- 9वें जागरण फिल्म फेस्टिवल के आखिरी दिन कानपुराइट्स से रूबरू हुए एक्टर संजय मिश्रा

- छोटे शहरों में फिल्म फेस्टिवल के लिए जागरण को सराहा,फिल्म क्रिटिक मयंक शेखर के साथ अपनी लाइफ, एक्टिंग और प्यार के किस्से शेयर किए

KANPUR: जिंदगी के लिए जिंदा रहना जरूरी है और अगर जिंदा रहना है तो उसके लिए तमन्ना जरूरी है। नहीं तो लाइफ लुडि़स है। कुछ यही अंदाज था एक्टर संजय मिश्रा का जब वह 9वें जागरण फिल्म फेस्टिवल के आखिरी दिन कानपुर पहुंचे। पूरे कानपुरिया स्टाइल में रंगे। फिल्म क्रिटिक मयंक शेखर के साथ उन्होंने दर्शकों के सामने अपनी जिंदगी के कई किस्से शेयर। ठेठ देसी अंदाज में उन्होंने अपने शहर बनारस को भी याद किया तो वहीं कानपुर का फेथफुलगंज भी उन्हें खूब भाया। वो बोले कि बड़ा चिरकुट शहर है ये यहां के हयूमर का कायल हूं।

कलाकारी और कविता खून में

कानपुराइट्स से रूबरू संजय मिश्रा ने कहा कि कलाकारी और कविता उनके खून में हैं। एनएसडी में मुझे एक्टिंग का माहौल मिला। उसके बाद मुंबई पहुंचा जहां एक एक सीढ़ी चढ़ा। सफलता दो मिनट वाली मैगी नहीं है.उन्होंने अपने अनुभवों के आधार पर कहा कि फेमस होना भी कभी कभी डरावना लगता है। सफलता के साथ असफलता का भी एक पेड़ जरूर लगाए। चीजें दूर से दिखनी चाहिए। अपने बेहतरीन अभिनय के बाबत वो बोले कि मेरी को एक्टिंग पद्धति नहीं है। एक्प्रेशन को आप दिखा सकते हैं,लेकिन उसे बोलना कठिन होता है। किसी चरित्र को खुद में घुसने देने से बेहतर खुद उस चरित्र में घुस जाना है।

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