैं कि पहले स्टूडेंट पॉलिटिक्स डेमोक्रेटिक सिस्टम पर बेस्ड थी, लेकिन अब लिंगदोह का बहाना बनाकर सिस्टम को तोड़ा जा रहा है। जो भी स्टूडेंट कुलपति के खिलाफ जाता है उस पर फर्जी कार्रवाई करके केस लगा दिया जाता है। पहले ऐसा नहीं होता था। यूनिवर्सिटी इलेक्शन पॉलिटिक्स की प्राइमरी क्लास की तरह होते हैं। अगर अच्छे स्टूडेंट्स को दबाया जाएगा तो अच्छे लीडर कैसे पैदा होंगे।

ये कराए थे काम

डॉ। जय वीर राणा बताते हैं कि 2004 और उससे पहले प्रेसीडेंशियल डिबेट होती थी। डॉ। कुलदीप का कहना है कि, लाइब्रेरी रात को सिर्फ दस बजे तक ही खुलती थी, ये रात 12 बजे तक कराई। अपग्रेड लेवल की बुक्स को रखने का प्रस्ताव दिया गया जो पास हुआ। इंटरनेट लाइब्रेरी शुरू कराई गई। हर महीने प्रोक्टोरियल बोर्ड की मीटिंग आयोजित कराई जाती थी, जिसमें यूनियन पदाधिकारी होते थे। तमाम तरह के फैसले चाहे फीस बढ़ाना हो कुछ और सभी स्टूडेंट्स से पूछकर होते थे। प्राइवेट फॉर्म में लेट फीस पांच हजार से घटाकर एक हजार कराई। गल्र्स हॉस्टल में पेरेंट्स के बैठने के लिए शेड की व्यवस्था कराई। हॉस्टलों में 24 घंटे बिजली की सुविधा कराई गई। हमारे समय में नामी नेताओं को बुलाकर गेस्ट लेक्चर्स होते थे। हमने गरीब स्टूडेंट्स और कर्मचारियों को डेढ लाख रुपए की साइकिल वितरित कराई थी। कुलपति स्टूडेंट लीडर्स के साथ यूनियन ऑफिस में मिल बैठ कर चाय भी पीते थे।

डेढ साल से ज्यादा की यूनियन

उन्होंने बताया कि सिर्फ हमारे ही छात्र संघ को कुलपति ने शपथ दिलाई। हमने तीन-तीन कुलपतियों के साथ काम किया। हमारे छात्र संघ को डेढ़ साल से भी ज्यादा का समय मिला। तत्कालीन कमिश्नर और कुलपति मोहिंदर सिंह ने ये कार्यकाल बढ़ाया था। यूनिवर्सिटी के हर कार्यक्रम में छात्र संघ प्रतिनिधि बाकायदा इनवाइट किए जाते थे। उनका कहना है कि अभी तक के कुलपतियों में से आरपी सिंह सबसे अच्छे कुलपति रहे, वो स्टूडेंट्स की हर जायज बात मानते थे।

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