- अब तक साढ़े नौ हजार बच्चों को एजुकेशन से जोड़ा

- बालश्रम के खिलाफ भी चलाया जागरूकता अभियान

Meerut : मेरठ के चंदौरा गांव में किसी ने भी दसवीं पास नहीं किया था, पूरे गांव में एक अंधकार था। ऐसे में एक उम्मीद की रोशनी लेकर आई जैनब। जो खेलने की उम्र में बड़ा काम कर गई। जैनब ने दस साल की नन्ही सी उम्र में बाल श्रम के खिलाफ आवाज उठाई और ज्यादा से ज्यादा बच्चों को एजुकेशन से जोड़ने जैसा काम किया। इस्माईल डिग्री कॉलेज से गे्रजुएशन कर रही जैनब अपने गांव की पहली लड़की है, जिसने सबके खिलाफ आवाज उठाकर शिक्षा का प्रसार करने का मजबूत प्रण लिया। गांव की लड़कियों को स्कूल भेजने के लिए कट्टरपंथियों से लोहा लिया और अपने काम को बुलंदियों को पहुंचाया।

छोटी उम्र में लिया प्रण

खेलने की उम्र में बड़ा काम करना ही अपने आपमें बड़ी बात है। जानी चंदौरा गांव की जैनब को हर पल डर सताता था कि पांचवी के बाद उसे भी बड़ी बहन की तरह ससुराल न जाना पड़ जाए। वजह यह थी उसके गांव की बेटियों को कक्षा पांचवीं के बाद पढ़ाई तो दूर बाहर निकलने की भी इजाजत नही थी। जैनब के सामने भी यह दीवार खड़ी थी, लेकिन उसके हौसलों के आगे यह सब कमजोर पड़ गया। वह महज दस साल की ही थी, जब उसने गांव वालों को पढ़ाई-लिखाई की तरफ मोड़ने की कोशिश शुरू कर दी थी। पांच साल पहले फुटबॉल सिलने का काम करने वाली जैनब ने गांव में करिश्मा कर दिखाया। उसने ख्00भ् में अपने गांव की आसपास दस गांवों में बाल पंचायतें बनाई बाल पंचायत का चुनाव जीतकर बच्चों की एजुकेशन को लेकर आवाज बुलंद की। दस साल की जैनब ने बचपन बचाओ आंदोलन से जुड़कर अपने सपनों को उड़ान दी थी। आज उसके गांव के साढ़े नौ हजार बच्चों को उसने अपने प्रयास के माध्यम से स्कूल में भेजने का काम किया है, जिनमें आठ हजार लड़कियां हैं।

हाईस्कूल पास गांव की पहली लड़की

जैनब के गांव में शिक्षा की हालत बेहद बदतर थी, उसके गांव में लड़कियों का जल्द ही विवाह कर दिया जाता है, लेकिन इतने बदतर हालात के बावजूद भी अपने पिता अब्दुल सत्तार के सहयोग के कारण वह अपने गांव की पहली दसवीं पास बनी। इसका असर यह हुआ कि अब गांव के लोग उसके सहयोग से अपनी लड़कियों को स्कूल भेजने से नहीं कतराते हैं।

राज्यसभा तक पहुंची गूंज

जैनब ने ख्009 में जब राइट टू एजुकेशन नियम आया था, तो नियम को पूरी तरह लागू कराने के लिए सांसदों से मुलाकात करनी शुरू की। इस संबंध में वह कई बार दिल्ली जा चुकी है और राज्यसभा तक मुद्दा उठाया है। वह अबतक क्ख्भ् सांसदों से मिल चुकी है, इनमें सोनिया गांधी, सुषमा स्वराज, जयप्रदा, हरीश रावत आदि प्रमुख हैं।

