कहानी :

देवदास विथ आ हैप्पी फिल्मी एंडिंग

रेटिंग : 3.5 स्टार

समीक्षा :

इस फिल्म की थीम है एंगर मैनेजमेंट। कबीर महा गुसैल मिसोजनिस्ट है, पर मिसोजनिस्ट से ज़्यादा वो सेल्फ ऑब्सेस्ड है, इतना ज्यादा कि वो हर एक इंसान को अपने खिलौने की तरह यूज़ करता है, क्यों? पता नहीं, क्यों। अगर कबीर के झल्ले होने का कोई कारण आप पता लगाना चाहें तो कहना मुश्किल है। अगर आप इस बात को नज़र अंदाज़ करके सिर्फ इस झल्ले कबीर की ज़िंदगी की झलक देखने के इछुक हैं तो कबीर सिंह बुरी फिल्म नहीं है। फिल्म एक ग्रे इंसान की ग्रे कहानी है, और स्टोरी टेलिंग के लिहाज से देखें तो फिल्म अच्छी लिखी हुई है, डाइलोग अच्छे हैं और मोस्टली फिल्म मेडिकल स्टूडेंट्स के ज़िंदगी को बहुत ही बढ़िया तरीके से दिखाती है है। फिल्म कहीं कहीं रेपीटीटिव हो जाती है और इसी कारण से कहीं कहीं स्लो हो जाती है। फ़िल्म का आर्ट डायरेक्शन और कॉस्ट्यूम डिपार्टमेंट बढ़िया।

अदाकारी :

शाहिद की लाइफ की अब तक कि मेरे हिसाब से ये तीसरी सबसे बढ़िया पेरफ़ॉर्मेन्स है (बाकी दो हैदर और उड़ता पंजाब)। शाहिद एक एक सीन में जान फूंक देते हैं, हालांकि वो इस तरह के रोलज़ में टाइपकास्ट होते जा रहे हैं। कियारा आडवाणी फिल्म में एक मज़लूम बेज़ुबान डॉक्टर बनी हैं, उनके करने के लिए इस फिल्म में ज़्यादा कुछ था नहीं पर फिर भी उनकी अब तक रिलीज़ सारी फिल्म्स में ये बेस्ट है। कामिनी कौशल जी तो हमेशा की तरह लाइकेबल हैं, सुरेश ओबेरॉय भी बढ़िया है। पितोबश इस फ़िल्म की जान हैं और इस फिल्म का सबसे फ्लालेस पेरफ़ॉर्मेन्स भी। कुणाल ठाकुर का काम भी बढ़िया है, ओवरऑल कास्टिंग बढ़िया है।

वर्डिक्ट :

मिसोजनिस्ट तो ये फिल्म है, पर ये फिल्म जैसी दुनिया है वैसी ही दिखती है, लव रंजन की फिल्मों की तरह ये उस बात को मज़ाक नहीं बनाती, न ही ग्लोरिफय करती है पर फिर भी कबीर के सेल्फ ओबसेशन को एक लेवल तक ग्लैमराज़ करती है। निश्चित ही ये फिल्म कॉलेज गोइंग क्राउड को खासी पसंद आएगी, बाकियों को ये फिल्म शायद इतनी अच्छी न लगे। फिर भी शाहिद के बढ़िया पेरफ़ॉर्मेन्स के लिए देख सकते हैं कबीर सिंह।

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