- आठ आईपीएस को सुपरसीड करके जावीद अहमद को चुना गया

-मौजूदा सरकार के आठवें डीजीपी, 1984 बैच के आईपीएस अधिकारी

-होम डिपार्टमेंट और सीबीआई में काम करने का भी रहा है अनुभव

LUCKNOW: राज्य सरकार ने 1984 बैच के आईपीएस अधिकारी जावीद अहमद को सूबे का नया डीजीपी बनाया है। वे इससे पहले डीजी रेलवे के पद पर तैनात थे। 1984 बैच के टॉपर जावीद अहमद आठ सीनियर आईपीएस अफसरों को सुपरसीड करके डीजीपी बने हैं। वे सीबीआई में ज्वाइंट डायरेक्टर भी रह चुके हैं। एनआरएचएम समेत यूपी के कई मामलों की सीबीआई जांच की अगुवाई उन्होंने ही की थी।

प्रवीन सिंह और वीके गुप्त को भी पछाड़ा

मौजूदा समय में सबसे सीनियर डीजी 1979 बैच के आईपीएस रंजन द्विवेदी हैं। इसके बाद 1980 बैच के सुलखान सिंह, 1981 बैच के विजय सिंह, 1982 बैच के वीके गुप्ता, प्रवीण सिंह और डॉ। सूर्य कुमार, 1983 बैच के गोपाल गुप्ता और राम नारायण सिंह को सुपरसीड कर वे डीजीपी की कुर्सी पर पहुंचे हैं। हालांकि, लगभग आधा दर्जन इनसे सीनियर अधिकारी मौजूदा समय में केंद्र सरकार में भी प्रतिनियुक्ति पर हैं। जगमोहन यादव के रिटायर होने के बाद डीजी सीबीसीआईडी प्रवीण सिंह और भर्ती बोर्ड के चेयरमैन वीके गुप्त में से किसी एक का डीजीपी बनना तय माना जा रहा था। अचानक बदले घटनाक्रम में राज्य सरकार ने जावीद अहमद पर भरोसा जताते हुए उन्हें प्रदेश पुलिस का मुखिया बना दिया।

माया सरकार में दो बार रहे होम सेक्रेट्री

1984 बैच के आईपीएस जावेद अहमद कानपुर, वाराणसी और आगरा में एसपी सिटी के पद पर रहे हैं। पौड़ीगढ़वाल (अब उत्तराखंड में), गाजीपुर, बलिया और जौनपुर में एसपी के पद पर रहे। मिर्जापुर और बरेली के अलावा रेलवे में डीआईजी रहे। पिछली मायावती सरकार में दो बार सेक्रेटरी होम रहे और लखनऊ व कानपुर जोन के आईजी रहे। 16 जून 2009 को वह केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर केंद्र सरकार चले गये जहां उन्होंने पांच साल सीबीआई में अलग-अलग पदों पर गुजारे। वह लखनऊ में सीबीआई के ज्वाइंट डायरेक्टर के पद पर भी लंबे समय तक रहे। वहां से लौटने के बाद 27 अगस्त 2014 को उन्हें पहले एडीजी रेलवे और फिर डीजी रेलवे के पद की जिम्मेदारी दी गयी।

इस सरकार के आठवें डीजीपी

जावीद अहमद मौजूदा सरकार के आठवें डीजीपी हैं। मार्च 2012 में जब प्रदेश में अखिलेश यादव के नेतृत्व में नयी सरकार बनी तो अतुल प्रदेश के डीजीपी थे, जिन्हें चुनाव आयोग ने बनाया था। सरकार बनने के चार दिन बाद उनके स्थान पर एसी शर्मा को डीजीपी बनाया गया। अप्रैल 2013 में देवराज नागर डीजीपी बने। दिसंबर 2013 में रिटायर होने के बाद रिजवान अहमद को यह जिम्मेदारी सौंपी गयी। दो माह बाद फरवरी में रिजवान अहमद रिटायर हो गये जिसके बाद एएल बनर्जी को डीजीपी बनाया गया। दस महीने बाद वह भी रिटायर हो गये। पहली जनवरी 2015 को अरुण गुप्ता को डीजीपी बनाया गया। इसके एक महीने बाद एके जैन प्रदेश के डीजीपी बने। उनका कार्यकाल दो माह शेष था। लेकिन, उन्हें तीन माह का एक्सटेंशन मिला और 30 जून 2015 तक वे इस पद पर बने रहे। जैन के बाद जगमोहन यादव डीजीपी बने और गुरुवार को वह भी रिटायर हो गये।

कहीं सपा का यह मुस्लिम कार्ड तो नहीं?

जावीद अहमद को डीजीपी बनाने के बाद कयास लगाये जा रहे हैं कि कहीं यह प्रदेश सरकार का एक और मुस्लिम कार्ड तो नहीं? क्योंकि जावीद अहमद से न सिर्फ कई अफसर सीनियर हैं बल्कि कुछ सरकार के करीबी भी माने जाते हैं। कुछ लोग इसे अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों की शुरुआत मान रहे हैं। हालांकि, लोकसभा चुनाव से भी ठीक पहले रिजवान अहमद को प्रदेश का डीजीपी बनाया गया था।