हथियारों से लेकर चंदन और बच्चों की तस्करी हो रही ट्रेन से

- अवैध हथियारों की मंडी बन चुका है शहर, ट्रेनों में छिपाकर दूसरे जिलों में भेजते हैं अपराधी

- चेकिंग और पुलिस से बचने के लिए नहीं करते सड़क रास्ते का यूज

KANPUR : कानपुर को स्टेट की इंडस्ट्रियल कैपिटल कहा जाता है। किराने और सोने-चांदी से लेकर मशीनरी आइटम्स की मंडी है यहां। देश भर से व्यापारी बिजनेस के सिलसिले में शहर आते-जाते रहते हैं। शहर की ये पहचान तो सभी जानते हैं। लेकिन पूरे प्रदेश और आसपास के अपराधियों के बीच शहर की एक अलग पहचान है। ये पहचान है अवैध हथियारों की मंडी। चेकिंग और पुलिस की नजरों से बचने के लिए क्रिमिनल्स हथियार और कारतूसों की तस्करी ट्रेनों के जरिए कर रहे हैं। इसके अलावा ट्रेनों के जरिए ड्रग्स, चंदन, कछुए और बच्चों से लेकर दूसरे गैरकानूनी आइटम्स की भी तस्करी हो रही है। सोर्सेज की मानें तो कानपुर सेंट्रल को क्राइम सेंट्रल बनाने में जीआरपी और आरपीएफ के साथ रेलवे के भी कुछ अधिकारियों की अहम भूमिका है।

एटीएस को भी मिले सुबूत

जीआरपी को लंबे समय से इस तरह की सूचनाएं मिल रही थीं। लेकिन अपराधी इतने शातिर हैं कि पुलिस के हत्थे चढ़ने से पहले ही निकल जाते थे। पिछले दिनों सेंट्रल पर जाल बिछाकर जीआरपी ने कुछ शातिर अपराधियों को धर दबोचा। पूछताछ में उन्होंने सनसनीखेज खुलासे किए हैं। सेंट्रल स्टेशन पर पिछले दिनों दो युवक अवैध पिस्टल के साथ रंगेहाथ पकड़े गए थे। उन्होंने पूछताछ में कबूल किया कि वे पिस्टल समेत अन्य अवैध हथियारों को बेचने का काम करते हैं। वे ट्रेन से हथियार और कारतूस को दूसरे जिले में पहुंचाते हैं। एटीएस को जो सबूत मिले हैं उसके मुताबिक भी कानपुर सेंट्रल अवैध असलहों का हब बन गया है। यहां पर नक्सली, आतंकी समेत अन्य संगीन अपराधियों का हथियार खरीदने के लिए आते हैं। सप्लायर उनकी डिमाण्ड पर असलहों और कारतूसों को चोरी छुपे ट्रेनों में रखकर दूसरे जिले में भेजते हैं।

अफसरों की अनदेखी

सेंट्रल स्टेशन की सुरक्षा की जिम्मेदारी आरपीएफ पर है। इसके साथ ही यात्रियों की सुविधा के लिए वहां पर जीआरपी और रेलवे अधिकारी भी ड्यूटी पर तैनात रहते हैं, लेकिन उनकी अनदेखी के चलते यहां क्रिमिनल्स सक्रिय रहते हैं। अवैध हथियारों का गोरखधंधा करने वाले उनकी लापरवाही का फायदा उठाकर हथियारों की सप्लाई करते है। वे चेकिंग न होने और सिपाहियों के गश्त न करने का फायदा उठाकर आसानी से प्लेटफार्म पर हथियारों की खेप पहुंचा देते हैं। जिसके बाद ट्रेन के जरिए वे उनको आसानी से दूसरे जिले में भेज देते हैं।

बेरोजगार लड़कों को बनाते हैं कैरियर

अवैध असलहों का गोरखधंधा करने वाले शातिर नई उम्र के बेरोजगार लड़कों को मोटी कमाई का लालच देकर फंसा लेते हैं। जिसके बाद वे उनको असलहों की डिलीवरी में लगा देते हैं। इसमें ज्यादातर आर्थिक रूप से कमजोर फैमिली के लड़के होते हैं। वे एक लड़के को कुछ ही दिन इस्तेमाल करते हैं, ताकि उनकी पोल न खुले। इसके बाद वे लड़कों को दूसरे अवैध धंधे में लगा देते हैं।

चोर रास्तों ने किया काम आसान

सेंट्रल स्टेशन में सिटी साइड घंटाघर और कैंट साइड रेलबाजार से यात्रियों की इन्ट्री होती है। कैंट साइड पर एक नम्बर प्लेटफॉर्म है। यहां पर आरपीएफ और जीआरपी थाना है। जिसके चलते यहां पर अन्य प्लेटफार्म से ज्यादा सुरक्षा व्यवस्था रहती है। इसके अलावा अपराधियों का काम आसान करने के लिए सेंट्रल पर आठ चोर रास्ते हैं। जहां से बिना टिकट वाले यात्री समेत अन्य लोग बेखौफ होकर गुजरते हैं। आरपीएफ और जीआरपी समेत रेलवे अधिकारियों को भी सभी चोर रास्तों के बारे में मालूम है, लेकिन उन्होंने रास्तों को बंद करने या उनपर निगरानी के लिए कोई कदम नहीं उठाया है। इसलिए शकर की सुई हमेशा पुलिसकर्मियों और रेलवे अधिकारियों पर भी उठती है।

