- निर्माण के लिए आंदोलन में लगा रंगाश्रम

- स्थापना दिवस पर होंगे विविध कार्यक्रम

GORAKHPUR: इस शहर में कलाकारों की प्रतिभा दम तोड़ रही है। मंच के अभाव में रंगकर्म की चकाचौंध धूमिल पड़ती जा रही। बावजूद इसके गोरखपुर के जीवट कलाकारों की एक आस जिंदा है। कभी तो दिन बहुरेंगे। मंच पर उम्मीदों के फूल खिलेंगे, इसीलिए तो शायद, रंगाश्रम में रंगकर्म की धुनी रोज जलती है। स्थापना दिवस के मौके पर रंगाश्रम की ओर से मुंशी प्रेम चंद के नाटक कफन का मंचन किया गया। रंगाश्रम आंदोलन की कड़ी में 1201वें नाटक को देखने के लिए अपेक्षित भीड़ नहीं उमड़ी। हालांकि आयोजकों का जोश बता रहा था। उनके आंदोलन को एक दिन मुकाम जरूर मिलेगा। सालों से अधूरे पड़े प्रेक्षागृह के सपने परवान चढ़ेंगे।

1993 में लिया था संकल्प

करीब 23 साल पहले रंगाश्रम आंदोलन शुरू हुआ। 1986 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ने गोरखपुर में 5.4 करोड़ की लागत से ऑडिटोरियम बनाने की घोषणा की। काम शुरू होने के कुछ दिनों बाद मामला विवादों में अटक गया। कोर्ट में मुकदमा पेंडिंग होने से कोई निर्माण नहीं हो सका। 1993 में विश्व रंगमंच के दिवस पर रंगाश्रम के जरिए प्रेक्षागृह का निर्माण पूरा होने तक हर शनिवार को एक नाटक का मंचन करने का संकल्प लिया गया। रंगकर्मी केसी सेन ने इसका बीड़ा उठाया। तभी से रंगकर्म की धुनी रम रही है। हर शनिवार को रंगाश्रम के माटी वाले मंच पर नाटक का मंचन किया जा रहा है।

व्यवस्था ने किया मजबूर

शहर में रंगकर्म से जुड़े कलाकारों की पीड़ा सुनने वाला कोई नहीं। रोजी-रोटी के लिए जूझने वाले कलाकारों किसी तरह से अपना जीवन यापन कर रहे हैं। शहर में रंगकर्म से जुड़कर ज्यादातर लोगों को बड़ा मुकाम हासिल नहीं हो सका। व्यवस्था ने कलाकारों को इस कदर मजबूर कर दिया है। उनके पास कोई अन्य विकल्प नहीं बचा है। शहर के रंगकर्मी दूसरे कामों में उलझकर रह गए हैं।

यह एक लाइम लाइट का काम है। आज का कलाकार चमक-दमक से मुकाम पाना चाहता है। समर्पण, प्रेम और लगन के इस काम में वह बात कहां कि लोग इसके पीछे जाएं।

राजेश राज, कलाकार

मैंने कई फिल्मों में काम किया। टीवी चैनल्स के लिए भी प्रयास किए। लेकिन तमाम ऐसे कलाकार हैं जो अभी भी मौका नहीं पा रहे हैं। रंगकर्मियों के सामने तमाम चुनौतियां हैं। उनसे निपटने में सारी उर्जा बेकार चली जाती है।

सतीश वर्मा, कलाकार

मैं मुंबई में फिल्म प्रोड्यूस कर रहा हूं। मुझे यहां कार्यक्रम की जानकारी मिली तो चला आया। यहां बहुत से कलाकार हैं। उनको मौका देने की जरूरत है।

सुंधाशु श्रीवास्तव, फिल्म डायरेक्टर

मेरे सपने जरूरी पूरे होंगे। अपने स्थापना दिवस पर हम लोग विविध आयोजन कर रहे हैं। इसमें सभी लोगों का सहयोग मिल रहा है। रंगकर्म को लेकर लोगों के बीच जागरुकता से कद्रदानों की तादाद बढ़ेगी।

केसी सेन, कलाकार