PATNA : विसिल ब्लोअर होना अबकी सोसाइटी में जान जोखिम में डालना है। नवंबर ख्00म् में बिहार सरकार ने राइट टू इनफॉरमेशन लागू किया। बावजूद इसके बिहार में सूचनाएं मांगना बहुत आसान नहीं। सरकार नहीं मानती पर आटीआई एक्टिविस्टों की मानें तो अब तक म् आटीआई एक्टिविस्टों की हत्या की जा चुकी है सूबे में। ब्म्भ् लोगों ने सूचना आयोग को जानकारी दी है कि उनको धमकियां मिल रही हैं। यही नहीं भ्0 से ज्यादा ऐसे मामले हैं जिसमें मानवाधिकार आयोग ने सरकार को कहा कि झूठे मुकदमे वापस लें व झूठे मुकदमे चलाने वालों पर कार्रवाई हो।

विकास चंद्र उर्फ गुड्डु बाबा

पटना के रहने वाले हैं और लगातार एक्टिव हैं। हाल में इन पर जानलेवा हमला हुआ। किसी तरह जान बची।

हाईकोर्ट ने स्टेट गवर्नमेंट को हिफाजत करने का दिया निर्देश

बिहार के सभी मेडिकल कॉलेज की सैकड़ों एकड़ जमीन से अतिक्रमण हटाने के लिए आरटीआई मांगा फिर हाईकोर्ट गए। हाईकोर्ट ने अतिक्रमण हटाने का आदेश ब्-08-क्क् को दिया। कोर्ट ने चार माह का समय दिया। हाईकोर्ट ने एक स्पेशल टास्क फोर्स का गठन भी किया। इसके चेयरमेन हेल्थ डिपाटमेंट के प्रिंसिपल सेक्रटरी बनाए गए। लेकिन चार और इसके बाद फिर मिले चार माह में भी जब बात नहीं बनी और तत्कालीन जस्टिस टी मीनाकुमारी ने केस को डिसमिस कर दिया तो गुड्डु बाबा ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर किया। सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस अल्तमस कबीर ने क्-ब्-क्फ् को हाईकोर्ट को मामला सुनने का निर्देश दिया। अब तक लगभग 9 एकड़ जमीन भागलपुर, 9 एकड़ दरभंगा, ख् एकड़ मुजफ्फरपुर, क्.9फ् एकड़ पीएमसीएच और ख् एकड़ गया में खाली करायी गयी है। ख्भ्-क्0-क्फ् को कोर्ट से आने के दौरान असामाजिक तत्वों ने फाइल छीनने की कीशिश की। कोर्ट ने ख्8-क्0 को आदेश दिया कि पिटिसनर व‌र्त्तमान और भविष्य के लोगों के लिए कार्य कर रहे हैं। इसलिए राज्य सरकार इनकी सुरक्षा करे। तब डीएम ने एक सुरक्षा गार्ड इन्हें दिया।

ब्0 मिनट बाथरूम में छिपे रहे

इधर पीएमसीएच का अतिक्रमण हटाया जा रहा था। क्7 जनवरी को फ् बजे पीएमसीएच सुपरिंटेंडेंट के यहां प्रथम अपीलीय सुनवाई (मामला अक्टूबर क्फ् का मशीन उपकरण से जुड़ा) में शामिल होने गये थे गुड्डु कि तभी कुछ लोगों ने इन पर हमला कर दिया। मारपीट की। गार्ड ने जान नहीं बचायी होती तो बचना मुश्किल था। ब्0 मिनट तक उन्हें बाथरूम में छिपकर जान बचानी पड़ी।

गोशाला की जमीन हड़पने का मामला

गुड्डु बाबा ने आरटीआई से सूबे की गोशालाओं का हाल पूछा। पता चला कि 8म् गोशाला हैं और पटना सहित ज्यादातर की जमीन हड़प ली गई है। जानवर ज्यादातर जगह पर नहीं हैं। इस मामले में ख्007-8 में पीआईएल किया। उस समय स्थानीय लोगों ने इनके साथ मिसबिहैब किया। तब हाईकोर्ट ने इन्हें विसिल ब्लोअर (समाज का प्रहरी) कहा। इसी केस में तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने प्रो बोनो पल्किो (दूसरे के लिए काम करने वाला) कहा।