स्कूल जाने के लिए प्रेरित किया

उस समय जब वह क्क्वीं कक्षा में थी उसने स्कूल जाने से वंचित बच्चों को स्कूल जाने के लिए प्रेरित किया। दस गांव में जाकर कैम्प के जरिए उसने अभिभावकों व उनके बच्चों को शिक्षा का महत्व व शिक्षित होने के रास्ते बताए। केवल यही नहीं उसने स्कूल से वंचित बच्चों के निशुल्क एडमिशन करवाए। उस समय उसे तात्कालीन नेशनल केएल्शिन फॉर एजुकेशन के महासचिव रामपाल सिंह, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष डॉ। शांता सिन्हा व शिक्षाविद मुचकुंद दुबे ने ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया। उसी समय दिल्ली के ताज पैलेस में हुए सम्मान समारोह में योजना आयोग के तात्कालीन उपाध्यक्ष मोटेक सिंह अहलुवालिया ने जैनब को इंडिया प्राइड अवार्ड से भी सम्मानित किया था।

बाल विवाह पर लगाई रोक

इस्माईल डिग्री कॉलेज से गे्रजुएशन कर रही इस छात्रा ने आज अपने गांव व आसपास काफी बड़े काम किए हैं। उसने न केवल भ्रूण हत्या के खिलाफ आवाज उठाई बल्कि अपने गांव में होने वाले बाल विवाह को भी रोकने का काम किया है।

रोजगार के लिए भी कर रही हैं काम

गांधी अध्ययन केंद्र के तहत उसकी प्रिय टीचर डॉ। शिवाली अग्रवाल ने भी उसको बुलंदियों तक पहुंचाने में काफी मदद की है। उसने बताया कि वह आज उनकी मदद से महिलाओं व लड़कियों को रोजगार दिलाने में भी मदद कर पाई है। उनकी सलाह व सहयोग के कारण उसने अपने तीन सिलाई सेंटर भी खोले हैं, जिनमें से एक सेंटर वह अपनी भाभी के साथ मिलकर चलाती है और सिलाई सिखाने का काम करती है। सेंटर पर सिलाई सिखाने वाली टीचर्स को सेलरी भी मिल रही हैं। इनमें से फ्0 लड़कियां ऐसी भी हैं, जो सिलाई के साथ ही अपनी एजुकेशन पूरी कर रही हैं।

पापा और टीचर हैं आइडल

जैनब के पिता खेती करते हैं। जैनब ने बताया कि वह अपने पिता को ही अपना आइडल मानती है। क्योंकि उसको आगे बढ़ने में सबसे बड़ा कारण है उसके पिता का हौसला। उसने बताया कि उसके हर काम में उसके पिता उसका सहयोग करते हैं, साथ छोड़कर आना ले जाना और पैसों से सहयोग करना और लोगों के ताने सुनना। यह सभी सहन कर मेरे पिता ने मेरे लिए बहुत कुछ किया है। इसके साथ ही वह टीचर डॉ। शिवाली अग्रवाल की तरह समाज सेवी टीचर बनना चाहती है।

जैनब ने इस गांव को ही नहीं बल्कि आसपास के दस गांवों को बहुत कुछ दिया है। गांव की लड़कियों के जीवन में उजाला किया है। गांव को अंधकार से उजाले तक लाने में इस बच्ची का बहुत सहयोग रहा है।

- ग्राम प्रधान, महमूद

पहले हमें लगता था कि बेटियों को घर से बाहर भेजना ठीक नही है, लेकिन जैनब ने हमारी सभी भ्रांतियों को दूर कर नई दिशा दिखाई। आज गांव की बच्चियां उससे प्रेरणा लेकर आगे बढ़ रही हैं।

-अली मोहम्मद, चंदौरा निवासी

गांवों से शहर तक का जैनब का सफर बेहद सराहनीय है। जैनब बहुत हिम्मत वाली बच्ची है, उसका आत्मबल और उसके कार्यो की जितनी सरहाना की जाए कम है।

-डॉ। शिवाली अग्रवाल, निर्देशिका गांधी अध्ययन केंद्र

यह बच्ची वास्तव में बेहद सराहनीय काम कर रही हैं। कॉलेज में भी इसका व्यवहार हमेशा अच्छा रहता है। समाज के हित में इसका सहयोग व शिक्षा के प्रति इसकी लगन बेहद सराहनीय है।

-डॉ। ममता सिंह, प्रोफेसर एनएसएस कॉलेज