प्राचीन काल से पति की दीर्घायु के लिए महिलाएं रखती आ रहीं करवा चौथ व्रत

मां पार्वती, भगवान शिव और विघ्नहर्ता गणेश की मिलती है कृपा

ALLAHABAD: सनातन धर्म में महिलाएं पति की मंगल कामना के लिए व्रत उपवास और अनुष्ठान करती हैं। ये परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है। इन्हीं परम्पराओं में शामिल है करवा चौथ का व्रत। करवा चौथ का व्रत और पूजन विवाहित महिलाओं को लंबे सुहाग का सौभाग्य देता है। इसी कारण आज भी बड़ी संख्या में विवाहित महिलाएं इस व्रत को पूरे मनोयोग से करती हैं।

विशेष है पूजन व व्रत की विधि

उत्थान ज्योतिष संस्थान के निदेशक ज्योतिर्विद् पं। दिवाकर त्रिपाठी पूर्वाचली हैं कि इस व्रत को करने के लिए व्रतियों को सूर्योदय से पूर्व स्नान कर व्रत रखने का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद सास द्वारा भेजी गई सरगी खाएं। सरगी में मिठाई, फल, मीठा भोजन, पूड़ी और साज-श्रृंगार का सामान होता है। सरगी में प्याज और लहसुन से बना भोज्य पदार्थ वर्जित है। सरगी के बाद करवा चौथ का निर्जल व्रत शुरु हो जाता है। मां पार्वती, महादेव शिव व गणेश जी का अन्तर्मन से ध्यान करते हुए दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें। इसी चित्रण की कला को करवा धरना कहा जाता है जो कि अति प्राचीन परंपरा है। अब आठ पुरियों की अठावरी बनाएं। करवा चौथ की पूजा करने के लिए बालू या सफेद मिट्टी की वेदी बनाकर भगवान शिव, देवी पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, चंद्रमा एवं गणेशजी को स्थापित कर उनकी विधि पूर्वक पूजा करनी चाहिए। मां गौरी की गोद में गणेश जी का स्वरूप बिठाएं। इन स्वरूपों की पूजा संध्याकाल के समय की जाती है। माता गौरी को लकड़ी के सिंहासन पर विराजें और उन्हें लाल रंग की चुनरी पहना कर अन्य सुहाग, श्रृंगार की चीजें अर्पित करें। फिर उनके सामने जल से भरा कलश रखें। भेंट देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें। करवा और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें, रोली से करवे पर स्वास्तिक बनाएं। गौरी गणेश का बड़े ही मनोयोग से पूजन करें तत्पश्चात करवा चौथ की कथा सुननी चाहिए, फिर चंद्रमा को अ‌र्घ्य देकर छलनी से पति को देखना चाहिए। पति के हाथों से ही पानी पीकर व्रत खोलना चाहिए।

पुराणों में व्रत का वर्णन

पं। दिवाकर त्रिपाठी ने बताया कि करवा चौथ अर्थात् करक चतुर्थी व्रत का वर्णन वामन पुराण में किया गया है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत किया जाता है। इस बार करवा चौथ 19 अक्टूबर दिन बुधवार को है। इस वर्ष चतुर्थी तिथि 18 अक्टूबर 2016 दिन मंगलवार को रात में 03 बजकर 09 मिनट पर लग रहा है। चतुर्थी में चन्द्रमा का दर्शन ही प्रमुख होता है, इसी कारण करवा चौथ का परम पुनीत पर्व 19 अक्टूबर को मनाया जाएगा। करवा चौथ की पूजा शाम को शुभ मुहूर्त 5.45 मिनट से 6.55 मिनट तक प्रारम्भ कर देना चाहिए। चंद्रोदय रात 8.27 बजे होने के साथ चंद्र को अ‌र्घ्य देने के बाद ही भोजन ग्रहण करना उत्तम होगा।

ये है व्रत की कथा

पूवरंचली करवा चौथ व्रत के सम्बन्ध में कहते हैं कि यह महिलाओं के अखंड सौभाग्य का प्रतीक है। कथा एक साहूकार की है, जिसके सात लड़के और एक लड़की थी। एक बार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सेठानी सहित उसकी सातों बहुएं और बेटी ने करवा चौथ का व्रत रखा। रात्रि के समय जब साहूकार के लड़के भोजन करने बैठे तो उन्होंने बहन से भी भोजन करने को कहा। बहन ने बताया कि अभी चांद नहीं निकला है। चांद निकलने पर उसे अ‌र्घ्य देकर ही वह भोजन करेगी। साहूकार के बेटे बहन से बहुत प्रेम करते थे, उन्हें बहन का भूख से व्याकुल चेहरा देख दुख हुआ। वे नगर के बाहर चले गए और वहां एक पेड़ पर चढ़ कर अग्नि जला दी। घर वापस आकर उन्होंने बहन से कहा देखो, चांद निकल आया है। अब तुम उन्हें अ‌र्घ्य देकर भोजन ग्रहण करो। साहूकार की बेटी ने भाभियों से कहा देखो, चांद निकल आया है, तुम लोग भी अ‌र्घ्य देकर भोजन कर लो। ननद की बात सुनकर भाभियों ने कहा, बहन अभी चांद नही निकला है, तुम्हारे भाई धोखे से अग्नि जलाकर उसके प्रकाश को चांद के रूप में दिखा रहे हैं। साहूकार की बेटी ने भाभियों की बात को अनसुनी कर भाइयों द्वारा दिखाए चांद को अर्घ्य देकर भोजन कर लिया। इस प्रकार करवा चौथ का व्रत भंग करने के कारण विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश साहूकार की लड़की पर अप्रसन्न हो गए। गणेश जी की अप्रसन्नता के कारण लड़की का पति बीमार पड़ गया और घर में बचा हुआ सारा धन उसकी बीमारी में लग गया। साहूकार की बेटी को जब अपने किए हुए दोषों का पता लगा तो उसे बहुत पश्चाताप हुआ। उसने गणेश जी से क्षमा प्रार्थना की और फिर से विधि-विधान पूर्वक चतुर्थी का व्रत शुरू किया। उसने उपस्थित सभी लोगों का श्रद्धानुसार आदर किया और तदुपरांत उनसे आशीर्वाद ग्रहण किया। इस प्रकार उस लड़की की श्रद्धा-भक्ति को देखकर एकदंत भगवान गणेश जी उस पर प्रसन्न हो गए और उसके पति को जीवनदान प्रदान किया। उसे सभी प्रकार के रोगों से मुक्त कर धन, संपत्ति और वैभव से युक्त कर दिया। इस प्रकार यदि कोई मनुष्य छल-कपट, अहंकार, लोभ, लालच को त्याग कर श्रद्धा और भक्तिभाव पूर्वक चतुर्थी का व्रत पूर्ण करता है, तो वह जीवन में सभी प्रकार के दुखों और क्लेशों से मुक्त होता है और सुखमय जीवन व्यतीत करता है।