शहर भर में दिखी जन्माष्टमी की धूम, आधी रात को भगवान ने लिया जन्म

'जय कन्हैया लाल की' से गूंज उठा शहर, देर रात तक चले भजन-कीर्तन

VARANASI:

शिवनगरी काशी का कोना-कोना रविवार को 'जय कन्हैया लाल की' के बोल से गुंजित हो उठा। अवसर था प्रभु श्रीकृष्ण के जन्म का। सोलहों कलाओं से युक्त नटवर नागर के पृथ्वी पर जन्म लेते ही हर तरफ खुशियां ही खुशियां बिखरी दिखाई देने लगी। अधर्म के नाश और धर्म की स्थापना के लिए प्रभु का जन्म हुआ। नर रूप में नारायण की की इस लीला में तीनों लोकों के लोग शामिल हुए और प्रभु आगमन की खुशियां मनाई गई।

क्ख् बजते ही खत्म हुआ इंतजार

हर कोई अपने आराध्य के स्वागत में बेचैन हुआ जा रहा था। रात गहराती जा रही थी। फिर जैसे ही आधी रात को घड़ी की सुईयां बारह पर पहुंची तो तुरंत ही शंख और घंटियों से की गूंज ने इस बात का एलान किया कि प्रभु का जन्म हो चुका है। भक्तों ने प्रभु की विधि पूर्वक पूजा-अर्चना की। उन्हें नया वस्त्र पहनाया गया और विविध प्रकार के नैवेद्य का भोग लगाकर अपनी श्रद्धा समर्पित की। भक्तगण देर रात तक प्रभु कीर्तन में लीन रहे। अधिकतर गृहस्थ लोगों ने रविवार को ही कृष्ण जन्मोत्सव मनाया वहीं वैश्णवजन सोमवार को जन्माष्टमी मनाएंगे। शैव मंदिरों में रविवार को ही जन्माष्टमी मनायी गई।

जगह जगह सजी प्रभु की झांकी

श्रद्धालुओं ने श्रीकृष्ण लीला की आकर्षक झांकियां सजाई। पूतना वध, माखन चोरी, रासलीला, नागनथैया आदि प्रसंगों को मिट्टी, लकड़ी और प्लास्टिक के खिलौनों से प्रदर्शित किया गया था। झांकियों में कृष्ण को प्रिय करौंदे और कदम्ब की डालियों से की गई सजावट खास रही। बिजली के रंग बिरंगे झालरों ने सजावट में चार चांद लगाये। बीएचयू के विभिन्न हॉस्टल्स में भी श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर आकर्षक झांकियां सजाई गई।

बाजार में उमड़े खरीदार

जन्माष्टमी की खरीदारी करने वालों से पूरे दिन शहर के लक्सा, चेतगंज, चौक, गोदौलिया, दशाश्वमेध आदि इलाके गुलजार रहे। लोगों ने सजावट के लिए करौंदे की डाली, अशोक की पत्ती, बुरादा, खिलौने आदि खरीदा। झांकी सजाने के लिए झांवा पत्थर की भी खरीदारी हुई। फूल मंडियों में काफी तेजी का माहौल रहा। फूल की छोटी माला भ् से क्0 रुपये किलो तक बिकी।

हाई रहे फलों के रेट

जन्माष्टमी पर श्रद्धालु व्रत रख कर भगवान की आराधना करते हैं। व्रत के चलते फलों की जोरदार खरीदारी हुई। इससे फलों के रेट्स में काफी तेजी रही। सेब क्ख्0 से क्म्0 रुपये किलो तो केला ब्0 रुपये प्रति दर्जन बिका। भगवान का जन्म खीरे में रखकर कराने की परंपरा है। इसी परंपरा के निर्वाहन के लिए लोगों ने खीरे की खरीदारी की। एक खीरा दस रुपये तक बिका।