दोनों पक्षों ने अपनी दलीलें पेश कीं
नई दिल्ली (आईएएनएस)। अयोध्या में विवादित भूमि पर मालिकाना हक के मामले में शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई  हुई। इस दौरान शिया वक्फ बोर्ड और सुन्नी वक्फ बोर्ड आमने-सामने आ गए। न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर की पीठ में दोनों पक्षों ने अपनी दलीलें पेश कीं। सेंट्रल शिया वक्फ बोर्ड ने खुद को जमीन के एक हिस्से का असल दावेदार बताया। उसका कहना है कि इस पर उसका हक है। इसलिए वह उस जमीन को मंदिर बनाने के लिए देना चाहता है।

अयोध्या में बाबरी मसजिद गिराई

वहीं याचिकाकर्ता सुन्नी वक्फ बोर्ड के वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा कि जिस प्रकार अफगान तालिबान ने बामियान में बुद्ध की प्रतिमा तोड़ी,  ठीक उसी प्रकार हिंदू तालिबान ने 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में बाबरी मसजिद गिराई। हिंदू पक्षकार की दलील का प्रतिकार करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि मसजिद ध्वस्त करने का अधिकार किसी को नहीं है। यह भी कहा कि यह दलील नहीं होनी चाहिए कि इसमें कोई इक्विटी नहीं और एक बार इसे ध्वस्त किए जाने के बाद इस पर फैसला करने के लिए कुछ बचा ही नहीं है।

तीन हिस्सों में बांटी गई थी जमीन

धवन ने इस बात का भी जिक्र किया है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने 1994 के फैसले में कहा था कि नमाज अदा करना इस्लाम की आवश्यक प्रथा नहीं है। इस पर दोबारा विचार करने की जरूरत है। बता दें कि शीर्ष अदालत में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 में फैसले को चुनौती दी गई। उस फैसले पर ही याचिकाएं दायर की गई थीं। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में विवादित 2.77 एकड़ भूमि को तीन भागों में विभाजित कर दिया था। तीन में एक हिस्सा निर्मोही अखाड़ा दूसरा भगवान राम और तीसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड का है।

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