RANCHI : विपरीत हालात में भी जो हौसला नहीं खोते हैं, सफलता उनके कदम चूमती है। परिस्थितियां चाहे जो भी हों, जोश, जुनून और मेहनत से मंजिल पाई जा सकती है। इसे सच साबित कर दिखाया है सिल्ली आर्चरी सेंटर की डिजेबल आर्चर सुशीला और बोंज सुंडी ने। सुशीला सिल्ली की ही रहनेवाली है, जबकि बोंज सुंडी का घर जमशेदपुर है। इन दोनों आर्चर्स ने अपनी शारीरिक खामी को खेल में आड़े नहीं आने दिया। इसी का परिणाम है आज इनकी गिनती इंटरनेशनल आर्चर के रूप में हो रही है।

मिली अंतराष्ट्रीय पहचान

साउथ कोरिया के इंचियोन में पिछले महीने आयोजित पैरा एशियन गेम्स में सुशीला और बोंज सुंडी को इंडियन आर्चर टीम को रिप्रेजेंट करने का मौका मिला। बोंज सुंडी ने जहां पैरा एशियन गेम्स में ब्रांज मेडल जीता, वहीं सुशीला भले ही मेडल जीतने में चूक गई हों, पर अपने परफॉर्मेस से उन्होंने सभी का दिल जीत लिया। पैरा एशियन गेम्स में पार्टिसिपेशन से इन दोनों आर्चर को अंतराष्ट्रीय पहचान मिली। सुशीला और ब्रोंज सुंडी का अब अगला टारगेट रियो पैरा ओलंपिक है। इनका सपना देश के लिए मेडल जीतना है।

बोंज के पिता करते हैं मजदूरी

जमशेदपुर के बोंज सूंडी के पिता लालू सुंडी मजदूरी करते हैं। किसी तरह घर का गुजारा चलता है, लेकिन बोंच का आर्चरी के प्रति जुनून कम नहीं हुआ। बड़े भाई को आर्चरी की प्रैक्टिस करता देख बोंज का रूझान इस खेल की तरह हुआ। ख्0क्ख् में उन्होंने निशाना साधना शुरू किया और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। इस बीच इनका सेलेक्शन सिल्ली आर्चरी एकेडमी में हो गया। यहां बोंज को सटीक निशाना लगाने की ट्रेनिंग मिली। वे सीनियर नेशनल पैरा गेम्स ख्0क्ख् में एक गोल्ड मेडल और एक ब्रांज मेडल जीत चुके हैं।

सुशीला के नाम नेशनल पैरा गेम्स मे तीन गोल्ड मेडल

सिल्ली के चिरूडीह गांव की रहनेवाली सुशीला कुमारी के पिता गणेश महली भी मजदूरी करते हैं। ख्0क्ख् में पढ़ाई के दौरान ही सुशीला का रूझान आर्चरी की तरफ हुआ। आर्चरी के फील्ड में सुशीला ने कदम रखा तो घर की विपरीत परिस्थितियों के कारण कई परेशानी भी उठानी पड़ी, पर हार नहीं मानी। सिल्ली आर्चरी एकेडमी में एडमिशन के बाद सुशीला की आर्चरी और निखर गई। ख्0क्ख् के सीनियर नेशनल पैरा गेम्स में सुशीला के नाम तीन गोल्ड मेडल हैं।