एक्साइटमेंट, अशिक्षा, गरीबी और मॉरल वैल्यूज की कमी बहका रही किशोरों के कदम

मेच्योरिटी एज हुई 12-14 साल, कम उम्र में ही सेक्स व क्राइम का बढ़ा अट्रैक्शन

BAREILLY:

देश में बेशक जुवेनाइल क्राइम को लेकर कड़ी सजा देने की उम्र पर विवाद बना हुआ है, लेकिन किशोरों के क्रिमिनल बनने की वजहों पर मंथन न होना भी इसकी एक बड़ी वजह है। युवा दहलीज पर कदम रख रहे किशोरों को जो भी वजहें अपराधी बना रही, उसके लिए घर-परिवार का माहौल जिम्मेदार है। किशोरों के बदलते बिहेवियर और एक्टिविटीज पर नजर न रखना, फैमिली मेंबर्स का खराब बिहेवियर, कम उम्र में ही बच्चों को सारी सुविधाएं देने की मां-बाप की ललक और छोटे अपराधों में फैमिली की ओर से कोई एक्शन न लेकर उन्हें जाने-अनजाने सपोर्ट करना जैसी तमाम वजहें किशोरों के लिए जरायम की राह तैयार कर रही।

जिंदगी में एक्साइमेंट की तलाश

जुवेनाइल केसेज की स्टडीज कर चुकीं साइकॉलोजिस्ट डॉ। हेमा खन्ना ने बताया कि किशोरों के क्राइम करने की एक वजह एक्साइटमेंट भी है। बच्चे से बड़े हो रहे किशोर अपनी जिंदगी में एक्साइटमेंट तलाश रहे होते हैं। इस एक्साइटमेंट की तलाश ही उन्हें नियमों की अनदेखी करने और कानून तोड़ने के लिए उकसाती है। धीरे-धीरे यह फितरत बड़े अपराधों को करने का हौसला देती है। वहीं अशिक्षा, गरीबी और मॉरल वैल्यूज की कमी भी किशोरों में क्राइम करने की बड़ी वजहें हैं। पैसे कमाने, स्टेटस मेंटेन करने और सही गलत में फर्क न करने की सोच इन्हें कम उम्र में ही क्रिमिनल बना रही।

बचपन की शैतानी बना रही शैतान

किशोरों के रेप, मर्डर और लूट जैसे गंभीर अपराधों की शुरुआत उनकी बचपन की शैतानियों का ही अंजाम हैं। साइकॉलोजिस्ट के मुताबिक बचपन की शरारतें परिवार वाले हंसी मजाक में लेते हैं। यही शैतानी धीरे-धीरे आदत बन जाती है और लोग परेशान होने लगते हैं। यह आदतें और दूसरों को परेशान करने में मिलने वाली खुशी किशोरों को जरायम की दुनिया में पहला कदम रखवाती है। कई मामलों में ऐसे किशोर अपनी फैमिलीज से कानून से न डरने, पैसे से काम कराने और पहुंच वाले लोगों से रिश्ते बना रसूख कायम रखने की टेंडेंसी एडॉप्ट कर लेते हैं। यही सोच फॉलो करते हुए वह कानून से बिना डरे अपराध करने को मोटिवेट होते हैं।

रिहैबिलिटेशन सेंटर न होना ट्रेजिक

बच्चों को कम कम उम्र में ही स्मार्ट फोन, टैबलेट और टीवी-इंटरनेट से मर्डर से लेकर सेक्स तक सब कुछ परोसा हुआ मिल रहा। यही वजह है कि बच्चों की मेच्योरिटी एज 16-18 से घटकर 12-14 साल हो गई है। जो कम उम्र में ही उन्हें बड़े क्राइम करने में भी मेच्योर कर रही। साइकॉलोजिस्ट के मुताबिक जिन मामलों में किशोरों से भूलवश कोई क्राइम होता है, उनमें ज्यादातर को अपनी गलती का अहसास और पछतावा होता है। लेकिन जो किशोर आदतन क्राइम कर रहे, उन्हें अपने किए का पछतावा नहीं होता। ऐसे किशोरों को सुधारने के लिए रिहैबिलिटेशन सेंटर की जरूरत है।

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किशोरों के क्रिमिनल बनने के पीछे पारिवारिक माहौल बड़ा जिम्मेदार है। बच्चे समय से पहले मेच्योर हो गए हैं। आदतन छोटा बड़ा क्राइम करने के आदी हो रहे। मीडिया-फिल्मों में भी क्राइम को ग्लैमराइज किया जा रहा। जुवेनाइल के तहत क्राइम की गंभीरता को देख सजा दी जानी चाहिए, न कि उम्र देखकर।

- डॉ। हेमा खन्ना, साइकॉलोजिस्ट

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