300 से 350 मरीज रोजाना

कानपुर जेल में इस समय बीमारियों ने हमला बोल दिया है। जेल में डॉक्टर्स रोजाना 300 से 350 बंदियों को ओपीडी में देखते हैं। इस समय बुखार, पेट दर्द और  टीबी से ग्रसित बंदी ज्यादा हैं। जिससे जेल प्रशासन की मुसीबत बढ़ गई है। जेल का पिछला रिकॉर्ड भी बेहतर नहीं रहा है। यहां पर हर महीने औसतन दो बंदियों की मौत बीमार से होती है।

1200 क्षमता, 2900 बंदी

कानपुर जेल की क्षमता 1200 बंदियों की है, लेकिन जेल में इस समय 2900 से ज्यादा बंदी है। इसमें 130 महिला बंदी और बच्चे हैं। इन बंदियों की देखभाल के लिए सिर्फ दो डॉक्टर हैं। कैदियों की संख्या तो लगातार बढ़ रही है लेकिन मेडिकल स्टाफ नहीं बढ़ाया गया।

एक भी महिला डॉक्टर नहीं

जेल में महिला बंदियों की संख्या में भी इजाफा हुआ है। जिसे देखते हुए जेल प्रशासन ने एक अलग छोटी बैरक बनाई थी। लेकिन बाद में बड़ी बैरक में महिला बंदियों को शिफ्ट करना पड़ा। इसमें कई बुजुर्ग महिला बंदी हैं, जो अक्सर बीमार रहती हैं। इसके अलावा दो दर्जन महिला बंदी आमतौर पर बीमार रहती हैं। उनके लिए जेल में कोई महिला डॉक्टर नहीं है। महिलाओं के बीमार होने पर उनको जिला अस्पताल भेजा जाता है।

वेन्टीलेटर में जेल अस्पताल

सुविधाओं के मामले में जेल का अस्पताल वेन्टीलेटर में है। यहां पर आदम जमाने के 30 बेड हैं। उच्च क्षमता वाले कोई उपकरण और मशीनें नहीं हैं। किसी कैदी के गंभीर बीमार होने पर बाहर से स्पेशलिस्ट को बुलाना पड़ता है। यहां पर हर महीने 80 हजार का बजट आता है। जिसमें सर्दी, बुखार, सिरदर्द, पेट दर्द जैसी सामान्य बीमारियों की दवाएं आती हैं। महंगी दवाओं को बंदी को बाहर से मंगाना पड़ता है। जेल प्रशासन एनजीओ के जरिए भी बाहर से दवा मंगवाते है, ताकि बंदी को दवा के लिए परेशान न होना पड़े।

हमेशा फुल रहते हैं बेड

जेल अस्पताल में भले ही सुविधाओं का अभाव रहता हो, लेकिन यहां के बेड हमेशा फुल रहते हैं। जेल में टीवी, कैंसर, एड्स जैसे गंभीर रोग से ग्रसित कैदी भी हैं। जिनका जेल में इलाज चलता रहता है। कई बीमार बंदी का तो मजबूरी में बैरक में इलाज किया जाता है।

बंदी बढ़े, स्टाफ नहीं

जेल में बंदियों की संख्या क्षमता से ढाई गुना से दो गुना हो गई है, लेकिन यहां के स्टाफ में कोई बढ़ोत्तरी नही हुई है। इसके लिए जेल प्रशासन की ओर से शासन को पत्र भेजा जा चुका है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई है। जेल अस्पताल में दो डॉक्टर, दो फार्मासिस्ट, एक डार्क रूम अटेंडेंट, एक लैब अटेंडेंट और एक एक्सरे टेक्नीशियन है।

ये खेल भी होता है यहां

जेल से जमानत पर छूटे कई बंदी इलाज कराने के लिए वापस वहां पर पहुंच जाते है। इसके लिए वे जमानत कटवाकर कोर्ट में सरेंडर कर देते हैं। जिसके बाद उनको न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया जाता है। जेल में तबियत खराब होते ही उनको जेल अस्पताल और वहां से उर्सला भेज दिया जाता है। कई बंदी का तो पीजीआई तक में इलाज कराया जाता है। ये आर्थिक रूप में कमजोर बंदी करते हैं। वे इलाज के खर्च को बचाने के लिए जमानत कटवाकर वापस जेल पहुंच जाते हैं, ताकि उनको नि:शुल्क इलाज हो सके।

चलती है सेटिंग

जेल अस्तपाल में एडमिट बंदियों को नाश्ते में दूध और अंडा दिया जाता है। इसके साथ ही उनको बीमारी के हिसाब से खाना दिया जाता है। जिसके चलते अस्पताल में एडमिट होने के लिए बंदियों में होड़ मची रहती है। इसमें जुगाड़ भी चलता है। बंदी डॉक्टर को सेट करके अस्पताल में एडमिट हो जाता है। कई बंदी तो बीमारी का बहाना करके जेल के बाहर जिला अस्पताल में एडमिट होने का भी खेल करते हैं।

"जेल अस्पताल में दो डॉक्टर हैं। वे रोज ओपीडी में बंदियों को देखते हैं। जेल में बीमार बंदियों की संख्या बढ़ी है, लेकिन उनका प्रॉपर इलाज किया जा रहा है। बीमार बंदी का चेकअप करने के बाद जरूरत पडऩे पर उसको अस्पताल में एडमिट किया जाता है। गंभीर रोग से ग्रसित बंदियों को जिला अस्पताल भेजा जाता है। बंदी के रूप में जो डॉक्टर्स यहां आए हैं वो भी इलाज में जेल स्टाफ की हेल्प कर रहे हैं। "

पीडी सलोनिया, जेल अधीक्षक