1- मादा नीलगाय का रंग धूसर मटमैला या भूरा होता है जबकि नर का रंग नीलापन लिए होता है। नर के गले पर सफेद बड़ा धब्बा होता है जबकि मादा पर यह निशान नहीं होता है।

2- नीलगाय किस प्रजाति का है। इसको लेकर एकमत नहीं दिखाई देता। हालांकि 1992 में हुई फाइलोजेनेटिक स्टडी के अनुसार डीएनए की जांच से पता चला कि बोसलाफिनी बकरी, भेड़ प्रजाति, बोविनी गौवंश और ट्रेजलाफिनी हिरण प्रजाति प्रजाति के जानवरों से मिलकर नीलगाय बनी है।

3- ईसा से 1000 साल पहले लिखे गए ऐतरेय ब्राह्मण में भी नीलगाय का जिक्र मिलता है। उस वक्त इसकी पूजा भी की जाती थी। नवपाषाण काल और सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान भी मानव, नीलगाय के संपर्क में थे।

4- मुगल काल के दौरान इनके शिकार का भी जिक्र मिलता है। मुगल बादशाह जहांगीर की आत्मकथा में जिक्र मिलता है कि वे इसके शिकार पर काफी क्रोधित हो गए थे।

5- भारत के अलावा यह नेपाल, पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी पाया जाता है। 2001 में हुई गणना के मुताबिक भारत में इसकी संख्या करीब 10 लाख थी।

6- यह बिना पानी पिए कई दिन तक रह सकता है और खराब से खराब सतह पर बिना थके लंबी दूरी तक दौड़ सकता है। यह कम आवाज करता है लेकिन लड़ाई के वक्त बेहद तेज आवाजें निकालता है।

7- यह 200 किलो तक भारी होता है और कई बार तो बाघ भी इसका शिकार नहीं कर पाता। यह इतना अधिक ताकतवर होता है कि इसकी टक्कर से छोटी गाड़ियां पलट जाती हैं।

8- ये घने जंगल में जाने से परहेज करता है और घास, कंटीली झाड़ियों, छोटे पेड़ों वाले इलाके में रहना पसंद करता है। धीरे धीरे इन्होंने खाने के लिए खेतों की ओर जाना शुरु किया। तभी से मानव के साथ इनका संघर्ष शुरु हुआ है।

9- नीलगाय नाम नील और गाय से मिल कर बना है। नील उर्दू शब्द है जबकि गाय हिन्दी। मुगल बादशाह औरंगजेब के समय में इसे नीलघोर नीला घोड़ा कहा जाता था।

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