हाईकोर्ट: जीवन जीने के अधिकार में मरने का अधिकार शामिल नहीं

'संविधान में किसी को भी जीवन लेने का अधिकार नहीं है। जीवन जीने का अधिकार अन्य अधिकारों से अलग हैं, मरने का अधिकार इसमें शामिल नहीं है। यह न तो धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है और न ही मूल अधिकार.'

सीजे सुनील अंबवानी और न्यायाधीश वीएस सिराधना की खंडपीठ

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जैन मुनि: आत्महत्या नहीं सम्मानित मृत्यु है संथारा

'आम इनसान की मृत्यु और शहीद की मृत्यु में फर्क है। संथारा एक ससम्मानजनक मृत्यु है। कोर्ट या सरकार संत की साधना की प्रक्रिया को रोक नहीं सकता है। यह धार्मिक स्वतंत्रता पर आघात है.'

-मुनि श्री सौरभ सागर जी महाराज

-राजस्थान हाईकोर्ट ने नौ साल की सुनवाई के बाद सोमवार को दिया था ऐतिहासिक फैसला

-फैसले पर जैन संतों ने दी प्रतिक्रिया, समाज में विरोध-कहा, धार्मिक आस्था पर है प्रहार

Meerut : सोमवार को राजस्थान हाईकोर्ट ने जैन मान्यता के तहत संथारा या सल्लेखना को आत्महत्या करार दिया साथ ही कहा कि संथारा लेने वाले और दिलाने वाले के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई की जाए। नौ साल की लंबी कानूनी कार्यवाही के बाद आए इस निर्णय को सामाजिक बदलाव के नजरिए से देखा जा रहा है तो वहीं जैन समाज ने फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। जैन संतों ने संथारा को समझाने की बात कही तो वहीं समाज का कहना है कि वे विरोध में सुप्रीम कोर्ट जाएंगे।

जो आप जानना चाहते हैं

संथारा या सल्लेखना प्रथा जैन समाज की हजारों साल पुरानी प्रथा है। इसमें मृत्यु निकट होने पर मुनि मौन व्रत रख लेते हैं और खाना-पीना छोड़ देते हैं। इसी अवस्था में धीरे-धीरे उनकी मृत्यु हो जाती है। अंतिम समय में मुनि जल तक त्याग देते हैं। समाज की मान्यता है कि संथारा धारण करने वाले मुनि को अपनी मृत्यु का दिन और समय ज्ञात होता है।

आखिर क्यों हुआ विरोध

प्रथा बेशक धर्म से जुड़ी और सैकड़ों साल पुरानी है किंतु वक्त के साथ-साथ विरोध भी बढ़ने लगा है। इसे आत्महत्या बताकर 2006 में जयपुर हाईकोर्ट में याचिका दर्ज की गई थी। उसी साल जयपुर की कैंसरग्रस्त विमला देवी ने संथारा धारण किया था। उन्होंने 22 दिनों तक अन्न-जल त्यागकर जान दे दी थी। इस घटना के बाद विरोध ने जोर पकड़ा है।

संथारा इच्छा मृत्यु के समान

याचिकाकर्ता निखिल सोनी ने कोर्ट को बताया कि संथारा लेने वाला व्यक्ति अन्न-जल त्याग देता है और मृत्यु का इंतजार करता है। इसे धार्मिक आस्था कहना गलत है। आस्था का कानून में कोई स्थान नहीं है। इसे अवैध घोषित कर ऐसा करने और कराने वालों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलना चाहिए।

सबूत में नहीं पेश किया कोई ग्रंथ

कोर्ट ने जिस याचिका पर यह फैसला सुनाया है, उसमें कहा गया है कि संथारा मृत्यु की ही तरह है। कोर्ट ने कहा कि समर्थक इसे धार्मिक रूप से अनिवार्य साबित करने में नाकाम रहे, सबूत के लिए कोई ग्रंथ भी पेश नहीं कर सके, इसलिए संथारा अपराध है।

इन धाराओं में होगा मुकदमा

संथारा लेने वालों के खिलाफ आईपीसी की धारा 309 यानी आत्महत्या के अपराध का मुकदमा चाहिए जबकि संथारा कराने वाले पर धारा 306 के तहत कार्रवाई की जानी चाहिए।

कितने लोग करते हैं संथारा

आधिकारिक तौर पर इसका कोई रिकार्ड नहीं हैं, पर जैन संगठनों के मुताबिक हर साल यूपी में 200 से 300 लोग संथारा के तहत देह त्यागते हैं। राजस्थान, मप्र, गुजरात में भी इस प्रथा का प्रभाव है।

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इच्छा मृत्यु नहीं है संथारा: मुनि सौरभ सागर

-साधना की अंतिम स्थिति है संथारा, फैसला दुर्भाग्यपूर्ण

-जैन धर्म को समझे बिना दिया है कोर्ट ने निर्णय

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akhil.kumar@inext.co.in

मेरठ: जैन मुनि सौरभ सागर ने का कहना है कि संथारा साधना की अंतिम स्थिति है न कि आत्महत्या। यह आत्म संतुलन की अंतिम प्रक्रिया है। हाईकोर्ट ने धर्म की अंत:स्थिति को पूर्णतया समझे बिना यह फैसला दिया है।

मुद्दे पर मुनि की त्वरित टिप्पणी

आई नेक्स्ट से विशेष बातचीत के दौरान मंगलवार को जैन संत मुनि श्री 108 सौरभ सागर जी महाराज ने कहा कि संथारा को इच्छामृत्यु के रूप में देखकर सती प्रथा के समक्ष रखकर देना या आत्महत्या का रूप देना दुर्भाग्यपूर्ण है।