दवा घोटाला, मशीन घोटाला और लावारिस लाश

गंगा को बचाने के लिए अभियान चलाने वाले गुड्डु बाबा ने ही पीएमसीएच दवा घोटाला का पर्दाफाश आरटीआई से किया था। इन्होंने विकलांग हॉस्पीलट कंकड़बाग में मशीन घोटाला को उजागर किया और इसमें अधीक्षक को जेल जाना पड़ा। साल लाख रुपए रिकवर भी किए गए। लावारिस लाशों से जुड़ा आईरटीआई चर्चा में है। हर राज्य के डीजीपी से मांगा है कि कितने लावारिस लाश पाए गए? निष्पादन के लिए कौन सा तरीका अपनाया गया? कितनी राशि का एलाउटमेंट है निष्पादन के लिए? परिजन को जानकारी पहुंचाने के लिए किससे एग्रीमटें किया गया? जानकारी में पता चला कि किसी से कोई एग्रीमटें नहीं किया गया। 70 हजार लावारिस लाशों की संख्या बतायी गई है। मामले में सुप्रीम कोर्ट ने होम मिनिस्ट्री को इससे जुड़ी गाइड लाइन व सर्कुलर लाने को कहा है। ये कानून बनेगा तो बड़ी बात होगी। गंगा में जानवरों के लावारिस लाश फेंकने का मामला भी आईटीआई से सामने लाया कि किसी निगम, पंचायत के पास जानवर दफनाने के लिए जमीन नहीं है। ख्9-ब्-क्0 को कोर्ट ने गंगा या सड़क पर मरे जानवर न फेंकने का निर्देश दिया पर ये जारी है। मामले में अवमाननावाद दायर किया गया है।

मुख्य सूचना आयुक्त नहीं आ रहे थे

गुड्डु बाबा ने ये मामला उठाया कि मुख्य सूचना आयुक्त नहीं हैं। ये पद एक साल से खाली था। मामले में तत्कालीन चीफ जस्टिस पीके मिश्र ने एक्स चीफ जस्टिस जेएन भट्ट को नोटिस जारी कर दिया कि आप ज्वाइन करिएगा कि नहीं। जब जेएन भट्ट ने लिख कर दिया कि वे नहीं आर रहे। इसके बाद एके चौधरी की नियुक्ति हुई।

महेन्द्र यादव

महेन्द्र पटना में रहते हैं। ख्00फ् से राइट टू इनफॉरमेशन में सक्रिय रहे। तब मांग को लेकर कैम्पेन चला करता था। वे बताते हैं धमकियां तो कई बार मिलीं

शौचालय के लिए बेस लाइन सर्वे

नालंदा पीएचइडी डिपार्टमेंट में बेस लाइन सर्वे से जुड़ी सूचना मांगी। इसमें कागज पर ही बेस लाइन सर्वे करा लिया गया था। सीएम को कम्पलेन करने के बाद आरटीआई में गए। वह सूचना अभी तक नहीं मिली। ये सूचना मांगने के बाद लोग खोजते हुए पहुंचे और धमकी दी।

फारबिसंगज गोलीकांड

इस गोलाकांड से जुड़ी सूचना मांगी कि घायलों का इलाज कहां हुआ? एसपी गरिमा मल्लिक ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को भेजी रिपोर्ट में कहा कि ख्8 पुलिसकर्मी घायल हैं और इलाज रेफरल अस्पताल फारबिसगंज में हुआ। लोकिन आरटीआई से हॉस्पीटल ने सूचना दी कि महज दो लोगों का इलाज रेफरल में हुआ। इससे ये साबित हुआ कि प्रशासन किस तरह से लोगों को फंसाते हैं। आरटीआई से जब ये सूचना मांगी गई कि तीन दिनों के अंदर एसपी और डीएम के कंट्रोल रूम के वायरलेस रूम के लॉग बुक की कॉपी दें तो कहा गया कि एसपी के यहां वायरलेस सेट नहीं है और डीएम के यहां तीन दिनों के अंदर कोई बातचीत रिकार्ड नहीं हुई है।

