नहीं पहुंचा कोई देखने

दावे हैं कि आपदा पीडि़त मरीजों का मुफ्त में इलाज किया जाएगा। उन्हें न तो बाहर से दवाइयां खरीदनी पड़ेगी और न ही खाने के लिए अपनी जेब से खर्च करना पड़ेगा। ये सभी सेवाएं इन्हें तब तक मिलती रहेंगी जब तक मरीज पूरी तरह से स्वस्थ हो कर अपने घर न लौट जाएं। इतना ही नहीं घर तक पहुंचाने के लिए भी सहायता राशि देने का दावा किया गया था। हाल यह है कि आज तक इन मरीजों को देखने एक भी सरकारी नुमाइंदा नहीं पहुंचा।

गुस्से में हैं मरीज और परिजन

16 जून को उत्तराखंड में हुई देश की सबसे बड़ी जल त्रासदी से बच निकल कर दून हॉस्पिटल में भर्ती किए गए आपदा प्रभावितोंं का इलाज भगवान भरोसे चल रहा है। करीब दो सप्ताह से यहां एडमिट इन पीडि़तों से मिलने शासन-प्रशासन का कोई भी नुमाइंदा तक नहीं पहुंचा है। हाल यह है कि अब खुद ही अपने खर्चे पर बाहर से खाने -पीने व दवाइयां मंगवाने के लिए मजबूर हो गए हैं। जहां तक राहत राशि, राहत सामग्री देने की बात की जा रही है, पर यह सिर्फ सरकारी दावा ही साबित हो कर रह गया है। हॉस्पिटल में एक दर्जन से अधिक मरीज भर्ती हैं जो अपनी जिंदगी की सलामती के लिए खुद ही जूझ रहे हैं।

वजर्न

क्या कहते हैं हॉस्पिटल में भर्ती आपदा प्रभावित?

16 जून को हुई आपदा में मेरा पांव फ्रैक्चर हो गया था। 18 जून को यहां उपचार के लिए आया था। कहने को तो यह सरकारी अस्पताल है लेकिन दवाइयां बाहर से मंगवानी पड़ रही है। आज तक कोई हाल पूछने नहीं आया। सहायता राशि तो दूर की बात है।

 -रहीस, सहारनपुर

3 जून को मसूरी में आरटीओ के कर्मचारियों ने मुझे मेरी मैक्स पिकअप के साथ पकड़ लिया। आरसी व लाइसेंस जब्त कर लिया। मुझे आपदा राहत सामग्री ले जाने को कहा गया। सोन प्रयाग के लिए आपदा सामग्री ले जा रहा था। इसी बीच राहत सामग्री ओवरलोड होने से मेरी गाड़ी पलट गई। हादसे में हाथ व पांव में गंभीर चोटें आई। प्रशासन की ओर से मुझे देखने के लिए यहां अभी तक कोई नहीं आया है। क्या एक ड्राइवर की यही जिंदगी होती है।

मिजाज अहमद, मसूरी

रामबाड़ा के पास मैं और मेरे चाचा रहते थे। घोड़े खच्चरों की सहायता से हम लोग यात्रियों को केदारनाथ तक छोड़ते थे। 16 जून को हुई आपदा के बाद मै यहां पहुंचा। मेरे एक पांव में इंफैक्शन हो गया था। डॉक्टर्स को यह पैर काटना पड़ा। आज तक कोई देखने नहीं आया। दवाइयां बाहर से मंगवानी पड़ रही है।

राकेश लाल, रुद्रप्रयाग

हेमकुंड में होटल में नौकरी करता था। आपदा ही है जिसने यहां तक पहुंचा दिया। सरकार की तरफ से बड़े दावे किए जा रहे हैं, लेकिन जब राजधानी में हम लोगों को सही इलाज और मदद नहीं मिल पा रही है तो पहाड़ में प्रभावित लोगों को तो कोई पूछने वाला नहीं है। कोई कह रह था कि 2700 रुपए मिलेंगे, लेकिन यहां अभी सरकार की तरफ से कोई झांकने तक नहीं आया है।

सोहन सिंह, कर्णप्रयाग

चारधाम यात्रा पर आया था। हेमकुंड के पास यह हादसा हो गया। कहने को तो यह हॉस्पिटल राज्य का सबसे बड़ा हॉस्पिटल है, लेकिन यहां भी इलाज ढंग से नहीं हो पा रहा है। मुझे दवाइयां बाहर से लेनी पड़ रही है। खाने पीने तो दूर चाय तक बाहर से मंगवानी पड़ रही है।

जगवीर सिंह, इलाहाबाद

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बच्ची से मिलने आते हैं सब

ऐसा नहीं है कि कोई सरकार का कोई नुमाइंदा दून हॉस्पिटल तक नहीं पहुंचा है। प्रदेश के स्वास्थ मंत्री से लेकर कई अधिकारी दून हॉस्पिटल पहुंचे हैं, लेकिन उनकी मंजिल सिर्फ वो नन्ही बच्ची है, जिसके परिजनों का आज तक पता नहीं चल सका है। लोकल मीडिया के साथ ही नेशनल मीडिया में इस बच्ची की चर्चा है। यहां तक की सोशल मीडिया में भी बच्ची की फोटो शेयर की जा रही है। रातों रात यह बच्ची मीडिया की सुर्खी बन गई थी। यही कारण है कि जितने भी लोग पहुंचे वो इस बच्ची तक ही पहुंचे। दून हॉस्पिटल में ही भर्ती आपदा से पीडि़त अन्य लोगों को देखने वाला कोई नहीं।