नहीं समझा जैन शास्त्र को

मुनि ने बताया कि कोर्ट ने यह फैसला कानून की धारा के अंतर्गत दिया है, शायद समझ के अंतर के चलते कोर्ट ने यह फैसला दिया है। जैन शास्त्रों का गहराई से अध्ययन करके, सामाजिक प्रक्रिया के मर्म को वास्तविक रूप से समझा जाना आवश्यक है। ऐसा करने पर संभवत: यह विकल्प भी समाप्त हो जाएगा।

रोगी भी कर सकता है संथारा

मुनि ने कहा कि ज्योतिष, मेडिकल, शारीरिक स्थिति के आधार पर तय होता है कि संत को कब से अन्न जल छोड़ना है। 75 वर्ष के बाद ही संत 12 साल तक संथारा कर सकता है। उन्होंने कहा कि किसी आकस्मिक स्थिति अथवा गंभीर बीमारी से पीडि़त के लिए भी संथारा का प्रावधान शास्त्रों में है। व्यक्ति आत्मशांति और बाहर की आकांक्षाओं पर विराम लगाने के लिए संथारा लेता है।

साधना है संथारा

जैन मुनि श्री ने आई नेक्स्ट को बताया कि शहीद भी मरता है, एक सामान्य व्यक्ति भी मरता है। संत एक सम्मानित मृत्यु के लिए संथारा ग्रहण करता है। हर कोई साधना को स्वीकार नहीं कर सकता, यह दबाव से नहीं स्वेच्छा से त्याग की भावना से ग्रहण किया जाता है।

धार्मिक स्वतंत्रता पर आघात है

हाईकोर्ट का निर्णय पर जैन संत का कहना है कि संथारा साधना की प्रक्रिया है इस पर रोक नहीं लगाई जा सकती है। यह धार्मिक स्वतंत्रता पर आघात है, किंतु जिस देश में रह रहे हैं उसके कानून का सम्मान भी करना होगा।

40 दिन तक मेरठ में हैं जैन मुनि

मुनि श्री 108 सौरभ सागर जी महाराज अगले 40 दिनों तक चातुर्मास के दौरान मेरठ में हैं। रेलवे रोड स्थित वर्धमान एकेडमी, जैन बोर्डिग हाउस में वे प्रवास पर हैं। 21वें पुष्प वर्षा योग के आयोजन अवसर पर समिति के सह चेयरमैन अतुल कुमार जैन ने बताया कि मुनि श्री रोजाना प्रात: आठ बजे से प्रवचन करते हैं तो वहीं जन सामान्य की जिज्ञासा का निराकरण अपराह्न तीन से चार बजे तक करते हैं।

वर्जन

संथारा पर फैसला जैन समाज की धार्मिक आस्था से जुड़ा हुआ है। संत इस फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं तो वहीं समाज में आक्रोश है। अग्रिम रणनीति जल्द तय होगी।

संजय जैन, समाज सेवी

संथारा एक धार्मिक प्रक्रिया है, इसे सती प्रथा से जोड़ना गलत है। कोर्ट का फैसला समाज की धार्मिक स्वतंत्रता के आड़े है। विचार चल रहा है, फैसले के विरोध में उच्च पीठ में अपील की जाएगी।

अतुल कुमार जैन

सहचेयरमैन, श्री पुष्प वर्षायोग समिति

फोटो सर के मोबाइल में है

संथारा धार्मिक क्रिया है, इस विधि के तहत मुनि आहार त्याग देते हैं, लेकिन यह सब पॉजीटिव वे में होता है। संथारा एक तपस्या है जो महानपुरुष ही कर सकते हैं।

डॉ। सीमा जैन, प्रिंसिपल, आरजी डिग्री कॉलेज

अगर कोई अपनी स्वेच्छा से अपनी इच्छाओं का त्याग कर तपस्या करता है। तो वो महानपुरुष है, अपनी इच्छा शक्ति पर काबू पाना आत्महत्या नहीं हो सकता है।

चंद्रलेखा जैन, प्रिंसिपल, सेंट जोंस स्कूल

जैन समाज में संत के लिए यह निश्चित प्रक्रिया है। संथारा या सल्लेखना पर कोर्ट या सरकार को फैसला लेने की आवश्यकता नहीं है। यह धार्मिक मसला है, रही बात क्रिया की तो देश ने संत की दिगंबर अवस्था को स्वीकार कर लिया, संथारा भी संत की अवस्था का अंग है

विनेश जैन, कारोबारी

संथारा धार्मिक प्रक्रिया है, कोर्ट का यह निर्णय एकतरफा है, जैन समाज के द्वारा केस की कार्यवाही के दौरान कुछ नहीं रखा गया। अग्रिम कोर्ट को जैन धर्म के ग्रंथों में प्रक्रिया के उल्लेख की जानकारी दी जाएगी।

सुरेश जैन रितुराज

अध्यक्ष, श्री पुष्प वर्षायोग समिति

केस कोर्ट में सही से पुटअप नहीं किया गया है। संथारा एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें स्टेप बाई स्टेप भोज्य पदार्थो का त्याग किया जाता है। यह साधना है, इसे सुसाइड की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।

अरुण कुमार गुप्ता

एडवोकेट

राजस्थान हाईकोर्ट में केस को सही से नहीं रखा गया। जैन धर्म के ग्रंथ, जिसमें संथारा प्रक्रिया का जिक्र है, कोर्ट को नहीं दिखाए गए हैं। जैन समाज को फैसले के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में अपील करनी चाहिए।

मुकुल जैन

एडवोकेट