पकड़ा गया तो भी टेंशन नहीं

सेंट्रल स्टेशन पर सुरक्षा की दृष्टि से ट्रेन आने पर संदिग्धों की तलाशी और बोगी में चेकिंग करने का नियम है, लेकिन चेकिंग के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जाती है। सफर में यात्रियों की सुरक्षा के लिए जीआरपी की ड्यूटी लगाई जाती है, लेकिन वे यात्रियों से रुपए वसूलने में ही व्यस्त रहते हैं। जिसका क्रिमिनल्स फायदा उठाते हैं। वे ट्रेन की बोगी में असलहों के बैग को किसी दूसरे यात्री की सीट पर रख देते हैं। जिसके बाद वे दूर से बैग पर नजर रखते हैं, ताकि अगर चेकिंग में बैग पकड़ा जाए तो वे आसानी से बच जाएं।

इसलिए ट्रेन का यूज

पुलिस सूत्रों के मुताबिक अवैध हथियार के गोरखधंधे से जुड़े क्रिमिनल्स बाई रोड सफर से बचते हैं। क्योंकि रोड के रास्ते में कई जगह चेकिंग प्वाइंट होते हैं। हर थाना क्षेत्र और शहर की सीमा पर चेकिंग का खतरा रहता है। मुखबिर की सूचना पर कई बार पुलिस घेराबन्दी कर पकड़ सकती है, जबकि ट्रेन में सफर के दौरान यात्रियों को असुविधा होने के डर से पुलिस ऐसा करने से बचती है। रोड के रास्ते में उनको भूख लगने पर होटल या ढाबे में रुकना पड़ता है, जहां पुलिस की नजर में आने का खतरा रहता है जबकि ट्रेन में उनको पैन्ट्रीकार या प्लेटफॉर्म पर खाना मिल जाता है।

हर अपराध का गढ़ है कानपुर सेंट्रल

-फ्क् जनवरी को देह व्यापार के आरोप में दो युवतियां और उनके कस्टमर गिरफ्तार हुए

-ख्9 जनवरी को प्लेटफार्म 8 में पुष्पक एक्सप्रेस में चंदन की तस्करी करने वाले दो तस्कर पकड़े गए

-ख्8 जनवरी को पिस्टल के साथ पकड़े गए दो क्रिमिनल्स

-नवंबर ख्0क्ख् में पकड़े गए थे महिला समेत चार कछुआ तस्कर

-चाइल्डलाइन की टीम की सूचना पर प्लेटफार्म एक पर पकड़ी गई थी तीन दर्जन लड़कियां और बच्चे, इन्हें नौकरी का झांसा देकर तस्करी के लिए दिल्ली भेजा जा रहा था

-प्लेटफार्म सात पर स्थित टीटी रूम से रिवाल्वर चोरी

-वाहन चोर गिरोह भी रहते है सक्रिय, सितंबर ख्0क्ख् में आधा दर्जन से अधिक वाहन चोर पकड़े गए थे

-मासूम की रेप के बाद हत्या भी हो चुकी है सेंट्रल पर, आरपीएफ कांस्टेबल, ठेकेदार समेत आधा दर्जन आरोपी हुए थे गिरफ्तार

हर दिन लाखों रुपए की टैक्स चोरी

ट्रेन में कई तरह का सामान बुक करके एक जिले से दूसरे जिले भेजा जाता है। जिसमें गारमेंट्स, इलेक्ट्रानिक सामान, लौंग, इलायची समेत अन्य किराने का सामान, गुटखा, सिगरेट आदि होता है। जिसमें टैक्स चोरी का खेल चलता है। यहां पर हर दिन औसतन लाखों की टैक्स चोरी होती है। इसके लिए दलाल दूसरे सामान की बिल्टी (पर्ची) में दूसरा सामान भेजते है। यहां पर सबसे ज्यादा पान मसाला, गुटखा और सिगरेट की सप्लाई में टैक्स चोरी होती है।

टैक्स चोरी कर बन गए करोड़पति

सेंट्रल में सबसे मोटी कमाई पार्सल के धंधे में होती है। सोर्सेज के मुताबिक विजिलेंस, आरपीएफ और जीआरपी की सेटिंग से पार्सल का धंधा करने वाले टैक्स चोरी करते है। हालांकि इसमें जीआरपी का कोई रोल नहीं होता है। फिर भी वे जीआरपी को सेट रखते है, ताकि कहीं से कोई चूक न हो सके। पार्सल के धंधे में पहले तीन दबंग थे, लेकिन एक ने मोटी कमाई करके यह धंधा छोड़कर दूसरा बिजनेस कर लिया है। वहीं, दोनों दबंग अभी भी इसमें लिप्त है। आज की डेट में वे रोडपति से करोड़पति बन चुके हैं।

वीआईपी कोटा लगाने वाले दलाल भी सक्रिय

कानपुर सेंट्रल पर वीआईपी कोटा लगवाने वाले दलालों का गैंग भी सक्रिय है। स्लीपर से लेकर एसी फ‌र्स्ट क्लास तक का वेटिंग रिजर्वेशन कनफर्म कराने के लिए इन गैंग वालों के अलग-अलग रेट फिक्स हैं। हैरानी की बात ये है कि इनके मेंबर्स के पास रेलवे अधिकारियों से लेकर विधायक, सांसद और मंत्रियों के लेटर हेड मौजूद रहते हैं, जिनपर ये लोग आसानी से वीआईपी कोटा लगवा देते हैं। कानपुर में इस तरह के गैंग का पर्दाफाश दो बार हो चुका है लेकिन ऊपर तक पहुंच होने के कारण कुछ दिनों बाद ही ये लोग दोबारा इस गोरखधंधे को शुरू कर लेते हैं।

]]>