बगावत का बाग बना रहा था जवाहरबाग
दो साल तक बगावत का बाग बना रहा जवाहरबाग रविवार को आजाद हुआ। इतने लंबे समय तक कथित सत्याग्रही वहां आतंकियों की तरह कैंप चलाते रहे। ऑपरेशन जवाहरबाग में हुए नरसंहार के बाद तीन दिन तक यह संगीनों के साये में रहा। अपनी सारी जांच-पड़ताल के बाद रविवार शाम को प्रशासन ने इसमें प्रवेश की अनुमति मीडिया को दी। माना जा रहा है कि तीन दिन में पुलिस-प्रशासन ने यहां से काफी-कुछ हटा दिया होगा। मगर, जागरण की टीम यहां पहुंची तो चंद फर्लांग चलते ही अहसास हो गया कि यहां दो साल तक कोई कैंप नहीं चला, बल्कि नक्सली मानसिकता के हजारों लोगों का छोटा सा गांव बस चुका था। प्राकृतिक लिहाज से गांव, लेकिन वैसे तो इसे सुख-सुविधायुक्त शहर भी मान सकते हैं। उद्यान विभाग के कार्यालय की ओर से प्रवेश करने पर सबसे पहले इनका भंडार घर मिलता है। खाक हो चुके इस स्थान पर लोहे की रे¨लग जिस तरह से लगी थीं, वैसा ही दिखता है जैसे कि कोई डिपार्टमेंटल स्टोर में रैक बनाई जाती हैँ। लगभग सारा सामान जल चुका है, लेकिन नहाने, कपड़े धोने के साबुन, शैंपू, रिफाइंड, सरसों के तेल की टिन, मसाले, नमक आदि का ढेर पड़ा हुआ है। इसके पास ही एक बड़ा गोदाम था। इसमें दर्जनों नई बैटरी, सोलर पैनल, एलपीजी के छोटे और बड़े सैकड़ों सिलेंडर, हजारों लोगों के खाने के इंतजाम लायक बर्तन सहित गृहस्थी की जरूरत का सारा सामान यहां था।

जवाहरबाग के मध्य था रामवृक्ष का आवास
अंदर बाग में कथित सत्याग्रहियों के कपड़े बिखरे पड़े थे। कुछ राख के ढेर इशारा करते हैं कि यहां विद्रोहियों के रहने के तंबू होंगे। जवाहरबाग के मध्य के करीब रामवृक्ष ने अपना आवास बना रखा था। इसमें प्रवेश करते ही इस सरगना की करतूत और उजागर हो जाती है। अन्य विद्रोही जहां पेड़ों के नीचे या कुटिया बनाकर रहते थे, वहीं रामवृक्ष के आवास में एसी लगा हुआ था। आरामदायक गददे पर सोता था। यही नहीं, उसके आवास में बीयर की टूटी बोतलें मिली हैं। दो साल से यहां इसी का कब्जा था, इसलिए जाहिर है कि ये इंतजाम किसी और ने नहीं किए होंगे। इसके अलावा इसके आवास के बगल में जो पानी की बड़ी हौद जैसी बनी है, उसमें प्लास्टिक शीट लगाकर रामवृक्ष ने उसे अपने लिए स्वी¨मग पूल बना रखा था। वहां शैंपू के पाउच भी पड़े मिले।

ट्रैक्टर, कार सबकुछ था आंदोलनकारियों के पास
इन कथित सत्याग्रहियों पर पहरे और नकेल कसने के कितने भी दावे शासन या प्रशासन करता रहे, लेकिन जवाहरबाग बयां कर रहा है कि इन्हें किसी तरह की कोई असुविधा नहीं था। इन्होंने मनचाहे संसाधन उसी हिसाब से जुटा रखे थे, जैसे वह यहां स्थायी रूप से रहने या किसी बड़े ऑपरेशन की तैयारी में जमे हों। रामवृक्ष के आवास के बाहर एक ट्रैक्टर खड़ा मिला, तो बाग में प्रवेश करते ही दर्जनों कार, मेटाडोर आदि वाहन मिले, जिनमें से अधिकांश खाक हो चुके हैं। एक सवाल ये भी कि यदि इन पर प्रशासन की इनकी बंदिश थी तो इनके पास सैकड़ों गैस सिलेंडर कैसे आ गए। उनकी रीफि¨लग कैसे और कहां से होती थी।