- तीन साल पहले तक खिलाडि़यों ने दिखाया है दम

- कुल पांच साल स्टेडियम में हुआ है गेम, आए थे गई मेडल

- अब गेम का नामो-निशान भी नहीं है मौजूद

GORAKHPUR: जूडो का नाम जब भी सामने आता है, तो जहन में बस व्हाइट ड्रेस और कलरफुल बेल्ट पहने लड़ाके नजर आते हैं। गोरखपुर में अब ऐसी ड्रेस पहने लड़ाके तो नजर आ जाएंगे, लेकिन यह जूडो के नहीं बल्कि इसके पैरलल खड़े हो चुके कराटे, कूडो, ताइक्वांडो, ग्रेपलिंग और न जाने कितने खेल एक जैसी पोशाकों में होने लगे हैं, इससे असल खेल जूडो गायब होता जा रहा है। जिम्मेदारों की नजरे इनायत भी इस गेम पर अब नहीं रह गई है। यही वजह से है कि अब दिन ब दिन यह खेल गायब होता जा रहा है। आज शहर में जूडो का नाम लेने वाला भी कोई नहीं बचा है।

छह साल तक दिखे लड़ाके

जूडो की बात करें, तो गोरखपुर में इसका नाम काफी कम दिनों के लिए नजर आया। शहर में सुविधाएं न होने से पहले कोई इस गेम की ओर ध्यान नहीं देता था। फिर करीब दस साल पहले रीजनल स्पो‌र्ट्स स्टेडियम के जिम्मेदारों ने इस मामले में पहल की और काफी मशक्कतों के बाद 2007 में इसका कैंप एलॉट करवाया। करीब 6 साल तक कैंप में खिलाडि़यों ने जमकर पसीना बहाया और मेडल जीते। मगर एक बार फिर इस पर बुरा साया जा पड़ा और कोच ने अपनी अलग राह पकड़ ली, जिससे स्टेडियम से भी यह कैंप बंद हो गया।

दो साल पहले कैंप बंद

जूडो के खिलाड़ी जब अपना दम दिखाने लगे और दूर-दूर से सिटी के खाते में मेडल लाने लगे, तो जिम्मेदारों ने परेशानी बढ़ा दी। करीब दो साल पहले गोरखपुर रीजनल स्पो‌र्ट्स स्टेडियम से यह कैंप ही खत्म हो गया। कोच को सरकारी नौकरी मिल गई, जिससे उन्होंने दूसरी राह पकड़ ली। इससे खिलाडि़यों को परेशानी होने लगी। पिछले दो साल से स्टेडियम में जूडो के खिलाड़ी तो हैं, लेकिन कैंप न होने से अब मेडल के टोटे पड़ गए हैं।

पैरलल स्पो‌र्ट्स का बोलबाला

सिटी में अब जूडो के खिलाड़ी तो कम नजर आते हैं, लेकिन इसके पैरलल स्पो‌र्ट्स ने अपनी जगह बनानी शुरू कर दी है। कराटे का इस साल ओलंपिक में शामिल किया गया, जिसे देखते हुए कुछ पेरेंट्स ने अपने बच्चों को इस ओर भेजना शुरू कर दिया। वहीं ग्रैपलिंग, कूडो और ताइक्वांडो जैसे गेम्स में खिलाडि़यों ने मेहनत शुरू कर दी और जूडो से अपना नाता तोड़ लिया।

दो साल पहले स्टेडियम में जूडो का कैंप चलता था, लेकिन इसके बाद से कैंप अलॉट नहीं हुआ। यहां के लड़के अब भी प्रैक्टिस करने के लिए स्टेडियम आते हैं। इस गेम में कई मेडल भी आए हैं।

- दिलीप कुमार, ऑफिशिएटिंग आरएसओ