- केजीएमयू में बिना टेंडर के 70 लाख के रीएजेंट खरीदने का मामला

- विधानसभा में उठा प्रश्न, सीएम की तरफ से दी गई गलत जानकारी

LUCKNOW: किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में नियमों को दरकिनार कर काम करने का आरोप लगता रहा है, लेकिन इस बार तो केजीएमयू के अधिकारियों ने सीएम को भी गुमराह करने की कोशिश कर डाली। रजिस्ट्रार ने विधानसभा में पूछे गए प्रश्न का उत्तर ही गलत दे दिया। रजिस्ट्रार खुद दोषियों को बचाने में लगे हुए हैं। बड़ी बात यह है कि यह उत्तर स्वयं सीएम की ओर से विधानसभा में दिया गया है।

असल में, यह था मामला

पैथोलॉजी विभाग ने 70 लाख से ज्यादा के रीएजेंट बिना एग्जीक्यूटिव काउंसिल की अनुमति के और बिना टेंडर प्रक्रिया को अपनाए ही खरीद डाले थे। इस विभाग के एचओडी केजीएमयू के डीन प्रो। राज मल्होत्रा हैं। इन रीएजेंट के लिए एग्जीक्यूटिव काउंसिल में भी हंगामा हो चुका है।

तो अब तक पेमेंट क्यों नहीं किया

तीन अगस्त ख्0क्फ् की कार्य परिषद की बैठक मे यह मुद्दा उछला था, जिसमें तत्कालीन रजिस्ट्रार और वित्त अधिकारी ने कहा था कि पैथोलॉजी में मर्क कम्पनी की मशीन के लिए रीएजेंट की खरीद केजीएमयू की परचेज पॉलिसी के तहत नहीं हुई है। जिसके कारण इसका अप्रूवल नहीं दिया जा सकता है। इस आधार पर ईसी ने भी रीएजेंट की खरीद को गलत बताया और इसकी खरीद के लिए अनुमति नहीं दी। इसमें यह भी कहा गया कि मशीन लगाने के लिए केजीएमयू में सक्षम अधिकारी की अनुमति से टेंडर प्रक्रिया अपनाई जाती है। जबकि पैथोलॉजी विभाग ने बिना एग्जीक्यूटिव काउंसिल या अन्य अधिकारी के अनुमति के ही मशीन लगवाई और 70 लाख रुपए के रीएजेंट खरीद डाले। चूंकि रीएजेंट खरीद में पहले से वित्तीय अनुमति नहीं ली गई और टेंडर प्रक्रिया को फालो नहीं किया गया, इसलिए इसके पेमेंट पर रोक लग गई और अभी तक इसका पेमेंट नहीं हो सका है।

जब विधानसभा में उठा प्रश्न

आईनेक्स्ट ने फ् अप्रैल को प्रकाशित खबर में केजीएमयू में नियम कानूनों को दरकिनार कर करोड़ों के खर्च से सम्बंधित खबर प्रकाशित की थी। इसी पर विधानसभा सदस्य रामहेत भारती ने विधानसभा में प्रश्न पूछ लिया। उन्होंने पूछा कि बिना टेंडर प्रक्रिया अपनाए ही 70 लाख के रीएजेंट कैसे खरीदे गए और इसके कारण वित्त विभाग के अधिकारियों पर दबाव बनाया जा रहा है? इस पर केजीएमयू के रजिस्ट्रार योगेश कुमार शुक्ल ने सीएम अखिलेश यादव को भी अंधेरे में रखते हुए उत्तर भेज दिया। क्योंकि किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय चिकित्सा शिक्षा विभाग के अंतर्गत आता है और इस विभाग के मंत्री स्वयं मुख्यमंत्री हैं।

रजिस्ट्रार ने उत्तर में लिखा

रजिस्ट्रार ने दिए गए उत्तर में कहा है कि पैथोलॉजी विभाग में कोई भी ऐसी मशीन नहीं है जो नियमों के विरुद्ध क्रय की गई हो ओर न ही बिना सक्षम अधिकारी की सहमति के रखी गई है। विभाग की केमिकल यूनिट में क्लीनिकल केमिस्ट्री एनालाइजर सेलेक्ट्रा-ई मेक वाइटल साइंटिफिक एनवी नीदरलैंड, इंडियन एजेंट मेसर्स मर्क स्पेशिलिटीज मुम्बई से ख्0क्0-क्क् में क्रय कर पैथोलॉजी विभाग को उपलब्ध कराई गई है और प्रश्नगत भुगतान इन्ही मशीनों पर प्रयोग किए जा रहे रिएजेंट्स से सम्बंधित है। रजिस्ट्रार ने यह नहीं बताया कि अगर मशीन सही है तो उसके रीएजेंट सम्बंधी भुगतान अब तक क्यों नहीं किए गए? रजिस्ट्रार ने यह नहीं बताया कि एग्जीक्यूटिव काउंसिल ने इस भुगतान पर रोक क्यों लगाई?

पेमेंट को लेकर हो चुका है हंगामा

केजीएमयू सूत्रों की मानें तो इस पेमेंट को लेकर फाइनेंस ऑफिसर और पैथोलॉजी के एचओडी के बीच झड़प भी हो चुकी है। उस समय वह एक्टिंग वीसी थे और इस समय पैथोलॉजी के एचओडी प्रो। राज मेहरोत्रा ही संस्थान में डीन भी है।

असल में, नियम यह है

एक लाख से कम कीमत का सामान केजीएमयू प्रशासन बिना टेंडर किए ही खरीद सकता है। इसके अधिक कीमत का कोई भी सामान बिना टेंडर के खरीदा नहीं जा सकता। इसके लिए क्रय समिति के समक्ष मामले को ले जाया जाता है। क्रय समिति के अनुमोदन से टेंडर प्रक्रिया अपना कर सामान के परचेज की प्रक्रिया अपनाई जाती है।