कोसी पुनर्वास का पैसा पड़ा है

कोसी बाढ़ के बाद कैंपों की लिस्ट जो आरटीआई से मांगी तो एक ऐसे कैंप की जानकारी दी गई जहां कैंप था ही नहीं। प्रशासन ने इंटरनेट से लेकर बाकी जगहों पर भी ये डाटा दे रखा था कि पांच हजार बाढ़ पीडि़तों का कैंप बुनियादी स्कूल बभनगावां, ब्लॉक बिहारीगंज, जिला मधेपुरा में चल रहा है। जब सच सामने आया तो सिग्नेचर कैंपेन चलाया और प्रशसान ने वहां कैंप खुलवाया। कोसी पुनर्वास से विश्व बैंक से कर्ज लेने के बावजूद पीड़तों के घर नहीं बन रहे थे। बिहार सरकार के योजना एवं विकास विभाग के अनुसार फ्क् जनवरी ख्0क्0 से शुरू होकर फ्क् जनवरी ख्0क्क् तक चार चरणों में योजना पूरी हो जानी थी। आरटीआई से पता चला कि फ्क् मार्च ख्0क्क् को बिहार आपदा पुनर्वास एवं पुननिर्माण सोसाइटी के बैंक खाते में 89.9 पैसा अनयूटिलाइज्ड ग्रांट के रूप में पड़ा है। अगले वित्तीय वर्ष में भी पुन: पैसे आए और फ्क् मार्च ख्0क्ख् को बैलेंस शीट में 87.फ् परसेंट पैसा अनयूटिलाइज्ड ग्रांट के रूप में पड़ा है। महेन्द्र यादव ने योजना को ठीक से लागू करने के लिए कोसी नवनिर्माण मंच बनाया और म्9 गांवों में पोल खोल हल्ला बोल साइकिल यात्रा की। बांका जिले के चानन डैम के किनारे अभीजीत ग्रुप कंपनी से जुड़ी कई सूचनाएं भी महेन्द्र यादव ने मांगी जिससे कई चौंकानेवाले तथ्य सामने आए।

महेन्द्र राय ने कहा- सरकार को हाईस्कूल व इंटर में अनिवार्य विषय के रूप में इसे शामिल करें। इससे घर-घर तक अवेयरनेस पहुंचेगा। एक्ट को सरकार ने ठीक से लागू नहीं किया है जिस वजह से सूचना लेने में काफी मुसीबत होती है। आयोग का रवैया लचर है। सूचना पाने के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ता है।

शिव प्रकाश राय

ये बक्सर के रहनेवाले हैं। नागरिक अधिकार मंच के संयोजक हैं। शिव प्रकाश राय ने कई सूचनाएं मांगी। कई मामले काफी चर्चित हुए।

नौ मामले हाईकोर्ट में हैं

अभी आठ-नौ मामले हाईकोर्ट में हैं। सोलर लाइट घोटाला, ब्0 हजार फर्जी शिक्षक नियुक्ति मामला, अरबों का टैक्स घोटाला जिसमें नीतीश कुमार और सुशील कुमार मोदी को आरोपित बनाया है, एनएमसीएच में डेढ़ करोड़ रुपए का सिटी स्कैन मशीन घोटाला ऐसे मामले हैं जिसमें इन्हें लगातार लड़ाई लड़नी पड़ी।

डीएम ने बुलाकर जेल भिजवा दिया

शिव प्रकाश बताते हैं कि मिलियन फेलो ट्यूब वेल योजना केन्द्र सरकार की योजना है। किसानों को खेतों में बोरिंग के लिए सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने के लिए योजना काम करती है। इस योजना में जब गड़बड़ी दिखी तो राइट टू इन्फारमेशन के माध्यम से सूचनाएं मांगी गईं। सूचना देने में देर हुई। डीएम साहब ने फोन कर सूचना लेने को बुलाया और फिर आरोप लगाया कि ख्भ् हजार प्रति माह रंगदारी की मांग ऑफिस में आकर करते हैं। ये आरोप लगाकर उन्होंने अरेस्ट कर जेल में डलवा दिया। जेल में ख्9 दिनों तक रहना पड़ा।

शिव प्रकाश राय ने कहा - राइट टू इनफॉरमेशन बड़े हथियार की तरह है। इसे सरकार की ओर से धारदार बनाया जाता तो सीबीआई या विजिलेंस की कोई जरूरत ही नहीं पड़े। जनता खुद करप्शन मिटा देगी।

रंजन कुमार

इन्होंने प्रशासनिक महकमे से जुड़े कई जनहित के मुद्दे उठाए। बेगूसराय के रहने वाले रंजन ख्007 से बतौर आरटीआई एक्टिविस्ट सक्रिय हैं।

कोसी का सवाल और राष्ट्रीय आपदा

कोसी त्रासदी में बिहार को लगभग ख्फ्00 करोड़ रुपए को केन्द्र के विभिन्न मंत्रालयों से स्वीकृत तो हो गया पर सरकार को उपलब्ध नहीं हो रहा था। आईटीआई डालने के बाद इस रहस्य से भी पर्दा उठा कि पीएम ने राष्ट्रीय आपदा घोषित किया था वह फाइल में था ही नहीं। होम मिनिस्ट्री ने कहा कि राष्ट्रीय आपदा घोषित करने का नियम नहीं है।

