अगर गौर करें, तो पाएंगे कि ज्वेलरी बिजनेसमैन परेश मुखर्जी, कावेरी के ओनर लव भाटिया, गोमिया के ठेकेदार महावीर जैन, जमशेदपुर के बिजनेसमैन कृष्णा भालोटिया, देवघर के बाट बिजनेसमैन नंदकिशोर सिंघानिया (अब मृत) जैसे बिजनेसमेन को न सिर्फ अगवा किया गया, बल्कि फिरौती की रकम भी वसूल की गई। हालांकि, लव भाटिया किडनैपिंग केस में क्रिमिनल्स सक्सेसफुल नहीं हो सके और रांची पुलिस ने तीन क्रिमिनल्स को एनकाउंटर किया और लव भाटिया को एचईसी के एक क्वार्टर से बरामद कर लिया था।

Kidnapping  का लेते हैं ठेका
झारखंड में कोल माइंस, स्टील प्लांट, रेलवे स्क्रैप आदि को लेकर माफिया पहले भी एक्टिव थे और आज भी हैं। झारखंड अलग होने के बाद भी किडनैपर्स ने झारखंड को सॉफ्ट टारगेट मानकर अपनी एक्टिविटी यहां बढ़ाई, क्योंकि बिहार और यूपी पुलिस ने माफिया और क्रिमिनल्स को वहां से खदेड़ दिया। लिहाजा बिहार-झारखंड में किडनैपिंग से लेकर मर्डर जैसी वारदातें होने लगीं। यह सिलसिला लगातार जारी है। भाटिया की किडनैपिंग में हाजीपुर (बिहार) के चंदर सोनार गिरोह का नाम आया, वहीं आत्माराम टेकरीवाल केस में यूपी के मोस्ट वांटेड ब्रजेश गिरोह का नाम सामने आया था। ऐसे क्रिमिनल्स में ठेका मैनेज करनेवाले गिरोह के साथ ही किडनैपिंग करने वाला गिरोह भी शामिल है। झारखंड में किडनैपिंग इंडस्ट्री चलानेवाले 95 परसेंट क्रिमिनल्स बिहार-यूपी या दूसरे स्टेट्स के होते हैं। सोर्सेज के मुताबिक, बिहार के कम से कम आधा दर्जन किडनैपर्स गैंग्स झारखंड में एक्टिव हैं। कुछ गैंग्स ने तो झारखंड में किडनैपिंग का ठेका उठा रखा है। स्टेट कैपिटल से गोल्ड बिजनेसमैन परेश मुखर्जी को दिलीप सिंह गिरोह ने किडनैप किया था। जमशेदपुर में किडनैपिंग की कई वारदातों में बिहार के क्रिमिनल्स का नाम सामने आया था।

एक-दूसरे के touch  में रहते हैं
किडनैप कर बिजनेसमेन को हाजीपुर, वैशाली में रखा जाता था। यहां काम करनेवाले ज्यादातर गिरोह आपस में एक-दूसरे के टच में रहते हैं और किडनैप्ड पर्सन को खरीदने-बेचने से भी उन्हें परहेज नहीं। सेपरेट स्टेट बनने के बाद झारखंड में बिजनेसमेन या दूसरे रिच लोगों की फिरौती के लिए किडनैपिंग के जितने भी केसेज सामने आए, उनमें से 95 परसेंट केसेज में किडनैपर्स गैंग्स के तार बिहार से ही जुड़े हुए पाए गए। कोडरमा में भी किडनैपिंग की कई घटनाओं में बिहार के क्रिमिनल्स पकड़े गए थे।

होता है लाखों का ‘investment’
परेश मुखर्जी किडनैपिंग केस में दिलीप सिंह और चंदन सोनार ने आम्र्स, गाड़ी का किराया, सहयोगी के खर्च, छिपाने की जगह, किडनैपर्स गैंग्स के मेंबर्स के लिए दवा-दारू से लेकर अन्य जरूरतों पर तीन से चार लाख रुपए खर्च होने की बात स्वीकार की थी। चंदन सोनार ने कहा था कि टारगेट को किडनैप करने के बाद उसे सेफ जगह पर रखने की सबसे ज्यादा प्रॉब्लम होती है। ऐसे में उसे छिपाने के लिए मुंहमांगी कीमत मांगी जाती है। चंदन सोनार के मुताबिक, किडनैप्ड पर्सन को जितने दिन रखा जाता था, उस हिसाब से फिरौती की रकम को बढ़ा दिया जाता है।

तो बेच देते हैं शिकार को
अगर सौदा नहीं पटा, तो किडनैपर्स अपना सारा खर्च निकालकर किडनैप्ड पर्सन को दूसरे किडनैपर्स गैंग के हाथों बेच डालते हैं। खरीदनेवाला गैंग किडनैप्ड पर्सन के सारे डिटेल्स (जैसे घर का एड्रेस, स्टेटस आदि) ले लेता है। इस डिटेल में पुलिस इन्वेस्टिगेशन के बारे में भी पूरी इनफॉर्मेशन मांगी जाती है। शिकार के खरीद-फरोख्त में यूपी, बिहार के कई नामी-गिरामी लोग शामिल होते हैं।