-एग्रोपीडिया से किसानों को जबरदस्त फायदा, फसल की बर्बादी रुकी

-आईआईटी ने प्लेटफार्म डेवलप किया और एग्रीसाइंटिस्ट्स ने मेहनत की

-देश के 192 कृषि विज्ञान केंद्रों में टेक्नोलॉजी का यूज एग्री साइंटिस्ट ने किया

KANPUR : आईआईटी टेक्नोक्रेट्स व एग्रीकल्चर साइंटिस्ट के संगम ने करिश्मा कर किसानों की फसल को बर्बादी को रोकने में कामयाबी हासिल कर ली है। एग्रोपीडिया प्रोजेक्ट से किसानों को उम्मीद से ज्यादा फायदा हुआ है। देश के करीब 200 कृषि विज्ञान केंद्रों में इसका यूज किया गया है। इससे लाखों किसानों को फायदा भी मिला है। इसके लिए किसानों के पास सिर्फ सामान्य मोबाइल होना जरूरी है। इस प्रोजेक्ट के माध्यम से किसानों को मोबाइल पर टाइमली फसलों से रिलेटेड जानकारी, बारिश की स्थिति आदि को बताकर किसानों को नुकसान से बचाया जा सका है।

VKV से िकसानों को फायदा मिला

आईआईटी कम्प्यूटर साइंस डिपार्टमेंट के सीनियर प्रोफेसर डॉ। टीवी प्रभाकर ने बताया कि जानकारी के अभाव में किसानों की फसलें चौपट हो जाती थीं, जिसकी वजह से किसानों की माली हालत खराब हो जाती थी। इसी को ध्यान में रखकर एग्रोपीडिया प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया गया था। इसमें इस बात का ख्याल रखा गया था कि किसानों की भाषा में उन्हें जानकारी दी जाए। आईआईटी ने टेक्नोलॉजी का प्लेटफार्म डेवलप किया। प्रोजेक्ट को वॉयस कॉल विज्ञान केन्द्र वैज्ञानिक(वीकेवी )का नाम दिया गया है। इस प्लेटफार्म पर चन्द्रशेखर आजाद एग्रीकल्चर एण्ड टेक्निकल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर के अलावा अन्य एग्री साइंटिस्ट्स की सेवाएं ली गई हैं।

मोबाइल पर मिल रहा सॉल्यूशन

कृषि वैज्ञानिक किसानों को वॉयस मैसेज के माध्यम से फसलों को बेहतर तरीके से करने की जानकारी देते हैं। यही नहीं अब आगे कौन सी फसल करें, जिससे उनकी आर्थिक हालत सुधर जाए इसकी भी जानकारी दी जाती है। इसके अलावा वेदर अलर्ट भी किसानों को मोबाइल पर भेजा जाता है। इसके अलावा अगर कीट से रिलेटेड कोई समस्या होती थी किसानों को उसका सॉल्यूशन भी मिलता है

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बजट की कमी ने किया चौपट

किसानों को उनकी भाषा में फसलों के रखरखाव की जानकारी दी गई ताकि उन्हें किसी तरह की समस्या से दो चार न होना पड़े। एक वीकेवी में करीब 200 तो कहीं पर 125 किसानों ने वीकेवी के लिए रजिस्ट्रेशन कराया था। साउथ की भाषा में किसानों को टेक्नोलॉजी के माध्यम से कृषि से रिलेटेड सारी जानकारी एग्री साइंटिस्ट्स दे रहे हैं। हालांकि अब इस प्रोजेक्ट को फंड की कमी की वजह से रोका जा रहा है, लेकिन उम्मीद जताई जा रही है कि सेंट्रल गवर्नमेंट जल्द ही किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए बजट देगी। इस प्रोजेक्ट में आईसीएआर ने भी काफी मदद की थी। देश के एग्री साइंटिस्ट्स को एक छत के नीचे रखने में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने काफी मदद की थी।