विधेयक की खोज हुई और पास हुआ

बिहार विशेष न्यायालय विधेयक जिसे संपत्ति जब्ती कानून के रूप में ख्याति मिली। इस कानून को राष्ट्रपति से स्वीकृति आरटीआई के बाद मिली। बिहार विधान मंडल से कानून बना बिहार भ्रष्ट आचरण निवारण अधिनियम क्98म्। जगन्नाथ मिश्र के समय ये कानून बना था। इसमें स्पीडी ट्रायल की व्यवस्था नहीं थी। जब नीतीश कुमार सीएम हुए तो उन्होंने महसूस किया कि बिहार विशेष न्यायालय विधेयक बनाया जाए। इसे विधान मंडल से स्वीकृत कर प्रेसीडेंट के पास भेजा। ये वहां लंबित था। नीतीश कुमार तब सभाओं में कह रहे थे कि केंद्र इस कानून को लेकर गंभीर नहीं है। होम मिनिस्ट्री अनुमोदित नहीं कर रहा है। तब आरटीआई की अर्जी प्रेसीडेंट भवन भेजा। उस के बाद ये तथ्य सामने आया (जनवरी, ख्0क्0)। क्क् जनवरी को आवेदन प्रेसीडेंट हाउस पहुंचा। वहां खोज हुई तो पता चला कि विधेयक राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिए पुहंचा ही नहीं था। क्ख् जनवरी को ये विधेयक होम मिनिस्ट्री से मंगवाकर ख्क् जनवरी ख्0क्0 को स्वीकृति मिल गई। इसी के तहत भ्रष्ट अफसरों की संपत्ति जब्त हुई और कुछ के घरों में स्कूल भी खोला सरकार ने।

सवाल दागा तो धमकी दी गई

बिहार टेस्ट पब्लिसिंग कॉरपोरेशन (बीटीबीसी) समय से किताबें नहीं दे रहा था बच्चों को। ख्008 में आईटीआई दिया रंजन कुमार ने। इसके बाद किताबें तो पहुंच गई। लेकिन जब दोषियों पर कार्रवाई की बात लायी गई तो घुमाफिरा कर धमकियां दिलवायी गई।

पोस्टर प्रदर्शनी पर मिली हाजत

ब्0 माइक्रोन से कम मोटाई के पोलिथीन कैरीबैग के उत्पाद और इसके इस्तेमाल, विक्रय पर बैन है। रंजन कुमार ने जब एसडीओ से इसकी सूचना मांगी तो ख्0क्क् में पंचायत इलेक्शन के समय भड़ास ऐसी निकाली कि ऐसे प्लास्टिक को लेकर पोस्टर प्रदर्शनी लगायी तो चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन का आरोप लगाकर हाजत में बंद करवा दिया।

मिथिलेश कुमार सिंह

ये पटना में रहते हैं। रहने वाले हैं बक्सर के। जेपी आंदोलन में जेल भी गए। इनका आरटीआई पॉलिटिकल सर्किल में काफी चर्चित रहा।

चारा, स्लीपर, जैक और डोंगरे मामले

चारा घोटाले में कई आरटीआई इन्होंने डाले और फिर मामले को कोर्ट तक पहुंचाया। इस मामले में नीतीश कुमार सहित कई नेताओं पर इन्होंने आरोप लगाए। रांची कोर्ट ने अभी जजमेंट रिजर्व रखा हुआ है। स्लीपर मामले में इन्होंने इतने सारे आरटीआई डाले कि मामला धीरे-धीरे रंग पकड़ने गला। ये उस समय का मामला है जब नीतीश कुमार रेल मिनिस्टर थे। जैक खरीद का मामला भी उसी समय का है। जिसमें देशी कंपनी की बजाय विदेशी कंपनी से जैक की खरीद का आरोप है। डोंगरे परिवार के आत्महत्या का मामला भी उसी वक्त का है।

लोकायुक्त और विधान परिषद्

लोकायुक्त मामले में मिथिलेश सिंह की ओर से आरटीआई डालने के बाद ही कार्रवाई हुई। इसी तरह बिहार विधान परिषद् में गवर्नर कोटे से लाए गए क्ख् एमएलसी किस-किस कोटे से आए हैं ये खुलासा किया। इसमें दिखा कि कैसे समाजसेवा कोटे से कई राजनेता उच्च सदन तक पहुंचाए गए। दो के बायोडाटा का बड़ा हिस्सा बिल्कुल समान है।

छह वैसे लोग जो मारे गए

क्.शशिधर मिश्रा, फुलवरिया, बरौनी

ख्। रामकुमार ठाकुर, रत्नौली पंचायत, मुजफ्फरपुर

फ्। राहुल कुमार- मुजफ्फरपुर

ब्। मुरधीधर- मुंगेर

भ्। राजेश कुमार- पीरपैंती

म्। रामविलास सिंह- बभनगामा, लखीसराय