दोनों देश इस ज़मीन पर अपना दावा करते हैं और इसके चलते उनमें कई बार झड़पें भी हो चुकी हैं.

साल 1962 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) ने व्यवस्था दी थी कि इस मंदिर पर कंबोडिया का अधिकार रहेगा लेकिन मंदिर के आसपास की भूमि पर उसने कोई फ़ैसला नहीं सुनाया था.

दोनों देशों के बीच संघर्ष होने के बाद कंबोडिया ने साल 2011 में इस पर स्पष्टीकरण मांगा था.

अप्रैल 2011 में हुई हिंसा में कम से कम 18 लोग मारे गए थे और हज़ारों लोग विस्थापित हुए थे.

झड़प

कंबोडिया के प्राचीन मंदिर पर अहम फैसला आज

दिसंबर 2011 में दोनों पक्षों के बीच सैनिकों को विवादित जगह से हटाने पर सहमति बनी थी.

हाल ही में  थाईलैंड के एक विमान को मंदिर के आसपास की विवादित ज़मीन के ऊपर नीची उड़ान भरते हुए देखा गया था जिसके बाद थाईलैंड सीमा पर तैनात कंबोडिया की सशस्त्र सेनाओं के प्रमुख ने शनिवार को एक आपात बैठक बुलाई.

हालांकि कंबोडिया के क्षेत्रीय कमांडर जनरल स्रे दियूक ने बीबीसी से कहा कि वह उम्मीद करते हैं कि सोमवार को आने वाले फ़ैसले के बाद थाई सेना के साथ कोई समस्या नहीं होगी.

उन्होंने कहा कि मंदिर में सैनिकों को तैनात नहीं किया गया है.

लेकिन सीमा के आसपास बसे गांवों में राष्ट्रवादी संगठनों के उकसावे से हिंसा की आशंका है.

'द नेशन' अख़बार के मुताबिक़ एक राष्ट्रवादी संगठन थाई पैट्रिओटिक नेटवर्क ने धमकी दी है कि वह अंतरराष्ट्रीय अदालत के हर फ़ैसले का विरोध करेगा. संगठन ने अदालत से इस मामले को ख़ारिज करने का अनुरोध किया है.

विवाद

यह ज़मीन एक शताब्दी से भी अधिक समय से दोनों देशों के बीच विवाद का कारण बनी हुई है.

मंदिर का मालिकाना हक़ कंबोडिया को दिए जाने से थाईलैंड में काफ़ी नाराज़गी थी लेकिन कंबोडिया में गृहयुद्ध के कारण यह मामला ठंडा पड़ा रहा. कंबोडिया में गृहयुद्ध 1990 के दशक में समाप्त हुआ.

साल 2008 में कंबोडिया ने जब मंदिर को  यूनेस्को की विश्व धरोहरों की सूची में शामिल करने के लिए आवेदन दिया तो यह मामला एक बार फिर गर्म हो गया.

मंदिर को तो यूनेस्को की विश्व धरोहरों की सूची में शामिल कर लिया गया लेकिन इसने थाईलैंड में राष्ट्रवादी भावनाओं को भड़का दिया. दोनों देशों ने सीमा पर सैनिकों की तैनाती शुरू कर दी.

आईसीजे का सोमवार को आने वाला फ़ैसला साल 1962 के निर्णय की ही व्याख्या होगा और इसके ख़िलाफ़ अपील नहीं की जा सकेगी.

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