देशी खेल को मिल रही पहचान

फिल्म के निर्देशक शैलेश वर्मा कहते हैं कि स्पोटर्स मेरी जिंदगी के करीब रहा है. बचपन से हर स्पोटर्स खेला है. कर्म मूवीज द्वारा निर्मित यह फिल्म अधिकाशं ग्रामीण पृष्ठभूमि लिए हुए है, जो कबड्डी खेल पर आधारित है. वह कहते हैं कि इन दिनों कबड्डी को एक भी बेहतर खेल के रूप में देखा जा रहा है. इस खेल में भी एक अच्छे करियर की उम्मीद अब की जा सकती है. एशियाई खेलों में महिला और पुरूष वर्ग में गोल्ड मेडल जीतने और इससे पहले कई फिल्मी सितारों का कबड्डी को अहमियत देने से इस देशी खेल को नया जीवन मिला है. यही सब देखकर ही उन्होंने दो साल पहले कबड्डी को प्रमोट करने के लिए बीड़ा उठाया था, इसलिए अब सही मौका देखकर ही इस फिल्म को रिलीज कर रहे हैं.

Director : Shailesh Verma

Cast : Nishan as Vija, Saranya Mohan as Sapna, Annu Kapoor as Swathi, Puja Gupta as Manjari, Anupam Maanav as Dr. O.P Malhotra, Kishori Shahane,  Aman Verma

    

Producer : Karrm Movies

हर किसी की एक्ट्रेस बनने की चाहत

इस फिल्म में लीड रोल निभाने वाली अभिनेत्री पूजा गुप्ता का कहना है कि इसमें एक जर्नलिस्ट की बेटी का रोल कर रही हूं. मुझे इसकी कहानी जब मैने सुनी थी तभी बहुत पंसद आई थी. इसमें एक मेरी मुलाकात गांव से कबड्डी खेलने का ख्वाब लेकर आने वाले कुछ ब्वॉयज से होती है. दोस्ती के बाद मेरा कबड्डी की पूरी टीम के साथ एक अच्छा रिलेशन बन जाता है. पूजा कहती हैं कि यहां हर कोई हीरोइन बनने ही आता है लेकिन इस दौरान मुझे एक चीज का अहसास हुआ कि साधारण लड़की के मुंबई में करियर बनाना कठिन होता है. इसके लिए उसे बहुत सफर उठाना पड़ता है.

कबड्डी की किया प्रॉपर प्रैक्टिस

एक्टर निशान फिल्म में लीड रोल में है. वह कहते हैं कि बचपन में बहुत कबड्डी खेली. बिल्कुल रफ गेम रहता था. एक दूसरे को पटकना लगा रहता था, पर इस फिल्म की शूटिंग के लिए प्रॉपर कोच आया, क्योंकि कबड्डी को प्रफेशनल तरीके से फिल्म दिखाना था. कोच ने प्लेयर्स को सारे नियम आदि बताए इसके बाद प्रॉपर कबड्डी की प्रैक्टिस कराई गई. फिल्म में कबड्डी के खेल में होना वाले उतार चढ़ाव को बिल्कुल हकीकत में उकेरा गया है. इस फिल्म सबसे खास बात तो यह फिल्म स्पोटर्स के उस हिस्से को उभारती है जो कभी अपनी एक साधारण सी पहचान को मोहताज था. जिससे मुझे इसे करने में बहुत मजा भी आया.

कबड्डी ने बदला गांव का लक

बतौर डायरेक्टर यह शैलेश की डेब्यू फिल्म में कबड्डी इसमें 35 मिनट है, बाकी समय में प्यार-मोहब्बत, कुछ कॉमेडी भी है. इस फिल्म में कबड्डी के बहाने ग्रामीण भारत की समस्याओं, वहां की तकलीफों, अभावों जैसे मुद्दो को उठाया गया है. कहानी बदलापुर गांव की है, जहां कुछ लड़के कबड्डी खेलते रहते हैं, लेकिन बड़े-बुजुर्ग उन लड़कों को नाकारा-निकम्मा समझते हैं. वे उन्हें काम और कमाई करते देखना चाहते हैं, लेकिन वे लड़के कबड्डी को ही जीते हैं और उनकी इच्छा है कि इस खेल के साथ चलकर अपने गांव का नाम रोशन करें. तभी उन लड़कों की मुलाकात एक कबड्डी कोच से होती है, जो न सिर्फ लड़कों, बल्कि गांव का भी भाग्य बदल देते हैं.

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