इनमें से एक तिहाई पायलट जेट एयरवेज़ के थे। लोकसभा में अपने एक लिखित जवाब में केंद्रीय मंत्री वायलार रवि ने बताया है कि वर्ष 2009 के जनवरी से लेकर वर्ष 2011 के जून महीने तक पायलटों पर किए गए इस टेस्ट में पाया गया कि 67 पायलटों ने शराब का सेवन किया था। उन्होंने बताया है कि इनमें से 20 जेट एयरवेज़ के थे और नौ जेट लाइट के।

इसके अलावा 10-10 पायलट किंगफ़िशर और इंडिगो के थे, आठ स्पाइस जेट, छह एनएसीएल, दो गो एयर और एक-एक एलायंस एयर और एयर इंडिया चार्टर से थे। जहां 2009 में 33 पायलट नशे में धुत्त पाए गए तो 2010 में इनकी संख्या 23 थी और 2011 के जून के महीन तक 11 पायलट नशे में थे।

दिशानिर्देश

जेट एयरवेज़ की प्रवक्ता ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है, "हमारी ये नीति है कि हम उड़ान भरने से पहले क्रू सदस्यों का मेडिकल और नशा का पता लगाने के लिए सांस की जांच करते हैं और अगर ये पाया जाता है कि किसी भी क्रू ने शराब का सेवन किया है तो उसे सख़्त सज़ा दी जाती है."

वायलार रवि ने कहा, "नागरिक उड्डयन महानिदेशालय यानी डीजीसीए ने नवंबर 2010 में नागरिक उड्डयन के लिए कुछ दिशा निर्देश जारी किए थे जिसके तहत किसी भी उड़ान से पहले क्रू सदस्यों की मेडिकल और नशा का पता लगाने के लिए सांस की जांच करना ज़रुरी है." मंत्री का कहना था, "इस दिशा निर्देश के तहत सभी क्रू सदस्यों को मेडिकल चेक करवाना होगा और इसके तहत 100 प्रतिशत चेकिंग होनी चाहिए।

डीजीसीए के अधिकारी भी इसे लेकर निरीक्षण करते रहते है कि ये टेस्ट हो रहे है या नहीं। " उनका कहना था कि अगर ये पाया जाता है कि पायलट ने शराब का सेवन किया है तो उनके ख़िलाफ़ नागरिक उड्डयन और कंपनी की नीति के अनुसार कार्रवाई भी की जाती है.वायलार रवि का कहना है," नशे में पाए जाने पर क्रू की तनख़्वाह और भत्तों में कटौती की जाती है।

अगर पायलट ने पहली बार ये ग़लती की हो तो उसे विमान को उड़ाने की इजाज़त नहीं दी जाती और उसका लाइसेंस तीन महीनों के लिए रद्द कर दिया जाता है लेकिन अगर वह दूसरी बार यही ग़लती करता है तो उनका लाइसेंस पांच साल के लिए रद्द कर दिया जाता है."

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