गोपाल चतुर्वेदी। बचपन के नटखट गोपाल, गोपियों के संग प्रेम लुटाने वाले श्याम, अर्जुन को राजनीति का पाठ पढ़ाने वाले श्रीकृष्ण, यानी प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में किसी न किसी रूप में मनमोहन कृष्ण समाए हुए हैं। अपनी प्रत्येक जीवन लीला के माध्यम से वे अपने भक्तों को कुछ न कुछ सिखाते रहते हैं। तभी तो वे प्रत्येक व्यक्ति के प्रेरणास्त्रोत हैं।

यह सच है कि यदि हम उनके आदर्शो को आत्मसात कर लें, तो हमारे जीवन की अनेकानेक समस्याएं स्वत: समाप्त हो जाएंगी। उन्होंने अधर्म को सहन न करने का संदेश सभी को दिया, जो कि आज के समय की भी प्रबल आवश्यकता है। उन्होंने हमें सहज रूप से यह बताया कि इस संसार में किसी के लिए चिंता करना तथा किसी से डरना व्यर्थ है। हम इस जगत में अपने साथ न कुछ लेकर आए हैं और न ही अपने साथ कुछ लेकर जा सकते हैं। हमें इस संसार में रह कर सिर्फ अपना कर्तव्य अच्छे तरीके से निभाना है, लेकिन कर्म के परिणाम की चिंता नहीं करनी है। देना तो परम पिता परमेश्वर का कार्य है।

उन्होंने महाभारत के समय अर्जुन को श्रीमद्भगवद्गीता के रूप में जो संदेश दिया वह आज भी हम सभी का मार्ग दर्शन करता है। इस ग्रंथ में प्रत्येक व्यक्ति की समस्या का समाधान है। यह ग्रंथ व्यक्ति को कर्म के माध्यम से जीवन का प्रबंधन करना सिखाती है। संशय और विषाद से ग्रस्त लोगों के लिए यह संजीवनी का कार्य करती है। सच तो यह है कि भगवान श्रीकृष्ण प्रत्येक व्यक्ति के अंदर आत्मविश्वास का सृजन करते हैं। वे कहते भी हैं कि मैं सभी में व्याप्त आत्मा हूं।

कृष्णावतार है पूर्णावतार

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शास्त्रों में कृष्णावतार को पूर्णावतार माना है। इसलिए वे जगदगुरु के रूप में सारे संसार के पथ-प्रदर्शक हैं। श्रीकृष्ण पर जो लोग भरोसा रखते हैं, वे उन्हें संरक्षण प्रदान करते हैं। जब देवराज इंद्र संपूर्ण ब्रजवासियों पर क्रोधित हुए और मूसलाधार वर्षा करने लगे, तो बालक श्रीकृष्ण तनिक भी विचलित नहीं हुए। उन्होंने गोधन और ब्रजवासियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को ही ढाल बना लिया। उन्होंने गोप-गोपिकाओं व ग्वालों को अपने साथ लिया और इंद्र के आतंक को रोक कर उनका घमंड चूर कर दिया। इसके माध्यम से लोगों को यह बतलाया कि संगठन में ही शक्ति है। ठीक इसी तरह दुर्वासा के शाप से पांडवों को बचाया। एक घटनाक्रम में वे द्रौपदी की भी लाज बचाते हैं। महाभारत युद्ध को रोकने के लिए वे शांतिदूत बन कर हस्तिनापुर गए। द्वारिका का राजा बनने के बावजूद वे अपने बचपन के मित्र सुदामा को नहीं भूले और उन्हें अपना प्रेम और आदर दोनों प्रदान किया। कौरवों के प्रलोभन में न आकर उन्होंने सत्य का साथ दिया।

धैर्य के भी धनी श्रीकृष्ण

वे धैर्य के भी धनी थे। शिशुपाल की सौ गलतियों को माफ करने के बाद ही उन्होंने उसका वध किया। यद्यपि वे स्वयं नारायण थे, फिर भी वे मानव रूप में अवतरित हुए। कर्म की प्रधानता का पाठ पढ़ाने के लिए ही वे महाभारत के युद्ध में अर्जुन के सारथी बने और उन्हें युद्ध में विजय दिलवाई। वस्तुत: उन्होंने सारी दुनिया को कर्मयोग का पाठ पढ़ाया। उन्होंने प्राणीमात्र को यह संदेश दिया कि केवल कर्म करना व्यक्ति का अधिकार है। फल की इच्छा रखना उसका अधिकार नहीं है। व्यक्ति सुख और दुख दोनों में प्रभु का स्मरण करता है।

उतार-चढ़ाव से ओतप्रोत श्रीकृष्ण का जीवन

भगवान श्रीकृष्ण का जीवन उतार-चढ़ाव से ओतप्रोत है। वे कारागार में पैदा हुए। महल में जीये और जंगल से विदा हुए। उन्होंने अपने जीवन के उदाहरणों से लोगों को यह समझाने का प्रयास किया कि व्यक्ति जन्म से नहीं, कर्म से महान बनता है। भारतीय संस्कृति के पूजित दशावतारों में षोडश कलायुक्त भगवान विष्णु के आठवें अवतार लीला पुरुषोत्तम योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण जन-जन के देवता हैं। श्रीकृष्ण के माता-पिता देवकी-वासुदेव कारागार में बंद थे। उन्होंने सिर्फ अपने पराक्रम के बल पर छोटी उम्र में ही कंस को पराजित कर जन-जन को बुराई पर भलाई की जीत का संदेश दिया।

दुनिया को दिया गीता का ज्ञान

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उनका गीता ज्ञान कर्तव्य से विमुख हो रहे हर व्यक्ति को युगों से दिशा व ऊर्जा प्रदान करने का कार्य करता आ रहा है। उनका उपदेश ऐसा दर्शन है, जो हमें नश्वर जगत में अपना कर्तव्य निस्पृह भाव से निभाने के लिए प्रेरित करता है। कृष्ण लोकनायक और राष्ट्रनायक दोनों प्रतीत होते हैं। वे लीला पुरुषोत्तम भी हैं। उनका चरित्र लोकरंजक है। उनका कोई भी कार्य कौतुक या निरर्थक नहीं है। उनमें वैराग्य योग, ज्ञान योग, एश्वर्य योग और धर्म योग समाहित हैं। ब्रज श्रीकृष्णोपासना का प्रमुख केंद्र है। यहां श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व अन्य स्थानों की अपेक्षा अधिक श्रद्धा व धूमधाम के साथ मनाया जाता है। यहां कृष्ण भक्ति का रस सर्वत्र बरसता है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व प्रतिवर्ष हमें भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अग्रसर होने की प्रेरणा देता है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को मनाया जाना तभी सार्थक है, जब हमारे हृदय में भगवान श्रीकृष्ण का उदय हो। इस दिन हम सभी को भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोपियों को दिए गए संदेश को आत्मसात करने का संकल्प जरूर करना चाहिए। साथ ही 'श्रीकृष्ण: शरणम् मम' मंत्र को अपने जीवन का मूल आधार बनाना चाहिए।

(लेखक आध्यात्मिक चिंतक व विचारक हैं)

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