- सीटीवीएस एचओडी पर गंभीर आरोप, महंगे दामों पर खरीदे जीवन रक्षक उपकरण

- पैसों के लालच में 60 मरीजों को नहीं लगाए वॉल्व, 18 गरीबों को गंवानी पड़ी जान

जांच में सामने आई कलंक कथा

- वॉल्व की मार्केट प्राइस 32 हजार

- सीटीवीएस में 56 हजार में दिए गए

- मरीजों को वॉल्व लगाने के बाद कमीशन डॉक्टर की जेब में

- 60 वाल्व का पेमेंट मरीजों ने किया, लेकिन लगाए नहीं गए

- गरीबों के नाम से सरकार से लिए 37 लाख

- गरीब मरीजों को लगाए ही नहीं गए वॉल्व

मेडिकल स्टोर को पहुंचा फायदा

- ठेके पर चल रहे आमा मेडिकल स्टोर्स से खरीदे गए वॉल्व

- 37 लाख का पेमेंट तो आमा मेडिकल स्टोर को चला गया

- ये वॉल्व विभाग को भेजे ही नहीं गए

- दोगुने-तिगुने दामों पर खरीदे गए उपकरण

LUCKNOW: किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी की कलंक कथा में एक नया चैप्टर जुड़ गया है। इस बार मामला एक ऐसे घोटाले से जुड़ा है, जिसने 18 गरीब मरीजों की जान ले ली। इसका खुलासा तब हुआ जब वीसी प्रो। रविकांत द्वारा गठित ऑडिट कमेटी ने अपनी रिपोर्ट पेश की। रिपोर्ट में पता चला कि साल 10 जुलाई 2012 से 21 अप्रैल 2016 के बीच सीटीवीएस के तत्कालीन एचओडी प्रो। एसके सिंह ने दिल के मरीजों के लिए जीवन रक्षक एक्विपमेंट मंगाए, लेकिन उन्हें लगाए नहीं गए। ऐसे परिजनों को जब जांच कमेटी ने फोन किया तो पता चला की 18 गरीबों अपनी जान गंवा चुके हैं। कमीशनखोरी और मुनाफे के चक्कर में जीवन देने वाले डॉक्टर हैवान बन गए।

एचओडी बदलने पर खुलासा

इसी साल अप्रैल में प्रो। एसके सिंह को हटाकर प्रो। शेखर टंडन को एचओडी बना दिया गया। तब घोटाले का खुलासा हुआ। प्रो। शेखर टंडन ने वीसी प्रो। रविकांत को मामले की जानकारी दी। प्रो। रविकांत ने ऑडिट कमेटी का गठन किया, जो सामने आया वो चौंकाने वाला था।

गरीबों के नाम पर लिया पैसा

18 गरीब मरीजों को बीपीएल कटेगरी के अंतर्गत नि:शुल्क इलाज के लिए सरकार से 37 लाख रुपये सरकार से लिए गए। किसी भी मरीज की सर्जरी नहीं की गई। वॉल्व आदि उपकरण एक्सपायर हो गए। जांच कमेटी ने जब मरीजों के परिजनों को फोन किया तो 18 गरीब मरीजों की इलाज के अभाव में मौत हो गई थी। आरोप हैं कि प्रो। एसके सिंह के समय विभाग में 60 वॉल्व का पेमेंट मरीजों से करा लिया गया, लेकिन उन्हें लगाए नहीं गए।

एक ही वॉल्व लगता था

विभागीय सूत्रों के मुताबिक एक मरीज को कागजों पर दो वॉल्व लगाए जाते थे, लेकिन असलियत में एक ही लगता था। और, पेमेंट दो का जमा होता था। पैसा एचओडी और टीम की जेब में जाता था। रिसीविंग चेक की गई तो इसका खुलासा हुआ। हालांकि, जांच के बाद अमा मेडिकल स्टोर्स ने सभी 60 वॉल्व विभाग को सौंप दिए हैं। मेडिकल स्टोर की भूमिका इससे समझी जा सकती है।

जरूरत बिना करोड़ों की मशीनें खरीदीं

विभाग में बिना जरूरत के ही करीब 6 करोड़ की मशीनें खरीद ली गई, इनका कोई यूज नहीं था। पिछले माह ही यूपी सरकार से हार्ट ट्रांसप्लांट सेंटर बनाने की अनुमति मिली है। उधर, ट्रांसप्लांट के लिए 93 लाख की एलवैड माशीन 2014 में ही खरीद ली गई। ऐसी कई मशीनों का प्रयोग नहीं हुआ।

डॉ। शेखर टंडन को गलत तरीके से एचओडी बनाया गया है। मैंने इसके विरोध में एक अप्लीकेशन दिया है। जिसके कारण लोग मेरे पीछे पड़े हैं। ऑपरेशन के कास्ट और एक्विपमेंट स्टाफ नर्स के पास रहता है। जो मशीनें खरीदी गई, वह इमरजेंसी और आगे कार्डियक ट्रांसप्लांट की तैयारी को लेकर खरीदी गईं। मशीनें पूरी कमेटी खरीदती है।

प्रो। एसके सिंह, प्रोफेसर एवं पूर्व एचओडी, सीवीटीएस विभाग

जो भी गलत पाया जाएगा उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

प्रो। रविकांत, वीसी, केजीएमयू

जांच में पता चला है कि पहले रेट अनावश्यक रूप से ज्यादा वसूले जा रहे थे। जिन्हें कम किया जाएगा। जिन्हें जल्द ही लागू किया जाएगा।

प्रो। शेखर टंडन, एचओडी, सीटीवीएस