चीन की मदद से हाल ही में आठ-सड़कों वाले ठीका सुपरहाइवे का निर्माण किया गया था. इसे पूरा कर लिया गया है लेकिन इस पर काम करने वाले चीन के लोग अभी भी यहाँ पर मौजूद हैं.

उनमें से कई लोग राजधानी नैरोबी में आपको व्यापार करते मिल जाएंगे. उन्होंने छोटी दुकानें खोल ली हैं. इन दुकानों में आपको सेकेंड-हैंड गाड़ियाँ, कपड़ें या फिर फ़ोन मिल जाएंगे.

चीन के लोग सेकेंड-हैंड फ़ोन बेचने के लिए खासे बदनाम हैं. नैरोबी में लोगों को सस्ती चीज़ें बहुत पसंद हैं.

मैंने सुना है कि  चीन के लोग बीज़िंग या फिर चीन के दूसरे शहरों में अपनी जान-पहचान के लोगों से यहाँ सस्ते सामान मंगवाते हैं. यानी ये लोग यहाँ पर सामान डंप कर रहे हैं. ये बात स्थानीय लोगों को पसंद नहीं आ रही है.

निवेश की खातिर

लोग कह रहे हैं कि वो इस बारे में सरकार से बात करेंगे कि इन लोगों को या तो अपने देश वापस भेजा जाए या फिर निर्माण के दूसरे कार्यों में लगाया जाए.

हमने तंजानिया में देखा है कि वहाँ से चीन के अवैध आप्रवासियों को वापस चीन भेज दिया गया. घाना में हज़ारों ऐसे लोगों को, जो खुद को निवेशक बताते थे लेकिन वो स्थानीय लोगों के साथ छोटे अवसरों के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे थे, उन्हें भी वापस भेज दिया गया.

कीनिया भी उसी दिशा की ओर जा सकता है.

चीन को कीनिया में 'चोर समझा जाता हैं'

पत्रकार मार्क कापचांगा के मुताबिक कीनिया में भारतीयों को भाई की तरह देखा जाता है.

कीनिया को निवेश की सख़्त ज़रूरत है. वर्ष 2007-08 में कीनिया में राजनीतिक अस्थिरता ने यहाँ की अर्थव्यवस्था और निवेशकों के विश्वास को प्रभावित किया. इस कारण कीनिया दुनिया को ये नहीं दिखाना चाहता कि वो विदेशियों को पसंद नहीं करते हैं.

कीनिया दक्षिण अफ़्रीका जैसी स्थिति नहीं चाहता जहाँ विदेशियों पर हमले हो रहे हैं. वो इस मसले से कूटनीतिक तरीके से निपटना चाहते हैं.

मज़बूत रिश्ता

कीनिया का  भारत से मज़बूत रिश्ता है. इस कारण भारतीयों को भाई की तरह देखा जाता है. नैरोबी में व्यापारिक संस्थानों पर भारतीयों का प्रभुत्व है. इसलिए कीनिया में चीन और भारत को एक तराज़ू में रखकर नहीं तौला जा सकता.

चीन को ऐसे देखा जाता है जो यहाँ चोरी करने के लिए आया है और हमारा शोषण करना चाहता है और वो हमारी संपत्ति लेकर भाग जाएगा.

कीनिया के कई अमीर लोग इलाज के लिए भारत जाते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि उन्हें भारत में सस्ते में अच्छा इलाज मिलेगा.

भारत कीनिया के छात्रों को वज़ीफ़ा देता है. कीनिया के कई लोग पढ़ने के लिए तीन-चार साल के लिए भारत जाते हैं और फिर वो वापस आ जाते हैं.

कीनिया में काम करने वाले बहुत सारे एकाउंटेंट भारत के पढ़े हुए हैं.

चिंता

चीन को कीनिया में 'चोर समझा जाता हैं'मार्क कहते हैं कि थीका सुपरहाइवे पर काम तो खत्म हो चुका है लेकिन चीन के मज़दूर अभी भी कीनिया में मौजूद हैं.

अगर आप मेहनती हैं, आप स्कूल गए हैं, आपने विश्वविद्यालय की डिग्री ली है, तो यहाँ पर आपके लिए बहुत अवसर हैं. लेकिन कीनिया में इस बात को लेकर बहुत चिंता है कि हमारे वैज्ञानिक, खासकर वो जिन्होंने हमारे विश्वविद्यालय में बहुत अच्छा काम किया है, वो विदेश जा रहे हैं.

अमरीका ऐसा दावा करता है कि वो ऐसे वैज्ञानिकों को वज़ीफ़ा दे रहा है लेकिन बाद में वो उन्हें वीज़ा दे देता है.

मेरे भाई की ही बात कर लें. उसने 1998 में नैरोबी विश्वविद्यालय से डिग्री ली. वो कीनिया के बेहतरीन इजीनियरों में से एक था और अमरीका ने उसे वज़ीफ़ा दे दिया.

कोलोराडो से मास्टर्स करने के बाद उसे फिर एक और स्कॉलरशिप दे दी गई. वॉशिंगटन में उसने अपनी पीएचडी की. अब उसे वहाँ की नागरिकता दे दी गई है. उससे कहा गया है कि अच्छा होगा कि वो अपना परिवार भी वहीं ले आए.

इसी तरह हमें अपने वैज्ञानिकों को लेकर चिंता है जो या तो अमरीका या फिर यूरोप जा रहे हैं. ज़्यादातर लोग यूरोप नहीं जाना चाहते क्योंकि वहाँ रहना बहुत महंगा है.

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