आगे मुस्तैद, पीछे मौज

जेल की सुरक्षा को चार टॉवर बने है। जिसमें दो टावर फ्रंट पर और दो पीछे हैं। फ्रंट वाले टॉवर पर जिन सिपाहियों की ड्यूटी लगती है, वे अधिकारियों के डर से पूरी तरह मुस्तैद रहते हैं। मगर पीछे के टॉवर पर सिपाहियों का राज है। मतलब जब मर्जी की ड्यूटी की और जब मर्जी नहीं की तो टॉवर की बाउंड्री पर आराम फरमाने लगे। सिपाहियों की इसी लापरवाही के कारण जेल के अंदर आए दिन कैदियों के बीच छोटी सी तकरार बड़ी घटना में बदल जाती है।

चार घंटे की दो शिफ्ट में होती है ड्यूटी

जेल की सुरक्षा को बरकरार रखने के लिए परिसर के अंदर गश्त के साथ चार टॉवर पर भी सिपाहियों की ड्यूटी लगाई जाती है। ये टॉवर जेल के चार कोनों पर होते है। एक दिन में टावर पर 12 सिपाही की ड्यूटी लगती है। टॉवर पर एक सिपाही की सिर्फ 4 घंटे ड्यूटी लगाई जाती है। क्योंकि टॉवर पर बैठने या लेटने की व्यवस्था नहीं होती। टॉवर पर ड्यूटी के दौरान सिपाही जेल के चारों ओर निगाहबानी रखते है। जेल के अंदर जरा भी गड़बड़ होने या डाउट होने पर वे तुरंत सीटी बजाते हैं। इससे जेल परिसर के अंदर मौजूद सिपाही के साथ जेल एडमिनिस्ट्रेशन चौकन्ना हो जाता है।

आराम का नतीजा, हो जाता है विवाद

जेल सोर्सेज की मानें तो टॉवर पर तैनात सिपाहियों की लापरवाही के कारण ही कई मामले बड़े हो जाते है। कुछ माह पहले दो कैदियों के बीच खुले जेल परिसर में विवाद हुआ था। बात हाथापाई तक जा पहुंची थी। इसकी जानकारी जेल एडमिनिस्ट्रेशन को लग गई और वह मौके पर जा पहुंचा। मगर टॉवर पर तैनात सिपाही को इसकी भनक तक नहीं लगी। क्योंकि सिपाही उस समय जेल की निगाहबानी करने के बजाए आराम फरमा रहा था।

आराम फरमाते बाउंड्री से गिर पड़े

टॉवर की बाउंड्री पर आराम फरमाना कोई नई बात नहीं है। इससे पहले भी आए दिन ऐसे नजारे देखने को आसानी से मिल जाते थे। बल्कि कुछ साल पहले जेल में तैनात सिपाही बैकुंठ नाथ दीक्षित की ड्यूटी टॉवर पर लगी थी। वे कुछ देर बाद बाउंड्री पर लेट कर आराम फरमाने लगे। थोड़ी देर में बैकुंठ को झपकी लग गई और नींद में ही वे बाउंड्री से नीचे जा गिरे। हालांकि उनकी जान बच गई, मगर वे गंभीर रूप से घायल हो गए थे।

टॉवर पर ड्यूटी की बजाए सोना घोर लापरवाही है। इससे जेल की सुरक्षा को खतरा हो सकता है। अगर ड्यूटी के दौरान कोई सिपाही आराम कर रहा था, तो उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी।

-एसके शर्मा, सीनियर जेल सुपरिटेंडेंट